Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 410
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ लाओत्से ने कहा, उसी दिन से मैं उस सूखे पत्ते जैसा हो गया, अपना संघर्ष छोड़ दिया; हवा जहां ले जाए। मेरी अपनी कोई मंजिल न रही, उसकी मंजिल को ही मैंने अपनी मंजिल बना लिया। और मुझे कुछ पता नहीं कि उसकी मंजिल क्या है, लेकिन होगी कोई। अपनी नियति को मैंने अलग न बांटा, मैंने अपने को अलग-थलग खड़ा न किया; मैं नदी की धार में बहने लगा। धार जहां ले जाए वहीं जाने लगा। और तत्क्षण सब रूपांतरित हो गया। संघर्ष सत्य को पाने का मार्ग नहीं है। समर्पण! और जैसे ही तुम समर्पित हो, अचानक तुम पाते हो, सब तरफ से उसके आशीर्वाद बरसने लगे। वे सदा से बरस रहे थे, लेकिन तुम उलटे जा रहे थे, और तुम उन्हें अभिशाप में रूपांतरित कर रहे थे। तुम अगर जीवन में दुखी हो तो जानना कि परमात्मा के विपरीत चल रहे हो। क्योंकि परमात्मा दुख जानता ही नहीं। दुख तुम्हारी जिद्द है। दुख परमात्मा की नियति से अपनी नियति अलग बनाने की चेष्टा का परिणाम है। समग्र से पृथक होने की जो तुम्हारी धारणा है वही तुम्हारा नरक है। समग्र के साथ तुम एक हो गए, स्वर्ग का द्वार खुल गया। आज इतना ही। 400

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