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ताओ उपनिषद भाग ६
की व्यवस्था के बिलकुल प्रतिकूल है, कोई मारे, उसकी ऊर्जा को पी जाओ तो ऐसी घटनाएं घटती हैं कि कमजोर से कमजोर आदमी बलवान से बलवान आदमी को चारों खाने चित्त गिरा देता है। सिर्फ उसकी ऊर्जा पीकर।
अभी पश्चिम में नारियों का बड़ा विराट आंदोलन चल रहा है। और पश्चिम के सभी बड़े नगरों में जुजुत्सु की क्लासें हैं। खासकर स्त्रियों के लिए। स्त्रियों का जो आंदोलन चल रहा है स्वातंत्र्य का। क्योंकि स्त्री पुरुष से और किसी तरह से तो लड़ नहीं सकती, मगर अगर जुजुत्सु सीख ले तो तुम्हारा पहलवान भी स्त्री को हरा नहीं सकता।
ऊर्जा को पी जाने की कला! दूसरे ने घूसा मारा, तुम जगह दे दो अपने शरीर में उसको। कड़े मत हो जाओ, हड्डियां तुम्हारी मजबूत न हो जाएं। अन्यथा टूट जाएंगी। तुम उसको पी लो। उसके घुसे को पड़ जाने दो, जैसे तकिए पर पड़ रहा हो और तकिया जगह दे दे, ऐसा तुम अपने शरीर को तकिए जैसी जगह दे जाने दो। तुम अचानक पाओगे, एक ऊर्जा का बड़ा गहन प्रवाह तुम्हारे शरीर में प्रविष्ट हो गया और वह आदमी कमजोर हो गया। दस-पांच 5से उसे मारने दो और उसे कमजोर होने दो। कहते हैं कि अगर तीन मिनट कोई व्यक्ति जुजुत्सु की हालत में रह जाए तो सबल से सबल व्यक्ति अपने आप ही हांफने लगेगा और गिर जाएगा।
और यह कोई कथा नहीं है। लाखों लोग जुजुत्सु का प्रयोग करते हैं जापान और चीन में। और अब पश्चिम में उसकी हवा जोर से फैल रही है। और मैं भी मानता हूं कि स्त्रियों को हर जगह वह कला सीख लेनी चाहिए। अन्यथा स्त्री कभी भी बलवान न हो सकेगी। स्त्री का बल उसकी निर्बलता में है। इसलिए अगर मनुष्य-जाति को कभी भी स्त्रियों को मुक्त होते देखना है तो लाओत्से स्त्रियों का गुरु होगा, और कोई गुरु नहीं हो सकता। क्योंकि लाओत्से ने सिखाई है कलाः निर्बल कैसे बलवान है। फिर कोई स्त्री पर बलात्कार नहीं कर सकता। जुजुत्सु जानने वाली स्त्री पर कभी कोई बलात्कार नहीं कर सकता। जुजुत्सु जानने वाली स्त्री पर गुंडे हमला नहीं कर सकते।
पर वह एक अनूठी ही कला है। अब पश्चिम में उस पर काफी काम चल रहा है, और वैज्ञानिक भी राजी होते जा रहे हैं कि बात सच है। क्योंकि एक बूंसे का अर्थ होता है काफी ऊर्जा वह आदमी अपने शरीर की इकट्ठी कर रहा है और फेंक रहा है। तुम उसे वापस मत लौटाओ; तुम उसे लीन कर लो। तुम उसे पी जाओ। तुम उसे निमज्जित हो जाने दो। तुम उसे पचा लो।
'जो संसार की गालियों को अपने में समाहित कर लेता है, वह राज्य का संरक्षक है।'
वही समाज का संरक्षक है। संत समाज की सुरक्षा है। संत के नीचे जब भी कोई समाज जीता है तो बड़ी सुरक्षा में है। संत तो ऐसे है जैसे बहुत बड़ा वृक्ष, जिसके नीचे छाया है, जिसकी छाया में तुम बैठ सकते हो। और जिसकी छाया को कोई भी डगमगा नहीं सकता, और जिसके नीचे शीतलता की वर्षा होती ही रहेगी। क्योंकि उसने वह कीमिया सीख ली है कि वह संसार की गालियों को शांति में बदल लेता है; संसार के क्रोध को प्रेम में बदल लेता है।
यही तो असली अल्केमी है। तुमने अल्केमी और अल्केमी को मानने वाले लोगों का नाम सुना होगा। और तुमने सुना होगा कि वे लोहे को सोने में बदलने की कोशिश करते हैं। तुम यह मत समझना कि वे लोहे को सोने में बदलने की कोशिश करते हैं। लोहा और सोना तो प्रतीक हैं। लोहा है क्रोध; सोना है प्रेम। लोहा है मूर्छा; सोना है जागृति। लोहा है घृणा, ईर्ष्या, मत्सर; सोना है करुणा। लोहे को सोने में बदल लेने का कुल इतना ही अर्थ है कि दुनिया तुम्हें कुरु भी दे, कांटे फेंके, लेकिन तुम्हारे भीतर वह कला होनी चाहिए कि कांटे तुम्हारे भीतर फूल हो जाएं।
और यह कला है। अगर तुम लड़ो मत। अगर तुम स्वीकार कर लो। अगर तुम अहोभाव से स्वीकार कर लो। अगर तुम गाली को भी अहोभाव से स्वीकार कर लो कि जरूर इसके पीछे भी कोई राज होगा, जरूर इसके पीछे भी कोई छिपा रहस्य होगा। और परमात्मा ने अगर ऐसी स्थिति बनाई है कि गाली मिले तो वह हमसे ज्यादा जानता है। जिसने दिया है जन्म, जिसने दिया है जीवन, वह निश्चित हमसे ज्यादा जानता है। अस्तित्व हमसे बहुत बड़ा है। इस
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