Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 423
________________ प्रेम और प्रेम में भेद हुँ 413 जागो। कुछ करो मत, मुस्कुराहट को खिंची रहने दो; तुम सिर्फ जाग कर देखो कि यह झूठ है। और तुम पाओगे कि ओंठ अपनी जगह आ गए। यह मुट्ठी मैं बांधे हुए हूं जबरदस्ती । इसको खोलने के लिए कुछ करना थोड़े ही पड़ेगा; सिर्फ मुझे इतना समझ लेना जरूरी है कि मैं जबरदस्ती बांधे हूं, अकारण बांधे हूं, इसका कोई सार नहीं; मुट्ठी खुल गई। खोलना थोड़े ही पड़ती है, सिर्फ बांधना पड़ती है। और जब समझ आ गई तो बांधना छूट जाता है, खुल जाती है। समझ सरल है; नासमझी जटिल है। ज्ञान बिलकुल सरल है; अज्ञान बहुत जटिल है। तो तुम यह मत पूछो कि लाओत्से जैसे सरल होने के लिए तुम्हें क्या करना पड़ेगा। तुम हो ही; बस जाग कर देखना है अपने स्वभाव को संपदा तुम्हारे पास है, कहीं खोजने नहीं जाना; सिर्फ आंख खोलनी है। तुमने खोया कुछ भी नहीं है; सिर्फ खयाल है कि खो दिया है। स्मरण ले आना है। खो तो तुम सकते ही नहीं, क्योंकि अगर खो सकते तो फिर पाने का कोई उपाय न था । कौन खोएगा ? तुम्हारा स्वभाव है सरलता । जटिल होने के लिए तुम्हें चेष्टा करनी पड़ती है। जटिल होने के लिए तुम्हें सदा अपने पहरे पर रहना पड़ता है। तुम खयाल करो : जटिल होने के लिए कुछ करना पड़ता है। सरल होने के लिए क्या करना है ? ऐसे ही समझो कि किसी आदमी को कहीं जाना हो तो चलना पड़ता है। और कहीं न जाना हो, घर में ही बैठना हो, तो चलना पड़ता है? आदमी बैठ जाता । घर में तो है ही। जब भी तुम्हें कुछ करना पड़ता उसका अर्थ है : कुछ तुम पाने चले हो जो तुम्हारे स्वभाव में नहीं है। ऐसा हुआ, बोधिधर्म के पास चीन का सम्राट मिलने आया। और उस सम्राट ने कहा कि मैं बड़ा क्रोधित हो जाता हूं और कुछ क्रोध के लिए उपाय बताओ, कैसे इससे छुटकारा पाऊं ? तो बोधिधर्म ने पूछा, तुम चौबीस घंटे क्रोध में रहते हो या कभी-कभी ? उसने कहा कि चौबीस घंटे तो कौन क्रोध में रहता है? कभी-कभी! तो बोधिधर्म ने कहा, बहुत फिक्र मत करो। क्योंकि जो कभी-कभी है, वह स्वभाव नहीं हो सकता; स्वभाव तो चौबीस घंटे होता है। स्वभाव का मतलब है कि सोते-जागते, उठते-बैठते, चलते, खाते-पीते, पुण्य करते, पाप करते, चोरी में, साधुता में, सदा साथ है। स्वभाव यानी तुम । स्वभाव को कुछ करना थोड़े ही पड़ता है। स्वभाव कोई कृत्य थोड़े ही है; स्वभाव तो तुम्हारा बीइंग है, तुम्हारा अस्तित्व है। इसलिए यह पूछो ही मत कि हम क्या करें कि विरोधी छोर मिल जाएं; विरोधी छोर मिले ही हुए हैं। तुम कृपा करके कुछ करो मत, थोड़ा न करने में ठहरो; थोड़ी देर के लिए कुछ मत करो। थोड़ी देर तुम चुप बैठ जाओ और कुछ मत करो। रोज अगर तुम एक घड़ी भर चुप बैठ जाओ और कुछ न करो। विचार आएंगे, आने दो, जाने दो। उनको रोको भी मत, क्योंकि वह भी करना है। यह भी मत करो कि इनको न आने देंगे, क्योंकि वह भी करना है । तुम कुछ करो ही मत; जो हो रहा है होने दो। पाप के विचार उठ रहे हैं, उठने दो। तुम कौन है ? आया है धुआं, चला जाएगा अपने आप; अपने आप आया है, अपने आप चला जाएगा। तुम जरा चुपचाप बैठे रहो, देखते रहो। अगर तुम इतना ही कर लो, घड़ी भर खाली बैठना, तुम अचानक एक दिन पाओगे लाओत्से भीतर अपनी पूरी गरिमा में प्रकट हो गया है; बुद्ध विराजमान हैं, तुम बोधिवृक्ष बन गए; तुम्हारी छाया में बुद्धत्व विराजमान है; तुमने पा लिया परम । उसे तुमने कभी खोया न था । सारी कठिनाई मूर्च्छा की है। जो तुमसे कहता है, ईश्वर को खोजना है, कहीं ईश्वर आकाश में है, वह तुम्हें भटकाएगा। मैं तुमसे कहता हूं, ईश्वर को खोजना नहीं; तुमने कभी खोया नहीं; ईश्वर तुम्हारे भीतर है, तुम हो। तुम्हारे भीतर कहना भी ठीक नहीं, तुम हो। जरा धूल जम गई है यात्रा की; स्नान की जरूरत है, बस। लंबी यात्रा करके आ रहे हो, धूल-धूसरित हो गए हो । बहुत झूठ जीए हैं, झूठ की पर्तें तुम्हारे चारों तरफ इकट्ठी हो गई हैं। लेकिन झूठ की ही पर्तें हैं, कुछ भय

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