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राज्य छोठा और निसर्गोठमुख छो
लेकिन तुम्हारे महात्मा तुम्हें उलटा समझा रहे हैं। वे तुम्हें समझा रहे हैं, आवश्यकता काटो। वे तुमसे कह रहे हैं, वासना को बढ़ाओ कि मोक्ष छूने लगे। कोहिनूर तो दो कौड़ी का है, मोक्ष पाओ। धन पाकर क्या करोगे? परमात्मा को पाना है। वे तुम्हारी वासना को तो भयंकर रूप से बड़ा कर रहे हैं।
क्या करोगे परमात्मा का? भूख लगेगी, खाओगे? प्यास लगेगी, पीओगे? बच्चा बीमार होगा तो सिल पर घिस कर दवाई बनाओगे परमात्मा की? क्या करोगे? मोक्ष का क्या करना है?
तुम्हारे तथाकथित महात्मा तुम्हारी वासनाओं को इस पृथ्वी से दूसरे लोक में ले जा रहे हैं, बदल नहीं रहे। और कोहिनूर तो मिल भी जाए; मोक्ष और उपद्रव हो गया। कोहिनूर तो फिर भी पृथ्वी का हिस्सा है, मिल सकता है; मोक्ष को कहां पाओगे? अब तुम बड़े बेचैन और पागल हुए।
. तो दुनिया में धन के दीवाने हैं और धर्म के दीवाने हैं। और मेरे अनुभव में ऐसा आया कि धन के दीवानों को तो थोड़ा-बहुत समझा दो तो समझ में भी आता है; धर्म का दीवाना सुनता ही नहीं। क्योंकि वह धर्म को पहले से ही महान समझ रहा है।
निश्चित ही, परमात्मा तुम्हारे जीवन में आएगा, लेकिन कोहिनूर की तरह नहीं। परमात्मा तुम्हारे जीवन में आएगा भूख में भोजन की तरह, प्यास में पानी की तरह, आनंद में एक गीत और नृत्य की तरह। मोक्ष तुम्हें मिल सकता है; मोक्ष तुम्हें मिलेगा जब तुम्हारी वासना छूट जाएगी, क्योंकि वही बंधन है। आवश्यकता मुक्ति है; वासना बंधन है। जब तुम सिर्फ आवश्यकता को पूरा कर लोगे, तुम पाओगे, तुम मुक्त हो।
कितनी छोटी सी जरूरत है जीवन की! थोड़े से श्रम से पूरी हो जाती है। और श्रम भी एक जरूरत है। इसे थोड़ा समझ लो। थोड़े से श्रम से आवश्यकता पूरी होती है। और उतना श्रम, वह भी जरूरी है, वह भी आवश्यकता है, नहीं तुम मुर्दा हो जाओगे। उतना श्रम तुम्हारे जीवन को जीवंत रखने के लिए जरूरी है। वासना पूरी नहीं होती और इतना श्रम करना पड़ता है कि जिसका कोई अंत नहीं। वह श्रम भी घातक हो जाता है।
जिस आदमी को चालीस साल के करीब हार्ट अटैक का दौरा न हो, समझना कि जीवन में असफल रहा। सफल आदमियों को तो होता ही है। सफलता का मतलब ही तब पता चलता है जब हार्ट अटैक हो। तुमने कभी किसी भिखारी को हार्ट अटैक होते देखा? होने का कोई कारण ही नहीं है। इतना तनाव भी तो होना चाहिए। हार्ट अटैक तो उनको होता है जिन्होंने धन कमा लिया और जो सोच रहे थे कि धन कमा कर भोगेंगे। जब भोगने का वक्त आता है, हार्ट अटैक हो जाता है। जब पद पर पहुंच गए तब हार्ट अटैक हो जाता है। जब सब ठीक होने के करीब मालूम हो रहा था तब खुद गैर-ठीक हो जाते हैं। जब भूख थी तब भोजन न किया; क्योंकि भोजन कैसे कर सकते हैं जब तक महल न निर्मित हो जाए? फिर महल निर्मित हो गया, भोजन तैयार हो गया, भूख न रही। अब खा नहीं सकते; अब भोजन कर नहीं सकते। क्योंकि इस बीच खुद नष्ट हो गए।
यह बड़े मजे की बात है। मकान तो बन जाता है; तुम खंडहर हो जाते हो। धन तो इकट्ठा हो जाता है; तुम बिलकुल निर्धन हो जाते हो। जिंदगी का साज-संवार पूरा होते-होते-होते जिसको संगीत उठाना था, वही मर जाता है। सितार तो तैयार रहती है, संगीतज्ञ मर जाता है।
आवश्यकताएं बहुत थोड़ी हैं। और जो भी व्यक्ति ठीक से पहचान ले क्या है आवश्यकता और क्या है वासना, उसे मैं बुद्धिमान कहता हूं। उसने वेद न जाने हों, उपनिषद न पढ़े हों; कोई जरूरत नहीं। और क्या इतनी छोटी सी बात के लायक बुद्धि तुम्हारे पास नहीं है? सबके पास है। इतनी बुद्धि तो परमात्मा ने सबको दी है। तुम उपयोग नहीं कर रहे। तुम चालबाज हो। तुम खुद को धोखा दे रहे हो। इतनी सीधी-सीधी बात है। इसके लिए कोई बहुत गणित थोड़े ही बिठाना पड़ेगा कि क्या वासना है और क्या आवश्यकता है?
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