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राज्य छोटा और निसर्गोठमुन्य हो
कि तुम ऐसा सोचो कि गांधी ने गालियां न दी होती और तुमने जोड़ दी होती रिपोर्ट में तो गांधी क्या कहते? क्या तुम्हारी पीठ ठोंकते? वे तुम्हें अलग करते उसी वक्त। वे कहते, तुमने यह झूठ कैसे जोड़ा?
गालियां न दी जाएं और जोड़ दी जाएं तो झूठ; और गालियां दी जाएं और निकाल ली जाएं तो झूठ नहीं? वह निषेधात्मक झूठ। तुम गांधी की प्रतिमा को सीधा-सीधा क्यों नहीं रखते? फिर बाद में इतिहास में लोग लिखेंगे कि गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ कभी एक अपशब्द का उपयोग नहीं किया! और गांधी की प्रतिमा झूठी होगी। फिर उससे लोग अनुप्राणित होते हैं, प्रभावित होते हैं।
गांधी कहते थे कि मेरा राजनीति में कोई बड़ा लगाव नहीं है। लेकिन सुभाष के खिलाफ उन्होंने पट्टाभि सीतारामैया को खड़ा किया चुनाव में। फिर एक क्षण में भूल हो गई उनसे, क्योंकि सुभाष जीत गए और पट्टाभि हार गए, तो गांधी के मुंह से निकल गया कि यह मेरी हार है। पट्टाभि सीतारामैया की हार मेरी हार है तो पट्टाभि सीतारामैया की जीत गांधी की जीत होती। निष्पक्ष नहीं हैं! सुभाष को हराने के लिए पूरी-पूरी योजना थी, कुशल राजनीति थी। लेकिन ये सब तथ्य धीरे-धीरे हटा दिए जाते हैं।
गांधी के अंतिम जीवन में उनको खुद ही शक आ गया कि जीवन भर का ब्रह्मचर्य कुछ सार नहीं लाया, तो जीवन के अंत में तंत्र की तरफ झुके। जिस तंत्र की मैं बात कर रहा हूं उसको जीवन के अंत में गांधी झुके। मुझे गालियां पड़ रही हैं, पड़ती रहेंगी। लेकिन गांधी का पूरा जीवन कहता है कि आखिर में उनको याद आई कि वह जीवन भर उन्होंने व्यर्थ गंवाया। यह ब्रह्मचर्य ऐसे उपलब्ध नहीं होता! ब्रह्मचर्य उपलब्ध होने के रास्ते और हैं! तब वे तंत्र की तरफ झुके। लेकिन शिष्य घबड़ाए, क्योंकि शिष्यों ने तो पूरी जिंदगी उनका पीछा ब्रह्मचर्य के कारण किया था कि वे महान ब्रह्मचारी हैं। और उन्होंने भी ब्रह्मचर्य के व्रत लिए थे; अब यह क्या होने लगा!
तो तुम चकित होओगे कि गांधी के जीवन का वह हिस्सा शिष्यों ने छोड़ ही दिया, उसकी वे बात ही नहीं करते। गांधी के जीवन लिखे जाते हैं, किताबें छापी जाती हैं; वह हिस्सा छोड़ दिया जाता है। तो एक झूठी प्रतिमा बनाई जाती है। जब कि जीवन भर के अनुभव के बाद गांधी का यह खयाल कि तंत्र में शायद कोई रास्ता हो ब्रह्मचर्य
को पाने का, इस बात की घोषणा है कि संघर्ष का रास्ता कहीं भी नहीं ले जाता। गांधी जैसे महापुरुष को भी नहीं ले - जाता, तुम्हें कहां ले जाएगा!
. लेकिन गांधी के शिष्यों ने गांधी की गर्दन पकड़ ली जब गांधी ने तंत्र के प्रयोग किए। शिष्य भी छोड़ कर जाने लगे। शिष्यों में भी बात फैल गई कि यह आदमी बिगड़ गया है, आखिरी में पतन हो गया। वे ही शिष्य अब बड़े-बड़े गांधीवादी हैं जिन्होंने अंत में गांधी को त्याग दिया। लेकिन फिर सत्ता आई गांधी के शिष्यों के हाथ में। जो छोड़ कर चले गए थे वे वापस लौट आए। अब वे बड़े-बड़े गांधीवादी हैं। लेकिन वे सब गांधी के अंतिम क्षण में विरोध में थे, क्योंकि गांधी एक ऐसा काम कर रहे थे जो उनकी समझ के बिलकुल बाहर था। गांधी एक नग्न युवती के साथ एक साल तक बिस्तर पर साथ-साथ सोते रहे। यह उनके लिए घबड़ाने वाली बात थी।
मगर वह प्रयोग भी गांधी का बहुत गहरा नहीं जा सका, क्योंकि जीवन भर का संस्कार और जीवन भर की धारणा। तो उन्होंने उस प्रयोग को भी अपनी ही परिभाषा दे दी; वह तंत्र का प्रयोग न रहा। लिया उन्होंने तंत्र से, ध्यान उनका तंत्र पर गया; लेकिन परिभाषा उन्होंने अपनी दे दी। ऐसे ही तो सत्य विकृत होते हैं। उन्होंने कहा कि मैं यह तंत्र का प्रयोग इसलिए नहीं कर रहा हूं कि मुझे इससे कुछ पाना है; सिर्फ एक कसौटी! मैं जांचना चाहता हूं कि मेरे भीतर ब्रह्मचर्य अभी तक गहरे गया है या नहीं। अगर नग्न युवती मेरे पास सोई हो रात भर तो मेरे मन में वासना उठती है या नहीं, इसकी मैं जांच कर रहा हूं। - अगर वासना न उठती हो तो जांच करनी पड़ेगी? जांच की जरूरत है? तुम्हारे सिर में जब दर्द नहीं होता तो
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