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ताओ उपनिषद भाग ६
कि पहरेदार शायद तुम्हें भीतर न घुसने दें। पर उसने कहा कि निमंत्रण मझे मिला है। यह निमंत्रण-पत्र मेरे पास है, यह तो मैं दिखा सकता हूं। उन्होंने कहा, तुम इस भूल में मत पड़ो, ढंग से जाओ। कोई निमंत्रण-पत्र नहीं पूछेगा। इस हालत में तो पूछेगा और भरोसा भी नहीं करेगा कि तुम्हें मिल कैसे गया। पर गालिब को बात जंची नहीं। गालिब ने कहा, मुझे बुलाया है, वस्त्रों को तो नहीं।
तो वैसे ही गया। द्वारपाल ने भीतर घुसने ही न दिया। धक्का-मुक्की की हालत आ गई। उसने निकाल कर अपना निमंत्रण-पत्र दिखाया। उसने कहा, फेंक निमंत्रण-पत्र! किसी का चुरा लिया होगा। तू भाग जा यहां से, नहीं तो हम पकड़वा देंगे।
गालिब उदास घर लौटा। मित्र तो जानते ही थे। तो उन्होंने इंतजाम कर रखा था। कपड़े उधार ले आए थे; शेरवानी, पगड़ी, सब तैयार कर रखी थी, जूते। घर लौट कर आया तो उन्होंने कहा, समझ गए? फिर गालिब कुछ बोला नहीं, उसने पहन लिए उधार कपड़े, वापस गया। वही पहरेदार झुक कर सलाम किए। आदमियों की थोड़े ही कोई पूछ है, कपड़े की पूछ है। यह भी न पूछा-गालिब बेचारा खीसे में हाथ डाले था कि जल्दी से निकाल कर कार्ड बता देगा लेकिन किसी ने कार्ड पूछा ही नहीं। बात ही बदल गई।
वह भीतर गया। सम्राट ने अपने पास बिठाया। जब वह भोजन करने लगा तो सम्राट थोड़ा हैरान हुआ कि यह क्या कर रहा है। उसने मिठाइयां उठाईं, अपने कोट को छुआईं और कहा, ले कोट, खा ले! पगड़ी को छुआया और कहा, ले पगड़ी, खा ले। सम्राट ने कहा कि माफ करें। कवियों से विचित्र व्यवहार की अपेक्षा होती है, लेकिन इतना विचित्र व्यवहार! यह तुम क्या कर रहे हो? उसने कहा, मैं तो आया था, लेकिन लौटा दिया गया। अब तो कपड़े आए हैं। मैं आया था, लेकिन लौटा दिया गया। अब तो जिनके सहारे मैं आया हूं पहले उनको भोजन देना जरूरी है। अब तो मैं नंबर दो हूं।
आदमी का व्यवहार स्वर्ग के व्यवहार से भिन्न है। यहां जिनके पास है उनको दिया जाता है, जिनके पास नहीं है उनसे छीन लिया जाता है। स्वर्ग का व्यवहार स्वभावतः इससे उलटा है। जिनके पास नहीं है उन्हें दिया जाता है, जिनके पास है उनसे छीन लिया जाता है। क्योंकि स्वर्ग एक संतुलन है। स्वर्ग न तो गरीब का है न अमीर का। क्योंकि गरीबी एक बीमारी है और अमीरी भी एक बीमारी है। क्योंकि दोनों अतिशय हैं। अमीर के पास अमीरी ज्यादा है, गरीब के पास गरीबी ज्यादा है। गरीब से थोड़ी गरीबी छीन कर अमीर को देना जरूरी है। अमीर से थोड़ी अमीरी छीन कर गरीब को देना जरूरी है। मध्य हमेशा संतुलित है और स्वस्थ है।
'मनुष्य का ढंग यह नहीं है। वह उनसे छीन लेता है जिनके पास नहीं है, और उन्हें दे देता है कर के रूप में, भेंट के रूप में जिनके पास अतिशय है।'
'कौन है जिसके पास सारे संसार को देने के लिए पर्याप्त है?'
मनुष्य तो देता है उसको जिसके पास है। और स्वर्ग का राज्य देता है उसे जिसके पास नहीं है। लाओत्से संत को स्वर्ग से भी ऊपर उठा देता है। लाओत्से कहता है, कौन है जिसके पास सारे संसार को देने के लिए पर्याप्त है? जो किसी से छीन कर किसी को नहीं देता? स्वर्ग का राज्य भी किसी से छीन कर किसी को देता है। लेकिन कौन है जिसके पास सारे संसार को देने के लिए पर्याप्त है?
'केवल ताओ का व्यक्ति।' इसे थोड़ा समझें। क्योंकि संत स्वर्ग से ऊपर है। संत में स्वर्ग है, स्वर्ग में संत नहीं। संत का घेरा बड़ा है।
ऐसी यहूदी कथा है कि एक यहूदी फकीर झुसिया ने रात सपना देखा कि वह स्वर्ग पहुंच गया है। वह बड़ा हैरान हुआ; उसने कभी सोचा भी न था। स्वर्ग में महान-महान संत हैं सदियों पुराने। पूरे अनंत काल से चले आ रहे।
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