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आक्रामक नहीं, आक्रांत ठोबा श्रेयस्कर हैं
शक्ति को छोटी करके मत मानना। सब शक्तियां विराट हैं; क्योंकि सभी शक्तियां परमात्मा से ही आती हैं। सभी शक्तियां विराट हैं। चाहे ऊपर से तुम्हें लहर छोटी दिखाई पड़ती हो, नीचे तो सागर ही छिपा है। क्रोध भी उसका है, काम भी उसका है। तुम छोटा करके मत मानना। खड़ाऊंओं से हल न होगा।
जिस दिन तुम यह समझोगे कि यह सभी विराट का है, और सभी विराट है, उस दिन तुम लड़ाई तो उठाओगे ही नहीं। विराट से क्या लड़ना है? तब तुम दर्शक हो जाओगे, द्रष्टा हो जाओगे। और जैसे ही कोई व्यक्ति अपने भीतर साक्षी हो जाता है, हट जाता है, लड़ाई नहीं करता, चुपचाप देखता है। जो भी विराट की लीला चल रही है उसका निरीक्षण करता है, बिना किसी निर्णय के। न तो कहता है यह बुरा है, न कहता है वह भला है। न तो ब्रह्मचर्य के पक्ष में है, न काम के पक्ष में है। देखता है कि क्या हो रहा है, कैसा यह खेल है! कि काम उठता है, अगर तुम उस बीच उसके साथ जुड़ जाओ, साक्षी-भाव खो जाए तो भोग लोगे; अगर उस बीच तुम उससे लड़ने लगो तो ब्रह्मचर्य का संकल्प कर लोगे। लेकिन अगर तुम सिर्फ देखते रहो, कर्ता बनो ही न, इधर न उधर, इस तरफ न उस तरफ, न पक्ष में न विपक्ष में, तो तुम एक बड़े अनूठे रहस्य पर पहुंचते हो; वही काम-ऊर्जा वापस तुम में समा जाती है। तुमसे ही उठी थी; वर्तुल पूरा हो जाता है। तुम उसका कोई उपयोग नहीं करते-न लड़ने में, न भोगने में। उपयोग ही नहीं होता। कामवासना फिर वापस अपने में समा जाती है। और जब कामवासना वापस तुम में समाती है तब तुम इतनी मधुरिमा से भर जाओगे, ऐसी मिठास उठने लगेगी पूरे व्यक्तित्व में, ऐसी गहन शांति का तुम्हें अनुभव होगा जो बिलकुल अपरिचित है। कोई सुर बजने लगेगा तुम्हारे भीतर जब शक्ति तुम्हारी तुम में वापस लौट आती है।
वह मिलन है। उसी का नाम योग है। जहां से उठी शक्ति वहीं वापस मिल जाए, उसका नाम योग है। वह परम संभोग है। वहां तुमने अपने को ही अपने में भोग लिया। वहां एक ने एक को ही भोग लिया। वहां दूसरे की जरूरत न रही; वहां तुम्हें अपना ही स्वाद आ गया। और वह स्वाद इतना महान है कि सब स्वाद फीके पड़ जाते हैं।
और वह नृत्य इतना अनूठा है। जब शक्ति तुममें नाचती हुई वापस लौट आती है, बिना संसार में खोए, बिना भोगी बने, बिना त्यागी बने, जब ऊर्जा तुममें वापस लौट आती है नाचती हुई, तब तुम मंदिर बन जाते हो।
उस घड़ी में जो घटता है उसका नाम समाधि है।
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आज इतना ही।
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