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परमात्मा का आशीर्वाद बरस रहा है
जाएगा। और अगर वह सौभाग्य से किसी ऐसे व्यक्ति के पास पहुंच जाए जो उसकी डगमगाती हुई मीनारों को बिलकुल गिरा दे, खाली कर दे, नग्न और शून्य, चित्त में कोई धारणा न रह जाए, तभी तो तुम सत्य के निकट आ सकोगे। शून्य चित्त हो तो सत्य अमृत की वर्षा है; भरा हुआ चित्त हो तो सत्य बड़ा दुखदायी है।
पर लाओत्से ठीक ही कह रहा है। क्योंकि शून्य चित्त तो कभी करोड़ में एकाध का होता है। वह अपवाद है। उसे नियम के भीतर लेने की जरूरत नहीं है। वह तो केवल नियम को ही सिद्ध करता है।
'सच्चे शब्द कर्ण-मधुर नहीं होते।'
कैसा दुर्भाग्य है कि सच्चे शब्द कर्ण-मधुर नहीं होते! कैसा दुर्भाग्य है कि कर्ण-मधुर शब्द सच्चे नहीं होते! होना तो इससे उलटा ही चाहिए कि झूठ कड़वा हो। लेकिन तुमने खूब अभ्यास कर लिया है झूठ का। अभ्यास से कड़वी चीजें भी मधुर लगने लगती हैं।
पहली दफा तुम सिगरेट पीना शुरू करते हो; कड़वी है। खांसी आती है; आंख में आंसू आ जाते हैं; जरा भी स्वाद नहीं आता। अभ्यास करना पड़ता है। थोड़े ही दिनों में तुम अभ्यस्त हो जाते हो। तिक्त कड़वापन खो जाता है; मधुर मालूम पड़ने लगता है धुएं का पीना। शराब तुम पीना शुरू करते हो, तिक्त है। फिर अभ्यास की जरूरत है। एक बार अभ्यास हो गया तो शराब में बड़ी मधुरिमा मालूम होने लगती है; भागे चले जा रहे हो मधुशाला की तरफ।
झूठ का अभ्यास हो जाए तो मधुर लगने लगता है। और झूठ का लंबा अभ्यास है। इस जन्म में भी बहुत लंबा अभ्यास है। और पिछले जन्मों की लंबी यात्रा है। उसमें झूठ ही परिपोषित किया गया है।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर मैं एक दिन मेहमान था। उसकी पत्नी अमीर घर की लड़की है। और जैसा अमीर घर की लड़कियां होती हैं, एक तो पत्नियां वैसे ही उपद्रव, गरीब घर की हों तो भी, अमीर घर की पत्नी तो फिर बहुत उपद्रव। वह हर छोटी बात में याद दिला देती है मुल्ला को कि यह शानदार मकान न होता अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते; यह कार न खड़ी होती पोर्च में अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते; जिस कुर्सी पर आराम से बैठे हो यह कुर्सी घर में न होती, भीख मांग रहे होते, अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते। मैं मेहमान था। भोजन की थाली लग गई थी, और उसने अपना राग छेड़ दिया कि यह चांदी की थालियों में भोजन चल रहा है, अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते तो मुल्ला तुम भीख मांगते! मुल्ला ने कहा, अब मैं सच बात कह ही दूं, अब बहुत हो गया। मैं तुझसे कहता हूं कि अगर तेरे बाप के पास पैसे न होते तो तू भी यहां न होती, टेबल और कुर्सी का तो सवाल ही नहीं है। तेरे बाप के पास पैसे न होते तो तू भी यहां न होती। हमने कोई तुझसे विवाह नहीं किया, तेरे बाप के पैसों से विवाह किया है। . प्रेम तो झूठ है। सौ में निन्यानबे मौके पर कभी पैसे के लिए है, कभी प्रतिष्ठा के लिए है, कभी चमड़ी के लिए है, और कभी बहुत क्षुद्र बातों के लिए है, जिनका तुम हिसाब ही न लगा सकोगे कि कैसा पागलपन है! पैसे के लिए बहुत मौकों पर प्रेम का आवरण खड़ा हो जाता है। प्रतिष्ठा के लिए, पद के लिए, कुलीनता के लिए, बड़ा घर, बड़े संबंधी, आर्थिक लाभ, कभी स्त्री की चमड़ी सुंदर है इसलिए; वह भी ऊपर-ऊपर है, क्योंकि स्त्री चमड़ी नहीं है, चमड़ी से बहुत ज्यादा है। और चमड़ी तो भूल जाएगी दो दिन बाद; रोज तो भीतर की आत्मा के साथ रहना पड़ेगा। कभी आंखों के लिए कि आंखें सुंदर हैं। लेकिन कहीं आंखों के साथ रहने से कुछ काम चला है! कि कभी नाक का आकार, कि कभी वाणी की मधुरता, और कभी-कभी और भी क्षुद्र बातों के लिए प्रेम का आवरण खड़ा हो जाता है, स्त्री का चलने का ढंग, कि उसके मुड़ने का ढंग, कभी बहुत छोटी-छोटी बातों के लिए। लेकिन तुम इन सबको प्रेम का आवरण दे देते हो। छोटी बातें बड़ी मालूम होने लगती हैं। लेकिन यह आवरण टूटेगा, जब तक कि प्रेम ही न हो।
और प्रेम अकारण है; प्रेम का कोई कारण नहीं है। न तो नाक का झुकाव, न आंख का मछलियों जैसा होना; कोई कारण नहीं है प्रेम का। प्रेम अकारण भावदशा है; अतळ। तुम यह नहीं बता सकते कि क्यों। क्यों का अगर
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