Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 420
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ लेकिन तुम प्रेम नहीं करते, तुम सुधारते हो। जब तुम सुधारते हो तब तुम्हारे सुधारने की आकांक्षा ही बच्चे के पैरों को गलत मार्ग पर जाने का आकर्षण बन जाती है। बच्चे झूठ बोलेंगे, सिगरेट पीएंगे, गालियां बकेंगे, अभद्रता करेंगे, सिर्फ इसलिए कि तुम सुधारना चाहते हो। तुम उनके अहंकार को चोट पहुंचा रहे हो। वे भी अहंकार से उत्तर देंगे। एक संघर्ष शुरू हो गया। और संघर्ष बड़ा मूल्यवान है, क्योंकि मां-बाप से बच्चों को पहली दफा प्रेम की खबर मिलती थी, वह विषाक्त हो गई। जो लड़का अपनी मां को प्रेम नहीं कर सका, वह किसी स्त्री को कभी प्रेम नहीं कर पाएगा, हमेशा अड़चन खड़ी होगी। क्योंकि हर स्त्री में कहीं न कहीं छिपी मां मौजूद है। हर जगह हर स्त्री मां है। मां होना स्त्री का गहरा स्वभाव है। छोटी सी बच्ची भी पैदा होती है तो वह मां की तरह ही पैदा होती है। इसलिए गुड़ियों को लगा लेती है बिस्तर से और सम्हालने लगती है, घर-गृहस्थी बसाने लगती है। मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी बाहर गई थी। और छोटी लड़की ने, जिसकी उम्र केवल सात साल है, उस दिन भोजन की टेबल पर सारा कार्यभार सम्हाल लिया था और बड़ी गुरु-गंभीरता से एक प्रौढ़ स्त्री का काम अदा कर रही थी। लेकिन उससे छोटा बच्चा पांच साल का, उसे यह बात न जंच रही थी। तो उसने कहा कि अच्छा मान लिया, मान लिया कि तुम मां हो, लेकिन मेरे एक सवाल का जवाब दो कि सात में सात का गुणा करने से कितने होते हैं? उस लड़की ने गंभीरता से कहा, मैं काम में उलझी हूं, तुम डैडी से पूछो। छोटी सी बच्ची! लेकिन हर लड़की मां पैदा होती है और हर पुरुष अंतिम जीवन के क्षण तक भी छोटा बच्चा बना रहता है। कोई पुरुष कभी छोटे बच्चे के पार नहीं जाता। हर पुरुष की आकांक्षा स्त्री में मां को खोजने की होती है और स्त्री की आकांक्षा पुरुष में बच्चे को खोजने की होती है। इसलिए जब कोई एक पुरुष एक स्त्री को गहरा प्रेम करता है तो वह छोटे शिशु जैसा हो जाता है। और प्रेम के गहरे क्षण में स्त्री मां जैसी हो जाती है। उपनिषद के ऋषियों ने आशीर्वाद दिया है नव-विवाहित युगलों को कि तुम्हारे दस बच्चे पैदा हों और अंत में ग्यारहवां तुम्हारा पति तुम्हारा बेटा हो जाए। उन्होंने बड़ी ठीक बात कही है। लेकिन मां से अगर बच्चे को प्रेम की सीख न मिल पाई-बेशर्त प्रेम की-फिर कहां सीखेगा? पहली पाठशाला ही चूक गई। और अगर लड़की को अपने बाप से प्रेम न मिल पाया, वह किसी भी पुरुष को प्रेम न कर पाएगी। कुआं पहले झरने पर ही जहरीला हो गया। और फिर जब तुम प्रेम से उलझन में पड़ते हो तब तुम्हारे साधु-संन्यासी खड़े हैं सदा तैयार कि जब तुम उलझन में पड़ो, वे कह दें, हमने पहले ही कहा था कि बचना कामिनी-कांचन से, कि स्त्री सब दुख का मूल है। वे कहेंगे, हमने पहले ही कहा था कि स्त्री नरक की खान है। . तुम्हारे शास्त्र भरे पड़े हैं स्त्रियों की निंदा से। पुरुषों की निंदा नहीं है, क्योंकि किसी स्त्री ने शास्त्र नहीं लिखा। नहीं तो इतनी ही निंदा पुरुषों की होती, क्योंकि स्त्री भी तो उतने ही नरक में जी रही है जितने नरक में तुम जी रहे हो। लेकिन चूंकि लिखने वाले सब पुरुष थे, पक्षपात था, स्त्रियों की निंदा है। किसी तुम्हारे संत-पुरुषों ने नहीं कहा कि पुरुष नरक की खान। स्त्रियों के लिए तो वह भी नरक की खान है, अगर स्त्रियां पुरुष के लिए नरक की खान हैं। नरक दोनों साथ-साथ जाते हैं-हाथ में हाथ। अकेला पुरुष तो जाता नहीं; अकेली स्त्री तो जाती नहीं। लेकिन चूंकि स्त्रियों ने कोई शास्त्र नहीं लिखा-स्त्रियों ने ऐसी भूल ही नहीं की शास्त्र वगैरह लिखने की-चूंकि पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए सभी शास्त्र पोलिटिकल हैं; उनमें राजनीति है: वे पक्षपात से भरे हैं। तब तुम्हारे साधु-संन्यासी तैयार हैं, अपनी बंसी में आटा लगाए बैठे हैं कि कब तुम घबड़ा जाओ कि फंस जाओ। जैसे ही तुम घबड़ाए गृहस्थी से, उनका राग जारी ही था, वे तैयार ही थे कि आ जाओ, भागो; हम पहले ही कहते थे; अब तक भटके, अब भागो, छोड़ दो सब। 410

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