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निर्बल के बल राम
दूसरों के प्रति घृणा से भरा हुआ और अपने प्रति घृणा से भरा हुआ आदमी इस जीवन-ऊर्जा को सख्त कर लेता है, यह पथरीली हो जाती है। पानी की तरह तरल आदमी इसे तरल कर लेता है। और मजा यह है कि जितनी - यह तरल होती है उतने ही नये झरने तुम्हारे भीतर फूटने लगते हैं। क्योंकि तुम भीतर अनंत हो। तुम भीतर महासागर
हो। तुम जितना बाटोगे उतना ही तुम्हें भीतर के नये झरनों का बोध होगा। तुम जितना दोगे उतना ही पाओगे। यहां . से पानी बाहर जाएगा और तुम भीतर से पाओगे नये झरनों ने तुम्हें फिर भर दिया। तुम जितना रोकोगे उतना ही
सड़ोगे। तब तुम एक डबरे हो जाओगे जिसमें सिर्फ गंदगी पलेगी, मच्छरों का आवास होगा, बदबू उठेगी। जीवन की सतत धार रुक जाएगी।
परमात्मा तुम्हारे कुएं से प्रतिपल बहने को तैयार है, लेकिन तुम बहने को तैयार नहीं हो। थोड़ा सहयोग दो। थोड़ा बहो, और देखो। इतने कंजूस होने की कोई भी जरूरत नहीं है। और जिस जीवन के लिए तुम इतने कृपण हो वह जीवन अनंत है। तुम कितना ही लुटाओ लुटेगा न। तुम कितना भी बांटो बंटेगा न, बढ़ेगा। बढ़ता चला जाता है।
लाओत्से कहता है, 'पानी से दुर्बल कुछ भी नहीं है, लेकिन कठिन को जीतने में उससे बलवान भी कोई नहीं है।'
अगर तुम बहने को राजी हो प्रेम से तो तुम कठोर से कठोर को भी जीत लोगे। इसलिए नहीं कि तुम जीतना चाहते थे; क्योंकि जो जीतना चाहता है वह तो तरल हो ही न सकेगा; बल्कि इसीलिए कि तुम्हारी जीतने की कोई आकांक्षा ही न थी। तुम तो सिर्फ जीवन में सहभागी बनाना चाहते थे। मित्र था या शत्रु, यह उसकी दृष्टि थी; तुम तो सभी को देना चाहते थे, तुम बांटने को तत्पर थे, और तुम्हारी कोई शर्त न थी। और तुम पाओगे कि कठोर से कठोर हार जाता है।
बुद्ध के जीवन में उल्लेख है। वे एक पहाड़ के पास से गुजरते थे। गांव के लोगों ने रोका। वह रास्ता निर्जन हो गया था; वहां कोई जाता न था। क्योंकि वहां एक हत्यारे ने वास कर लिया था। और उस हत्यारे ने कसम ले ली थी कि वह एक हजार आदमियों की गर्दन काटेगा और उनकी अंगुलियों की माला पहनेगा। उस आदमी का नाम अंगुलीमाल हो गया था। उसने नौ सौ निन्यानबे आदमी मार ही डाले थे। इसलिए अब लोग इतने डर गए थे कि जिसका कोई हिसाब नहीं। खुद उसकी मां उससे मिलने जाना बंद कर दी थी। क्योंकि वह ऐसा पागल था और हजारवें आदमी की प्रतीक्षा कर रहा था कि यह भी हो सकता है कि वह मां की भी गर्दन उतार दे और अंगुलियों की माला बना कर पहन ले। मां भी जहां जाने से डरने लगी हो, तुम सोच सकते हो खतरा कैसा था। जहां मां भी पथरीली हो गई हो, तुम सोच सकते हो कि खतरा कैसा था। जहां मां ने भी बेटे को देना बंद कर दिया हो वहां तुम सोच सकते हो कि खतरा कैसा था!
लोगों ने बुद्ध को कहा, आप वहां मत जाएं। यह आदमी पागल है। यह तुम्हारी फिक्र न लेगा और न यह समझेगा कि तुम कौन हो। यह समझ ही नहीं सकता; इसकी बुद्धि मारी गई है।
लेकिन बुद्ध ने कहा, यह भी तो सोचो, वह हजारवें आदमी की प्रतीक्षा कर रहा है। और कोई भी न जाएगा तो उस बेचारे का क्या होगा? तुम उसकी तकलीफ भी तो समझो। वह कब तक ऐसी प्रतीक्षा करता रहेगा? और मेरे शरीर से जो होना था वह हो चुका, जो पाना था, वह पा लिया। अब इस शरीर का और क्या इससे अच्छा उपयोग हो. सकता है कि इस आदमी की प्रतिज्ञा पूरी हो जाए? कौन जाने यह प्रतिज्ञा पूरे होने पर इसका पागलपन खो जाए? मुझे जाना ही होगा, बुद्ध ने कहा।
गांव में खबर पहुंच गई कि ये बुद्ध उस अंगुलीमाल से भी ज्यादा पागल मालूम होते हैं। बुद्ध के शिष्य भी डरे। प्रतिज्ञा ली थी सदा साथ चलने की, वे सब भूल गईं प्रतिज्ञाएं। पास-पास चलने में बड़ा रस आता था, क्योंकि
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