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ताओ उपनिषद भाग ६
आवश्यकता को पूरा करो; भूल कर मत काटना। और वासना की दौड़ को पहले कदम पर ही रोक देना। क्योंकि बाद में रुकना मुश्किल हो जाता है; दौड़ पकड़ जाती है तो ज्वार आ जाता है दौड़ का, बुखार आ जाता है। फिर रुकना मुश्किल हो जाता है। पहले कदम पर समझ कर रुक जाना। मत मांगना व्यर्थ की चीजें, क्योंकि उनको पाकर भी क्या करोगे? सार्थक वही है जो तृप्ति देता हो। और तब तुम निश्चित पाओगे कि जिंदगी में चैन की बांसुरी बजने लगी। _लाओत्से कहता है, 'जहां जिन्सों की पर्ति दस गनी या सौ गनी है।'
अगर लोग आवश्यकताओं से जीएं तो हजार गुनी पूर्ति है। तुम्हारी प्यास से पानी बहुत ज्यादा है। तुम्हारी भूख से भोजन बहुत ज्यादा है। तुम्हारे तन को ढंकने से बहुत ज्यादा कपड़े हो सकते हैं, कोई अड़चन नहीं है। लेकिन अगर तुम वासना का तन ढंकना चाहते हो तो सारी दुनिया के कपड़े तुम्हारी वासना के तन को भी न ढंक सकेंगे। तुम सारी दुनिया को नंगा कर दो तो भी तुम नंगे रहोगे; तुम्हारी वासना का तन न ढंक सकेगा। इसे पहचानो। यह जीवन में क्रांति का सूत्रपात है।
'लोग अपने जीवन को मूल्य दें, और दूर-दूर प्रव्रजन न करें।'
लाओत्से कहता है, जीवन को मूल्य दो। अहोभाग्य है कि तुम जीवित हो। और कोई चीज मूल्यवान नहीं है। जीवन मूल्यवान है। जीवन को तुम किसी चीज के लिए भी खोने के लिए तैयार मत होना, क्योंकि कोई भी चीज जीवन से ज्यादा मूल्यवान नहीं है।
लेकिन तुम जीवन को तो किसी भी चीज पर गंवाने को तैयार हो। एक आदमी ने गाली दे दी; तुम तैयार हो कि अब चाहे जान रहे कि जाए! इस आदमी ने किया ही क्या है? एक गाली पर तुम जीवन को गंवाने को तैयार हो? धन कमा कर रहेंगे, चाहे जान रहे कि जाए।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर में चोर घुसे और उन्होंने छाती पर उसके बंदूक रख दी और कहा कि चाबी दो, अन्यथा जीवन ! मुल्ला ने कहा, जीवन ले लो; चाबी न दे सकूँगा। चोर भी थोड़े हैरान हुए; कहा, नसरुद्दीन! थोड़ा सोच लो, क्या कह रहे हो? उसने कहा, जीवन तो मुझे मुफ्त मिला था; तिजोड़ी के लिए मैंने बड़ी ताकत लगाई, बड़ी मेहनत की। जीवन तुम ले लो; चाबी मैं न दे सकूँगा। और फिर यह भी है कि तिजोड़ी तो बुढ़ापे के लिए बचा कर रखी है। जीवन भला ले लो, चलेगा; तिजोड़ी असंभव।
कहां-कहां तुम जीवन को गंवा रहे हो, थोड़ा सोचो। कभी धन के लिए, कभी पद के लिए, प्रतिष्ठा के लिए। जीवन ऐसा लगता है, तुम्हें मुफ्त मिला है। जो सबसे ज्यादा बहुमूल्य है उसे तुम कहीं भी गंवाने को तैयार हो। जिससे ज्यादा मूल्यवान कुछ भी नहीं है, उसे तुम ऐसे फेंक रहे हो जैसे तुम्हें पता ही न हो कि तुम क्या फेंक रहे हो। और क्या कचरा तुम इकट्ठा करोगे जीवन गंवा कर?
लोग मेरे पास आते हैं। उनसे मैं कहता हूं, ध्यान करो। वे कहते हैं, फुर्सत नहीं। क्या कह रहे हैं वे? वे यह कह रहे हैं, जीवन के लिए फुर्सत नहीं है। प्रेम करो! फिर फुर्सत नहीं है। कब फुर्सत होगी? मरोगे तब फुर्सत होगी? तब कहोगे कि मर गए; अब कैसे ध्यान करें?
जीवन के लिए तुम्हारे पास फुर्सत ही नहीं है। कभी बैठते हो दो घड़ी, जैसे कोई भी काम न हो? उठाई बांसुरी, बजाने लगे; कि कुछ न किया, बैठ गए अपने बच्चों के साथ, खेलने लगे; कि कुछ न किया, लेट गए वृक्ष के तले, आने दी धूप, जाने दी छाया, पड़े रहे, कुछ न किया। नहीं, तुम कहोगे कि फुर्सत कहां है? तब तुम जीवन का स्वर सुन ही न पाओगे। क्योंकि जीवन के स्वर को केवल वे ही सुन सकते हैं जो बड़ी गहरी फुर्सत में हैं; काम जिन्हें व्यस्त नहीं करता।
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