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ताओ उपनिषद भाग ६
परमात्मा के जगत में, तुम चाहो क्यू में खड़े हो जाओ, तुम ही अंतिम हो, तुम ही प्रथम हो। कुछ और बातें समझ लें, फिर हम इस सूत्र में आसानी से गति कर पाएंगे।
प्रथम होने की दौड़ तुम्हारे भीतर की जरूर किसी गहरी हीनता से पैदा होती है। तुम क्यों दूसरे को पीछे करना चाहते हो? तुम डरते हो कि कहीं दूसरा तुम्हें पीछे न कर दे। तुम डरते हो कि कहीं तुम्हारी हीनता जगत में प्रकट न हो जाए, कोई तुम्हें हरा न दे।।
मेरा अनुभव है कि लोग प्रतिपल सुरक्षा में लगे रहते हैं। तुम अपने निकटतम मित्रों के साथ भी सुरक्षा का उपाय करते रहते हो। कोई ऐसी बात न कह दे, कोई ऐसा विवाद न उठ आए, जिसमें तुम हार जाओ। तुम ऐसी चर्चा में नहीं पड़ते जिसमें कोई संघर्ष पैदा हो जाए, कोई प्रतिस्पर्धा हो जाए। तुम अपने को बचाए फिरते हो। तुम सब तरफ से यह कोशिश करते हो कि कोई ऐसी स्थिति न बने जिसमें तुम किसी भांति पीछे दिखाई पड़ जाओ।
इसका सीधा-सीधा अर्थ है, गहनता में तुम जानते ही हो कि तुम पीछे हो और हीन हो। अन्यथा यह इतनी हीनता की ग्रंथि क्यों? इतना भय किसका? अगर यह बात तुम्हें ठीक से समझ आ जाए तो हीनता की ग्रंथि से ही प्रथम होने की दौड़ पैदा होती है। इसलिए राजनीति में तुम पाओगे कि सबसे ज्यादा हीनता-ग्रंथि पीड़ित लोग तुम्हें मिलेंगे। या तो पागलखाने में मिलेंगे और या राजधानियों में मिलेंगे। पागल भी वे इसीलिए हो गए हैं कि हीनता ने उनको इतना-इतना हीन कर दिया कि वे कल्पनाएं करने लगे अपने कुछ होने की।
जब हिटलर जिंदा था तो पागलखानों में ऐसे कई लोग थे जिन्होंने अपने को एडोल्फ हिटलर घोषित कर दिया। क्या मुश्किल थी उन बेचारों की? उनकी मुश्किल यह थी कि हो तो न सके वे एडोल्फ हिटलर, तब एक ही उपाय रहा अपनी हीनता से मुक्त होने का कि उन्होंने मान ही लिया कि वे एडोल्फ हिटलर हैं। और तुम उनको समझा भी नहीं सकते किसी तरह कि वे नहीं हैं। पागल के भीतर प्रवेश करना मुश्किल है। वह सब तरफ से दुर्ग खड़ा कर लेता है।
खलिल जिब्रान ने लिखा है कि उसका एक मित्र पागल हो गया तो वह उसे मिलने गया। वह पागलखाने की दीवार के भीतर बगीचे की एक बेंच पर बैठा हुआ था, बड़ा प्रसन्न था। जिब्रान ने सोचा था उदास पाऊंगा उसे प्रसन्न पाकर जिब्रान थोड़ा उदास हुआ। वह इतना प्रसन्न था कि जैसे उसे पता ही न हो कि वह पागलखाने में है। और जिब्रान तो सांत्वना, धीरज धराने आया था। उसकी कोई जगह न रही। वह बड़ा ही प्रसन्न था। इतना प्रसन्न वह कभी बाहर नहीं था। जिब्रान उसके पास बैठ गया। उसकी प्रसन्नता देख कर जिब्रान ने कहा कि तुम्हें पता है कि तुम कहां हो?
उस आदमी ने कहा, मुझे और पता न होगा? मैं उस पागलखाने को, जिससे तुम आ रहे हो, दीवार के उस तरफ छोड़ आया। यहां बड़ी शांति है। थोड़े से लोग हैं, और सभी समझदार। अब भूल कर मैं तुम्हारे पागलखाने में वापस नहीं आना चाहता।
जिब्रान गया था सांत्वना बंधाने, कोई उपाय न था। पागलपन के घेरे के भीतर तुम प्रवेश नहीं कर सकते। तुम सोचते हो कि वे पागल हैं और पागल सोचते हैं कि तुम सब पागल हो।
__हर आदमी अपने आस-पास एक घेरा बना लेता है; उस घेरे के भीतर जीता है। तुम अपने को जो समझते हो, दुनिया में कोई तुमको वैसा नहीं समझता। इस पर तुमने कभी, खयाल किया? तुम अपने को सुंदर समझते हो; कोई उतना सुंदर तुम्हें नहीं समझता। तुम अपने को बुद्धिमान समझते हो; उतना बुद्धिमान तुम्हें कोई नहीं समझता। न तुम्हारी पत्नी समझती है, न तुम्हारा बेटा समझता है। तुम अपने भीतर अपने को न मालूम क्या समझते रहते हो। वह पागलपन है। वही थोड़ा और बढ़ जाए...।
पंडित नेहरू एक पागलखाने में गए बरेली। और एक पागल उस दिन मुक्त हो रहा था, तो उनके हाथ से मुक्त करवाया गया। ऐसे ही पूछ लिया उत्सुकतावश कि इस आदमी का पागलपन क्या था?
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