Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 383
________________ राज्य छोटा ऑन निसर्गोठमुन्य छो होगा उतना दूसरों के लिए आतंक होगा। और बड़े देश का मतलब यह है कि विभिन्न-विभिन्न तरह के लोग, विभिन्न रीति-रिवाज, विभिन्न जीवन की शैलियां, उनको जबर्दस्ती एक ही थैले में बंद करने की कोशिश। कोई तृप्त न होगा। और बड़े राज्य का आकर्षण क्या है? गांधी का मन नहीं था कि भारत बंटे। अच्छी-अच्छी बातों में बड़ी अजीब बातें छिपाई जाती हैं। अखंड भारत! जनसंघी चिल्लाते रहते हैं : अखंड भारत! जितना बड़ा राज्य हो, उसके ऊपर कब्जा होने पर उतना ही बड़ा राजनीतिज्ञ हो जाता है। छोटे मुल्क के नेता की उतनी ही कीमत होती है जितना छोटा मुल्क। इसलिए कोई राजनीतिज्ञ देश को छोटा नहीं करना चाहता। इसलिए तो पाकिस्तान मुसलमानों को ही काट दिया बंगला देश में। इसलाम का राज्य है, इसलामी देश है, और मुसलमानों को काट दिया बंगला देश में। क्योंकि बंगला देश अलग हो, पाकिस्तान आधा मर गया उसी दिन अलग होते ही से। मियां भुट्टो आधे हैं अब। वह ताकत न रही, वह बल न रहा। क्योंकि बड़ा देश हो तो बड़ी ताकत। ___ मगर तुम भेद मत समझना कि कुछ भेद है। नागालैंड में हिंदुस्तान वही कर रहा है। नागा अलग रहना चाहते हैं। कश्मीर में पाकिस्तान, हिंदुस्तान दोनों ने वही किया। कश्मीर अलग रहना चाहता है। आज नहीं कल तमिलनाडु अलग रहना चाहेगा। तुम भी वही करोगे। तुम भी हिंदुस्तानी हो, लेकिन हिंदुस्तानी को काटोगे, उसी तरह जैसा बंगाल में हुआ। क्योंकि कोई नहीं चाहता राजनीतिज्ञ कि देश छोटा हो जाए। देश के छोटे होने का मतलब है कि राजनीतिज्ञ छोटा होता जाता है। अगर देश जिले के बराबर है तो प्रधानमंत्री की हैसियत डिप्टी कलेक्टर से ज्यादा नहीं है। जितना बड़ा हो देश उतने अहंकार का फैलाव और सुख है। फिर बड़ा देश हो तो हिंसा होगी, क्योंकि इतने विभिन्न लोगों को जबर्दस्ती एक ढांचे में ढालना पड़ेगा। अब चेष्टा चलती है कि हिंदी राष्ट्रभाषा हो जाए। यह जबर्दस्ती है, क्योंकि सारे मुल्क की राष्ट्रभाषा हिंदी है नहीं। तमिल तमिल को चाहता है, तेलगू तेलगू को चाहता है, बंगाली बंगाली को चाहता है, मराठी मराठी को चाहता है। और इन आकांक्षाओं में कुछ भी बुराई नहीं है। यह सीधी बात है कि अपनी मातृभाषा हर आदमी चाहता है बोले, प्रसन्न हो, गाए, अपने गीत रचे। अब जबर्दस्ती एक भाषा को थोपना पड़ेगा, क्योंकि देश बड़ा है, आज नहीं कल। और हिंदी की कलह चलती ही रहेगी। इस तरह हर चीज में जबर्दस्ती करनी पड़ती है। जहां जितने विभिन्न लोग होंगे, उतनी जबर्दस्ती हो जाएगी। बड़ा मुल्क एक बड़ा हिंसा का युद्ध हो जाता है। हर छोटी बात में कलह हो जाती है। और बड़े युद्ध का आकर्षण इसीलिए है कि लड़ना है किसी और बड़े दुश्मन से तो बड़े रहो; छोटे हो गए तो हार जाओगे। बड़े होने का रस लड़ाई के लिए है। - लाओत्से कहता है, 'छोटी आबादी वाला छोटा सा देश हो।' उसका मतलब यह है कि एक ही तरह के लोग, एक भाषा बोलने वाले लोग, एक रीति-रिवाज के लोग, जो परिवार की तरह रह सकें, ऐसा छोटा सा देश हो। कोई बड़े देशों की जरूरत नहीं है। वह राजनीति को जड़ से काट रहा है। राजनीतिज्ञ यह बरदाश्त न करेगा कि देश छोटे हों। राजनीतिज्ञ विस्तारवादी है, साम्राज्यवादी है। जितना बड़ा देश हो, उतना ही राजनीतिज्ञ की प्रतिभा बढ़ती जाती है और शिखर बड़ा होता जाता है। लाओत्से कह रहा है, धार्मिक आदमी चाहेगा कि देश छोटे हों, इतने छोटे हों कि वहां एक ही तरह के लोग एक परिवार को बना कर रह जाएं। अच्छी दुनिया तभी पैदा होगी जब देश बहुत छोटे हों। छोटे देश लड़ न सकेंगे, बड़ी लड़ाई न कर सकेंगे। होगी भी लड़ाई तो छोटी-मोटी होगी—जैसे हाकी का मैच हो गया या फुटबाल का मैच हो गया, ऐसी होगी। कोई लड़ाई बड़ी नहीं हो सकती। बड़ा देश बड़ी लड़ाई करता है। बड़े देशों के साथ महायुद्ध आते हैं। छोटे देशों के साथ अगर कभी होगा भी तो छोटा-मोटा झगड़ा होगा-एक गांव दूसरे गांव से झगड़ा कर ले। उसकी भी जरूरत न पड़े अगर लाओत्से की बात सुनी जाए। 373

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