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प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए जिम्मेवार है
गंध सुंघाएं तो वह और बेचैन मालूम पड़े। भीड़ इकट्ठी हो गई। एक आदमी भीड़ में खड़ा था। उसने कहा, ठहरो, तुम उसे मार डालोगे। मैं उसे जानता हूं, वह एक मछलीमार है और मछलियां बेचने का काम करता है। मैं भी पहले वही काम करता था। वह केवल एक ही गंध जानता है, वह मछलियों की सुगंध। उसकी टोकरी कहां है?
पास ही भीड़ में उसकी टोकरी पड़ी थी। उस आदमी ने उस टोकरी पर थोड़ा सा, जिसकी मछलियां वह बेच . आया था, टोकरी पर थोड़ा सा पानी छिड़का और उस आदमी के मुंह पर टोकरी रख दी। उसने गहरी सांस ली; होश में आ गया। और उसने कहा कि वह कौन है जिसने यह सुगंध मेरे पास लाई! ये तो मुझे मार डालते। ये लोग मेरी जान लिए ले रहे थे।
सूर्य निकलता है। किसी के लिए नहीं, सूर्य तो सिर्फ निकलता है। निष्पक्ष है। स्वर्ग का नियम निष्पक्ष है। मगर तुम अपनी आंखें बंद किए खड़े रह सकते हो। तो सूर्य तुम्हारी आंखें जबरदस्ती नहीं खोलेगा। जिनकी खुली आंखें हैं वे दर्शन कर लेंगे, उनके सिर नमस्कार में झुक जाएंगे; जिनकी आंखें बंद हैं वे वंचित रह जाएंगे।
इसलिए लाओत्से कहता है, स्वर्ग का राज्य और उसके नियम तो निष्पक्ष हैं, लेकिन वह केवल सज्जन का साथ देता है।
ऐसा नहीं कि वह सज्जन का साथ देता है, संत का साथ देता है, बल्कि ऐसा कि संत ही समझ पाता है कि उसके साथ कैसे हो जाएं। पापी तो लड़ता है धार से, उलटा बहता है, उलटा बहने की कोशिश करता है। बह तो नहीं सकता; हारेगा, थकेगा, टूटेगा। संत धार के साथ जाता है। पापी गंगोत्री की तरफ तैरता है; लड़ने में उसे मजा है। पुण्यात्मा गंगा के हाथ में अपने को छोड़ देता है; सागर की तरफ बहने लगता है।
परमात्मा के साथ होने का ढंग ही तो संतत्व है। जिसको वह ढंग आ गया, उसके लिए ही फूल खिलते हैं; उसके लिए ही चांद-तारे चलते हैं; उसके लिए सूरज निकलता है। उसके लिए जीवन एक धन्यता है, अहोभाव है।
तुम्हारे लिए भी वह सब हो रहा है, लेकिन तुम कुछ उलटे खड़े हो। और तुम्हें जो मिलता है तुम उसके प्रति भी धन्यवाद नहीं देते। इसलिए और जो मिल सकता था उससे वंचित रह जाते हो। . मैंने सुना है, एक बहुत बड़ा अमीर आदमी था। उसने अपने गांव के सब गरीब लोगों के लिए, भिखमंगों के लिए माहवारी दान बांध दिया था। किसी भिखमंगे को दस रुपये मिलते महीने में, किसी को बीस रुपये मिलते। वे हर एक तारीख को आकर अपने पैसे ले जाते थे। वर्षों से ऐसा चल रहा था। एक भिखमंगा था जो बहुत ही गरीब था और जिसका बड़ा परिवार था। उसे पचास रुपये महीने मिलते थे। वह हर एक तारीख को आकर अपने रुपये लेकर जाता था।
एक तारीख आई। वह रुपये लेने आया, बूढ़ा भिखारी। लेकिन धनी के मैनेजर ने कहा कि भई, थोड़ा हेर-फेर हुआ है। पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये अब से तुम्हें मिलेंगे। वह भिखारी बहुत नाराज हो गया। उसने कहा, क्या मतलब? सदा से मुझे पचास मिलते रहे हैं। और बिना पचास लिए मैं यहां से न हटूंगा। क्या कारण है पच्चीस देने का? मैनेजर ने कहा कि जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उनकी लड़की का विवाह है और उस विवाह में बहुत खर्च होगा। और यह कोई साधारण विवाह नहीं है। उनकी एक ही लड़की है, करोड़ों का खर्च है। इसलिए अभी संपत्ति की थोड़ी असुविधा है। पच्चीस ही मिलेंगे। उस भिखारी ने जोर से टेबल पीटी और उसने कहा, इसका क्या मतलब? तुमने मुझे क्या समझा है? मैं कोई बिरला है? मेरे पैसे काट कर और अपनी लड़की की शादी? अगर अपनी लड़की की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओ।
कई सालों से उसे पचास रुपये मिल रहे हैं; वह आदी हो गया है, अधिकारी हो गया है; वह उनको अपने मान रहा है। उसमें से पच्चीस काटने पर उसको विरोध है।
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