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ताओ उपनिषद भाग ६
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ताजा, कोमलं; पापी है बूढ़े की भांति । सभी पापी बूढ़े होते हैं। अंग्रेजी में मुहावरा है : ओल्ड सिनर, बूढ़े पापी । असल में, सभी पापी बूढ़े होते हैं। कोई बच्चा पापी नहीं होता । पाप के लिए बड़ा अनुभव चाहिए, जीवन के उतार-चढ़ाव देखने चाहिए। पाप के लिए बड़ी शिक्षा चाहिए। सभी बच्चे पुण्यवान होते हैं।
असल में, पुण्य स्वभाव है, शिक्षा नहीं । पुण्य स्वभाव है, संस्कृति नहीं । पुण्य कोई सिखावन नहीं है, पुण्य तो स्वाभाविक ढंग है। पाप अनुभव है । और जितने ज्यादा लोग अनुभवी होते जाते हैं उतने पाप में कुशल होते जाते हैं, उतना झूठ, बेईमानी, उतना हिसाब-किताब, उतना गणित उनके जीवन में बैठने लगता है। उतना ही हृदय उनका नष्ट होता जाता है।
'लेकिन स्वर्ग का ढंग निष्पक्ष है।'
यह एक बहुत अनूठी बात कह रहा है, और बड़ी विरोधाभासी, लाओत्से ।
'लेकिन स्वर्ग का ढंग निष्पक्ष है; वह केवल सज्जन का साथ देता है।'
दूसरे वचन से तो लगता है निष्पक्ष नहीं है। स्वर्ग का ढंग निष्पक्ष है; वह केवल सज्जन का साथ देता है। इसका तो मतलब हुआ कि सज्जन के पक्ष में है। निष्पक्ष कहां? ऐसा वचनः बट दि वे ऑफ हेवन इज़ इंपार्शियल; इट साइड्स ओनली विद दि गुड मैन। इस विरोधाभासी वचन को समझने की कोशिश करना ।
स्वर्ग का ढंग निष्पक्ष है; यहां तक तो कोई कठिनाई न थी । वर्षा पापी पर भी होती है, पुण्यात्मा पर भी। सूरज निकलता है तो पापी को भी प्रकाश देता है, पुण्यात्मा को भी । फूल खिलते हैं तो पुण्यात्माओं के लिए ही नहीं खिलते, पापी के लिए भी खिलते हैं। अगर इतनी ही बात होती कि स्वर्ग का ढंग निष्पक्ष है तब तो कोई हर्ज न था । लेकिन दूसरे वचन में लाओत्से बड़े से बड़ा विरोधाभास खड़ा करता है। और लाओत्से लाजवाब है विरोधाभास खड़े करने में। वह कहता है, वह केवल सज्जन का साथ देता है। दूसरे वचन में लाओत्से कह रहा है, फूल खिलते हैं केवल पुण्यात्मा के लिए, सूरज निकलता है केवल पुण्यात्मा के लिए, रोशनी है पुण्यात्मा के लिए, वर्षा होती है पुण्यात्मा के लिए, पापी के लिए नहीं। क्या अर्थ होगा इसका ?
इसका अर्थ सीधा है। और लाओत्से के वचन कितने ही टेढ़े-मेढ़े लगें, अगर तुम्हें जरा ही समझ हो तो उसकी कुंजी सीधी है। वह यह कह रहा है कि परमात्मा तो निष्पक्ष है, सूरज निकलता है तो पुण्यात्मा के लिए ही नहीं निकलता, लेकिन पुण्यात्मा ही उसका लाभ ले पाता है; पापी तो आंखें बंद किए खड़ा रह जाता है। वर्षा होती है। तो कोई परमात्मा पुण्यात्मा के लिए ही वर्षा नहीं करता, लेकिन पुण्यात्मा ही नाचता है उस वर्षा में; पापी तो घर के भीतर छिप जाता है।
कबीर ने कहा है: चहुं दिशि दमके दामिनी, भीजै दास कबीर ।
पापी तो छिपे हैं अपनी-अपनी गुफाओं में, चारों तरफ चमकती है उसकी रोशनी, बिजलियां चमकती हैं; दास कबीर भीज रहा है। कुछ जीवन की बात ऐसी है कि फूल की सुगंध केवल फूल के खिलने से तुम्हें नहीं मिलती, तुम्हारे नासापुटों की तैयारी भी चाहिए। और तुम अगर मछलियों की ही गंध को सुगंध मानते रहे हो तो फूल खिलेंगे और तुम्हारे लिए नहीं खिलेंगे। नहीं कि तुम्हारे लिए नहीं खिले, बल्कि तुम खुद अपने हाथ से वंचित रह जाओगे ।
जिब्रान की एक छोटी सी कहानी है। एक आदमी एक रास्ते पर चलते-चलते गिर पड़ा; भरी दोपहरी थी; बेहोश हो गया। जिस राह पर बेहोश हुआ उस राह के दोनों तरफ गंधियों की दुकानें थीं, सुगंध बेचने वालों की दुकानें थीं। दुकानदार भागे, उनके पास जो श्रेष्ठतम गंध थी...। क्योंकि अगर श्रेष्ठतम गंध सुंघाई जाए तो बेहोश आदमी होश में आ जाता है। गंध उसके प्राणों तक चली जाती है, और बड़ी धीमी सी सरसराहट देती है उसकी चेतना को, और वह जाग जाता है। उन्होंने गंध सुंघाई, लेकिन वह आदमी हाथ-पैर तड़फाने लगा; होश में न आया। जब वे उसे