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परमात्मा का आशीर्वाद बरस रहा है
इसलिए तो संतों को तुम गाली देते हो, वे हंस कर निकल जाते हैं। इसलिए नहीं कि तुम कुत्ते हो और वे हाथी हैं, कि भौंकते रहें कुत्ते, हाथी कोई फिक्र नहीं करता। नहीं, यह तो बड़े अहंकार की भावना हो गई। वे सिर्फ इसलिए हंस कर निकल जाते हैं कि बात में कोई बल ही नहीं है; क्रोध के लायक मामला ही नहीं है; हंसने योग्य ही है। और तुम पर उन्हें दया आती है कि तुम कैसे झूठ में पड़े हो। - सत्य चोट करता है, क्योंकि तुम झूठे हो। सत्य कड़वा लगता है, क्योंकि तुम झूठे हो। जिसने भी हिम्मत की तुमसे सत्य कहने की उससे ही तुम्हारी दुश्मनी बन जाएगी।
ऐसा हुआ। मेरे एक परिचित थे, ख्यातिनाम व्यक्ति थे, सेठ गोविंद दास। संसद के सदस्य थे पचास वर्षों से। दुनिया में कोई आदमी इतने लंबे समय तक किसी संसद का सदस्य नहीं रहा। कोई सौ किताबों के लेखक थे। जीवन भर राजनीति और साहित्य में बिताया था। फिर उनके लड़के की मृत्यु हो गई। लड़का मध्यप्रदेश में उपमंत्री था। और उससे उन्हें बड़ी आशाएं थीं, बड़ी महत्वाकांक्षाएं थीं। उसकी मृत्यु जैसे उनकी ही महत्वाकांक्षा की मृत्यु थी। बड़े दुखी हो गए, आत्महत्या की बात सोचने लगे। और पहली दफा साधु-संतों के पास जाना शुरू किया।
उसी दुख की घड़ी में वे मेरे पास भी आ गए। मुझसे कहने लगे कि मैं आचार्य तुलसी के पास गया था, जैन मुनि, प्रसिद्ध जैन मुनि, और उनसे जब मैंने कहा कि मेरे बेटे की मृत्यु हो गई है, आप कुछ खोज कर बताएं कि उसका जन्म हो गया या नहीं, तो उन्होंने आंख बंद की और वे ध्यान में लीन हो गए। और फिर उन्होंने कहा कि आप बड़े सौभाग्यशाली हैं, आपका बेटा तो स्वर्ग में देवता हो गया।
बड़े प्रसन्न मेरे पास आए। कहने लगे, आदमी तो यह है आचार्य तुलसी। बड़े साधु-संन्यासी देखे, बाकी ऐसा गहरा खोजी नहीं देखा। मैंने उनसे कहा कि मैं एक संन्यासी को जानता हूं जो स्वर्ग-नरक के संबंध में तुलसी जी से बहुत आगे है। आप उनके पास जाएं। कभी आप इलाहाबाद जाएं तो वहां एक स्वामी राम हैं उनसे आप मिलें। उनका अन्वेषण स्वर्ग-नरक में तुलसी जी से बहुत आगे है। तुलसी जी तो अभी सिक्खड़ हैं।
जरूर कहा कि जाऊंगा। गए। राम स्वामी को मैंने खबर कर दी थी कि भई क्या-क्या कहना। उन्होंने आंख बंद की। आंख ही बंद नहीं की, बड़े हाथ-पैर फड़फड़ाए, और चिल्लाए, और चीखे, और खड़े हुए। सेठ जी बहुत प्रभावित हुए कि यह तो तुलसी जी ने भी नहीं किया था। फिर उन्होंने बिलकुल उसी भावदशा में कहा, एक ग्राम है जबलपुर के पास, सालीवाड़ा ग्राम उसका नाम है। सेठ जी चौंके। उनका ही गांव है छोटा; खेती-बाड़ी और बगीचा वहां है। सालीवाड़ा! और वहां एक पीपल का वृक्ष है बड़ा प्राचीन। तब तो पक्का हो गया, यह आदमी बड़ा गहरा है। है वृक्ष वहां। उसी वृक्ष पर तुम्हारा लड़का प्रेत होकर रहने लगा है। बहुत धक्का लगा। प्रेत? और राम ने कहा, थोड़ा सोच-समझ कर जाना, क्योंकि खतरनाक प्रेत हो गया है।
क्योंकि राजनीतिक जब मरते हैं तो खतरनाक प्रेत होते ही हैं। कभी राजनीतिक को स्वर्ग जाते सुना?
सेठ जी की सब आस्था डगमगा गई। इस आदमी पर भरोसा न आया कि यह भी कोई साधु है! और फिर कहा उस स्वामी ने, और जबलपुर में एक मंदिर है, गोपालदास जी का मंदिर। वह सेठ जी का ही पुश्तैनी मंदिर है। वहां भी तुम्हारा लड़का रोज शाम को छह बजे आता है, पूजा में सम्मिलित होने।
लौट कर आए। बिलकुल उदास हो गए थे। लड़का मरा था, उससे भी ज्यादा दुखी होकर लौटे। कहने लगे, यह कहां भेज दिया आपने! यह आदमी तो दुष्ट है। और यह सच नहीं हो सकता, यह बात बिलकुल झूठ है। यह मैं मान ही नहीं सकता। तुलसी जी बिलकुल ठीक हैं।
मैंने कहा, आप थोड़ा सोचो। तुलसी जी के ठीक होने का आपके लिए कोई प्रमाण है? आपकी वासना के, आपकी महत्वाकांक्षा के अनुकूल है। आपका बेटा और स्वर्ग में पैदा न हो, यह हो ही कैसे सकता है! अहंकार की
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