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निर्बल के बल नाम
ऊपर तैर आया, मामला क्या है? क्या नदी जिंदा को मारना चाहती थी और मुर्दे को बचाना चाहती है? जिंदा आदमी डूब जाते हैं और मुर्दा तैर आते हैं।
नहीं, लाओत्से समझ गया राज को। मुर्दा ऊपर तैर आता है, क्योंकि मुर्दे से ज्यादा और कमजोर क्या? मर ही गया, अब उसका कोई विरोध न रहा। जिंदा आदमी डूबता है, क्योंकि नदी से लड़ता है। अगर जिंदा भी मुर्दावत हो जाए तो नदी उसे भी ऊपर उठा देगी। तैरने की सारी कला ही इतनी है कि तुम नदी में मुर्दे की भांति हो जाओ। तो जो लोग तैरने में कुशल हो जाते हैं वे नदी में बिना हाथ-पैर तड़फड़ाए भी पड़े रहते हैं मुर्दे की तरह। नदी उनको सम्हाले रहती है। उन्होंने नदी पर ही छोड़ दिया सब। कमजोर का अर्थ यह है कि अपना बल क्या? इसलिए अपने पर भरोसा क्या? छोड़ देते हैं।
ऐसा लाओत्से जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से सारभूत को चुनता रहा है। उसने किसी वेद से और उपनिषद से ज्ञान नहीं पाया है। उसने जीवन का शास्त्र सीधा समझा है; जीवन के पन्ने, जीवन के पृष्ठ पढ़े हैं। और उनमें से उसने जो सबसे सारभूत सूत्र निकाला है वह है कि इस संसार में अगर तुमने शक्तिशाली होने की कोशिश की तो तुम टूट जाओगे, और अगर तुमने निर्बल होने की कला सीख ली तो तुम बच जाओगे।
भक्त गाते हैं : निर्बल के बल राम। जो बात स्वभावतः घटती है वह राम पर आरोपित कर रहे हैं। भक्त की भाषा में राम का अर्थ सारा अस्तित्व है।
लाओत्से कोई भक्त नहीं है। वह राम और परमात्मा जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता। पर बात वह भी यही कह रहा है : निर्बल के बल राम। जितना जो निर्बल है उतना ही राम का बल उसे मिल जाता है। लाओत्से भी यही कह रहा है कि जो जितना कमजोर है, अस्तित्व उसे उतनी ही ज्यादा शक्ति दे देता है। और जो अकड़ा हुआ है अपनी शक्ति से, अस्तित्व उससे उतना ही विमुख हो जाता है। जब तुम अकड़े तब तुम अकेले; जब तुम विनम्र तब सारा अस्तित्व तुम्हारे साथ।
स्वभावतः, कमजोर बलवान हो जाएगा और बलवान कमजोर रह जाएंगे। बलवान होने की आकांक्षा अहंकार है। और अहंकार से ज्यादा बड़ी बीमारी, बड़ी उपाधि, बड़ा रोग खोजना मुश्किल है। कैंसर है अहंकार आत्मा का। अभी तो शरीर के कैंसर का ही कोई इलाज नहीं है तो आत्मा के कैंसर का तो कभी कोई इलाज नहीं होगा। अहंकार का अर्थ है : मैं लडूंगा, जीतूंगा, अपने ही पर खड़ा रहूंगा। न मुझे किसी राम की सहायता की जरूरत है, न अस्तित्व की सहायता की जरूरत है। मैं अकेला काफी हूं।
. कैसे तुम सोचते हो कि तुम अकेले काकी हो? एक क्षण भी तो जी नहीं सकते श्वास न आए, हवाओं में उदजन न हो, आक्सीजन न हो, सूरज न हो, ताप न मिले; तुम बचोगे? नदियां सूख जाएं; तुम्हारे भीतर जल की धार सूख जाएगी। सूरज बुझ जाए; तुम्हारे भीतर शरीर की ऊष्मा खो जाएगी। श्वास न आए; एक क्षण में तुम टूट जाओगे। फिर भी तुम्हारा अहंकार कहता है, अपने पर जीऊंगा, मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं। बिना सहारे के एक पल भी जी सकते हो?
तुम जुड़े हो। अस्तित्व चौबीस घंटे तुम्हें दे रहा है इसीलिए तुम हो, चाहे तुम भूल ही गए हो। क्योंकि अस्तित्व देने में शोरगुल नहीं मचाता, और न देते वक्त डुंडी पीटता है कि कितना दान दिया। पता ही नहीं चलता कि तुम प्रतिपल अस्तित्व के सहारे जी रहे हो। तुम एक क्षण भी उसके विपरीत न जी सकोगे। लेकिन अहंकार तुम्हें यह भ्रांति पैदा करवा देता है। अपने बल जी लूंगा। उसी दिन तुम कमजोर हो जाते हो। जिसने कहा अपने बल जी लूंगा, वह कमजोर। हालांकि वह समझ रहा है कि ताकतवर। और जिसने कहा कि राम के बल के बिना और कोई बल कहां, वह दिखता तो निर्बल है पर उसकी सबलता का कोई मुकाबला नहीं।
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