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वन में उत्तरदायित्व की समस्या बड़ी से बड़ी समस्या है। और अगर ठीक समाधान न खोजा जाए तो जीवन की पूरी यात्रा ही भ्रांत और भटक सकती है। साधारणतः सदा ही दूसरे को दोषी ठहराने का मन होता है, क्योंकि यही अहंकार के लिए तृप्तिदायी है। मैं, और कैसे गलत हो सकता हूं? मैं कभी गलत होता ही नहीं। मैं तो खड़ा ही इस भित्ति पर है कि गलती मुझसे नहीं हो सकती। जैसे ही यह समझ आनी शुरू हुई कि गलती मुझसे भी हो सकती है, मैं का भवन गिरने लगता है। और जिस दिन यह दिखाई पड़ता है कि मैं ही सारी भूलों के लिए उत्तरदायी हं, उस दिन अहंकार ऐसे ही तिरोहित हो जाता है जैसे सुबह के सूरज उगने पर ओस-कण। अहंकार कहीं पाया ही नहीं
जाता, अगर यह समझ में आ जाए कि उत्तरदायी मैं हं। जिसने यह जान लिया कि दायित्व मेरा है उसका अहंकार मर जाता है। और जिसने यह कोशिश की कि हर हालत में दूसरा जिम्मेवार है उसका अहंकार और भी सुरक्षित होता चला जाता है।
_अहंकार को समझने की पहली बातः क्यों हम दूसरे पर दायित्व को थोपते हैं? जब भी भूल होती है तो दूसरे से ही क्यों होती है? और यही दशा दूसरे की भी है; वह भी दोष दूसरे पर थोप रहा है। तब संघर्ष पैदा होता है, कलह पैदा होती है। फिर समझौता भी कर लिया जाए तो भी कलह का धुआं तो शेष ही रह जाता है। क्योंकि समझौता तब तक सत्य नहीं हो सकता जब तक कि बुनियादी रूप से मैं यह न जान लूं कि जिम्मेवार मैं हूं। तब तक सब समझौता कामचलाऊ है, ऊपर-ऊपर है। तब ऐसा ही है कि आग को हमने राख में दबा दिया; अंगारे मौजूद हैं, और कभी भी फिर विस्फोट हो जाएगा। अवसर की तलाश रहेगी; समझौता टूटेगा; संघर्ष फिर ऊपर आ जाएगा। क्योंकि समझौते में हमने यह तो स्वीकार किया ही नहीं गहरे में कि भूल हमारी है। अगर हमने यह जान लिया कि भूल हमारी है तब तो समझौते का कोई सवाल नहीं। तब तो हम झुक जाते हैं; तब तो हम समग्र रूप से स्वीकार कर लेते हैं। तब तो किसी को क्षमा भी नहीं करना है। तब तो भूल अपनी ही थी।
कहते हैं नेपोलियन जब हार गया, और जब पराजित नेपोलियन को सेंट हेलेना के द्वीप में ले जाया गया, तो उसके किसी मित्र ने उसे कहा कि अब तुम व्यर्थ चिंता का बोझ मत ढोओ; जो हुआ, हुआ; अब तुम माफ कर दो दुश्मनों को और जीवन के इन आखिरी क्षणों में शांति से जी लो। नेपोलियन के शब्द बड़े महत्वपूर्ण हैं। नेपोलियन ने कहा, आई कैन फॉरगिव देम, बट आई कैन नाट फॉरगेट; मैं उन्हें क्षमा तो कर सकता हूं, लेकिन भूल नहीं सकता।
और अगर भूल नहीं सकते तो यह क्षमा कैसी? यह क्षमा मजबूरी की क्षमा है। यह क्षमा असहाय की क्षमा है। अब कुछ और किया नहीं जा सकता, इसलिए नेपोलियन क्षमा कर रहा है। लेकिन भीतर आग सुलग रही है। भीतर अभी भी वह क्रुद्ध है। और कभी अवसर आ जाए, सुविधा मिल जाए, तो फिर लड़ने को तत्पर हो सकता है।
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