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ताओ उपनिषद भाग ६
है; और जिनकी नमने की क्षमता है उनको बांट देता है। जहां कमी है वहां भरता है; जहां ज्यादा है वहां से हटाता है। सारी प्रकृति सदा एक गहरे संतुलन की चेष्टा में संलग्न है। ___'स्वर्ग का ढंग है, उनसे छीन लेता है जिनके पास अतिशय है, और उन्हें दिए देता है जिनको पर्याप्त नहीं है।'
इसलिए अगर तुम्हें प्रथम होना हो तो अंतिम खड़े हो जाना। क्योंकि स्वर्ग का नियम तुम्हें खींच कर आगे ले आएगा। और अगर तुम्हें अंतिम ही होना हो तो तुम प्रथम की कोशिश करना। आखिर में तुम पाओगे तुम खींच कर पीछे ले आए गए। लाओत्से की विचार-पद्धति जीसस से गहरी जाती है। लेकिन विधि तो वही रहेगी जो जीसस की है। तुम यह मत सोचना कि हम बीच में खड़े हो जाएं। बीच में तो तुम पता भी न लगा पाओगे कहां बीच है, कहां मध्य है। और मध्य में होने का तो अर्थ यह हुआ कि संघर्ष जारी रहेगा। क्योंकि कुछ तुम्हारे पीछे होंगे, कुछ तुम्हारे आगे होंगे। जो पीछे हैं वे आगे जाना चाहेंगे। तुम्हें अपने मध्य को भी बचाना पड़ेगा। जो आगे हैं वे तुम्हें आगे न बढ़ने देंगे। जो पीछे हैं वे तुम्हें पीछे खींचेंगे। मध्य में भी संघर्ष जारी रहेगा। इसलिए उपाय तो वही है जो जीसस कह रहे हैं। लेकिन लाओत्से की समझ और ऊंचाई पर ले जाती है।
लाओत्से यह नहीं कहता कि तुम अंतिम खड़े होओगे तो तुम प्रथम हो जाओगे। और यह थोड़ा समझ लेने जैसा है। क्योंकि आदमी का अहंकार ऐसा है कि वह इसीलिए अंतिम खड़ा हो सकता है ताकि प्रथम हो जाए। तब भीतर-भीतर तो वह प्रथम होना चाहता है। गहरे में तो वह प्रथम होना चाहता है। अब मानते नहीं हैं जीसस और कहते हैं कि यही रास्ता है प्रथम होने का कि अंतिम खड़े हो जाओ, इसलिए अंतिम खड़ा हो जाता है। लेकिन अंतिम वह होना नहीं चाहता, होना तो प्रथम चाहता है।
तो आदमी इतना बेईमान है और इतना चालाक है, इतना चालाक है कि अपने साथ भी चालाकी कर लेता है; अपनी ही एक जेब में से चुरा कर दूसरी जेब में रख लेता है। तो जीसस की बात से खतरा है। वह खतरा यह है कि तुम विनम्र हो सकते हो सिर्फ इसीलिए ताकि परमात्मा के राज्य में तुम्हारे अहंकार की पूर्ति हो।
जीसस के मरने के दिन, एक ही रात पहले, जीसस के शिष्य जीसस से पूछते हैं कि स्वर्ग के राज्य में यह तो निश्चित है कि आप परमात्मा के पास बैठे होंगे, हम बारह शिष्यों की क्या दशा होगी? हम कहां-कहां खड़े होंगे, कहां बैठेंगे? परमात्मा के दरबार में हमारी जगह का क्या हिसाब है? हममें से, बारह में से कौन आपके पास होगा और कौन दूर होगा?
ये शिष्य जीसस को समझे ही नहीं। ये जीसस के साथ भी इसीलिए हैं कि वहां प्रथम होने का मौका सुविधा से मिल जाएगा। अपना ही आदमी परमात्मा का बेटा है। तो यह तो भाई-भतीजावाद हुआ वहां भी कि तुम जब प्रथम खड़े होओगे, परमात्मा के पास, तो हमारी क्या स्थिति होगी? जाने के पहले कम से कम यह तो बता जाओ। यह कोई धार्मिक व्यक्तियों का लक्षण न हुआ। इसलिए जीसस के वचन और जीसस की जीवन-चेतना बिलकुल ही ईसाइयत ने मार डाली, क्योंकि इन बारह आदमियों ने ईसाइयत को खड़ा किया, जिनको कोई समझ नहीं है, जो जीसस को बिलकुल चूक ही गए। वहां भी प्रतिस्पर्धा जारी है। परमात्मा के राज्य में भी प्रथम होने का मोह जारी है। और जब तक तुम प्रथम होना चाहते हो, तुम ध्यान रखो, तुम हीन ही रहोगे।
जब हम कहते हैं कि अंतिम खड़े हो जाओ तो तुम प्रथम हो जाओगे, इसका यह अर्थ नहीं है कि हम तुम्हें प्रथम होने की तरकीब बता रहे हैं। इसका केवल इतना ही अर्थ है कि जो भी अंतिम हो जाता है वह प्रथम हो जाता है। वह उसका परिणाम है, वह सहज घटता है। लेकिन अंतिम होने का अर्थ है प्रथम होने की सारी आकांक्षा को छोड़ देना। तभी वह महान घटना घटती है। इसलिए लाओत्से, जो अंतिम खड़े हैं उनको यह नहीं कहता कि तुम प्रथम हो जाओगे। न, वह बात ही काट देता है। क्योंकि उससे तुम्हारे धोखा देने की संभावना है।
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