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लाओत्से को देखता हूं-बहुत सी स्थितियों में। कभी जलप्रपात के पास बैठे हुए। जल की कोमल धार गिरती है कठोर चट्टानों पर। कोई सोच भी नहीं सकता कि चट्टानें राह दे देंगी; कोई तर्क-विचार नहीं कर सकता कि चट्टानें टूटेंगी और पानी मार्ग बना लेगा। लेकिन जीवन में होता यही है। चट्टानें धीरे-धीरे टूट कर रेत हो जाती हैं, बह जाती हैं, और जल मार्ग बना लेता है। पहले क्षण में तो जल को भी भरोसा न आ सकता था कि जिस चट्टान पर गिर रहा हूं वह टूट सकती है। लेकिन सतत, कमजोर भी सातत्य से बलवान हो जाता है। लाओत्से जलप्रपात के पास ऐसे ही नहीं बैठा है। जलप्रपात उसके लिए एक बहुत बड़ा विमर्श, ध्यान हो गया। उसने कुछ पा लिया। उसने देख लिया कमजोर का बल और बलवान की कमजोरी। पत्थर टूट गया, बह
गया; जल को न हटा पाया, न तोड़ पाया। कमजोर को तुम तोड़ोगे कैसे? कमजोर का अर्थ ही है कि जो टूटा हुआ है, जो नम्य है, जो टूटने को तैयार है। जो टूटने को तैयार है वह चुनौती नहीं देता कि मुझे तोड़ो। जो टूटने को तैयार है उससे किसी के भी मन में यह अहंकार नहीं जगता कि इसे तोडूं। पानी तो तरल है, टूटा ही हुआ है, बह ही रहा है। और उसे क्या बहाओगे? चट्टान सख्त है, कठोर है, जमी है; बहने की उसकी कोई क्षमता नहीं है। और जब भी तरल और कठोर में संघर्ष होगा, तरल जीत जाएगा, कठोर टूटेगा। क्योंकि तरल जीवंत है और कठोर मृत है।
जीवन सदा कमजोर है, इसे जितनी बार दोहराया जाए, उतना भी कम है। जीवन सदा कमजोर है; मृत्यु सदा मजबूत है। लेकिन कितनी बार मृत्यु दुनिया में घटती है, फिर भी मृत्यु जीत नहीं पाती। रोज घटती है, फिर भी हारी हुई है। जीवन फिर-फिर मृत्यु को पार करके ऊपर उठ आता है। हर मृत्यु के बाद जीवन पुनः अंकुरित हो जाता है। हर कब्र पर फूल खिल जाते हैं; हर लाश की राख पर फिर नये अंकुर उठ आते हैं। मृत्यु अनंत-अनंत बार आई है; जीवन को मिटा नहीं पाती। और जीवन कितना कमजोर है? जीवन से कमजोर और क्या?
मृत्यु चट्टान जैसी है; जीवन जलधार जैसा। लेकिन अंततः मृत्यु राख होकर बह जाती है; जीवन बचा रहता है। जिसने यह जान लिया उसने अमृत का सूत्र जान लिया। उसने जान लिया कि मरना चाहे कितनी ही बार पड़े, मृत्यु जीत न सकेगी। मृत्यु मुर्दा है, उसके जीतने का उपाय कहां? जीवन जीवंत है, उसके हारने की संभावना कहां?
लाओत्से को और स्थितियों में भी देखता हूं। देखता है लाओत्सेः एक छोटा सा बच्चा एक बड़े बलवान आदमी के कंधे पर बैठा जा रहा है। खड़ा है किनारे; राह से लोग गुजर रहे हैं। वह सोचता है, आदमी इतना बलवान है, कमजोर बच्चे को क्यों कंधे पर लिए है? बच्चे की कोमलता ही, उसकी कमजोरी ही, उसे कंधे पर चढ़ा देती है। बलवान नीचे हो जाता है; कमजोर ऊपर हो जाता है।
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