________________
बिर्बल के बल राम
लड़ते रहते हैं कि कोई हमें पिघला न दे, कोई चोट न पहुंचा दे, कोई छेनी-हथौड़ा लाकर थोड़ी सी आकृति न दे दे। छोटे-छोटे बच्चे तक लड़ते हैं। छोटे से बच्चे से कहो, मत जाओ बाहर! और वह उसी क्षण बाहर जाना चाहता है। क्योंकि तुमने उसके अहंकार को चुनौती दे दी। तुम यह कह रहे हो कि कौन बड़ा है? किसका अहंकार बड़ा है? कौन बलशाली है?
. मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को समझा रहा था। दवा सामने रखी थी, वह पीने से इनकार कर रहा था। मां थक गई थी। सब कुछ कर चुकी थी। मार-पीट भी हो चुकी थी। आंसू जम गए थे सूख कर, लेकिन वह बैठा था और दवा नहीं पी रहा था तो नहीं पी रहा था। नसरुद्दीन ने उसे कहा कि देख बेटा, मुझे मालूम है कि दवा कड़वी है। मैं भी तेरे जैसा कभी छोटा बच्चा था; दवा मुझे भी कभी पीनी पड़ती थी। लेकिन तेरे जैसा नहीं था मैं; मैं एक बार संकल्प कर लेता था कि रहने दो कड़वी, पीऊंगा! तो अपने संकल्प का पक्का साबित होता था, और पीकर रहता था।
उस लड़के ने नसरुद्दीन की तरफ देखा, और कहा कि संकल्प का पक्का मैं भी हूं। मैंने संकल्प किया है कि नहीं पीऊंगा। रखी रहने दो दवा को; देखें क्या होता है! मैं आपका ही बेटा हूं। संकल्प मेरा भी पक्का है।
छोटे-छोटे बच्चे भी सीख रहे हैं अहंकार की कला-कैसे अपने को बचाना, अपनी बात को। और जानते हैं क्या करने से अपनी सुरक्षा होगी। और धीरे-धीरे निष्णात होते जाते हैं।
नसरुद्दीन के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि घर में उसका नाम, जब वह बच्चा था, उलटी खोपड़ी था। क्योंकि जो भी उससे कहो वह उससे उलटा करता था। तो घर के लोग समझ गए थे, नसरुद्दीन का बाप भी समझ गया था, कि जो करवाना हो उससे उलटी बात कहो। गणित सीधा था। चाहते हो बाहर न जाए, इससे कहो कि देखो, बाहर जाओ! अगर न गए तो ठीक न होगा। तो वह घर में ही बैठा रहेगा। बाहर न भेजना हो तो बाहर भेजने का आदेश दे दो; वह घर में बैठा रहेगा। फिर लाख उपाय करो वह बाहर नहीं जा सकता।
एक दिन दोनों चले आ रहे थे गांव के बाहर से। गधे पर नमक की बोरियां लादी थीं। नमक खरीदने गए थे। - जब नदी के पुल पर से गुजर रहे थे तो बाप ने देखा कि बोरियां नमक की बाएं तरफ ज्यादा झुकी हैं, और हो सकता है
न सम्हाली गईं तो गिर जाएं। लेकिन नसरुद्दीन से कुछ भी करवाना हो तो उलटी बात कहनी जरूरी है। तो बाप ने 'कहा कि देख नसरुद्दीन, बोरियां दाईं तरफ ज्यादा झुकी हैं। थोड़ा बाईं तरफ झुका दे।।
झुकी थीं बाईं तरफ, झुकवानी थीं दाईं तरफ; ठीक उलटी बात कही। लेकिन नसरुद्दीन ने जैसा बाप ने कहा वैसा ही कर दिया। बोरियां, जो कभी गिर सकती थीं, फौरन नदी में गिर गईं। - बाप ने कहा, नसरुद्दीन, यह तेरे आचरण के बिलकुल विपरीत है!
नसरुद्दीन ने कहा, शायद आपको पता नहीं कि कल मैं अठारह साल का हो गया, अब मैं प्रौढ़ हूं। अब बचपने की बातें ठीक नहीं। अब मैं वही करूंगा जो किया जाना चाहिए। अब जरा सोच-समझ कर आज्ञा देना।
छोटे बच्चे भी संघर्ष में लीन हो जाते हैं। बड़े-बूढ़ों की तो बात ही क्या, छोटे बच्चे तक विकृत हो जाते हैं। फिर यह विकृति जीवन भर पीछे चलती है। और तब तुम तड़पते हो और चिल्लाते हो।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हमें हृदय का कुछ पता नहीं चलता; कि हृदय है, इसका भी पता नहीं चलता। तुम यह मत सोचना कि यह होगा किसी और के संबंध में सही; तुम्हें भी पता नहीं है हृदय के होने का। वह जो धक-धक हो रही है वह हृदय की नहीं है, वह तो फेफड़े की है। वह तो केवल खून के चलने की चाल का तुम्हें पता चल रहा है। हृदय की धक-धक तो तुमने अभी सुनी ही नहीं। उसे तो केवल वही सुन पाता है जो अहंकार की चट्टान को तोड़ देता है। तब जीवन का सारा रूप बदल जाता है। तब तुम कुछ और ही देखते हो। तब यह सारा अस्तित्व अपनी परिपूर्ण महिमा में प्रकट होता है।
329