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ताओ उपनिषद भाग ६
थे, ऐसा ही कोकाकोला दिखाई पड़ गया, इसलिए प्यास पैदा हो गई; ऐसे भूल-चूक से आ गए किसी सदगुरु के पास। कोई मित्र जा रहा था और तुम खाली बैठे थे, तो कहा चलो, खाली बैठे क्या करते। कोई प्यास ही न थी। सुन ली बातें आनंद की, अमृत की, और एक झूठी प्यास पैदा हो गई। तुम्हें परमात्मा मिल भी जाए तो कोई तृप्ति न होगी। वस्तुतः तुम्हें मिल भी जाए तो तुम उसे पहचान भी न पाओगे। उसे पहचानने को बड़ी गहन प्यास चाहिए।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि मुझे तुम कम पहचान पाओगे, पश्चिम के लोग ज्यादा। वहां बड़ी हताशा है। इसलिए तुम्हें कई दफे हैरानी होगी कि पश्चिम के लोग क्यों चले आते हैं! जब वे मेरे पास आते हैं तो उन्हें कोई द्वार दिखाई पड़ता है जो तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। जब वे मेरे पास आते हैं तो उनके जीवन में कुछ नये का उदय होता है जो तुम्हारे जीवन में नहीं होता। तुम हताश ही नहीं हो। तुम उदास ही नहीं हो। और अगर तुम उदास भी हो तो उन चीजों के लिए हो जो चीजें पहली दो सीढ़ियों से संबंधित हैं।
अपने को सौभाग्यशाली मत समझ लेना; अपने को सौभाग्यशाली समझ लेना खतरनाक है। क्योंकि उसमें फिर अगर तुम लिप्त होकर बैठ गए तो तुम्हारी यात्रा अवरुद्ध हो जाएगी। और सांत्वना झूठी मत दे देना अपने को।
और यह मत सोचना कि पश्चिम के लोग पूरब आ रहे हैं, तो हम पूरब के लोग बड़ी ऊंची अवस्था में हैं इसलिए आ रहे हैं। यह भी भ्रांति है तुम्हारी। कभी कोई एकाध आदमी उस अवस्था में होता है; कोई पूरा पूरब उस अवस्था में नहीं है। लेकिन हमारे मन में ऐसा होता है कि बुद्ध पूरब में पैदा हुए, महावीर पूरब में पैदा हुए और हम भी पूरब में पैदा हुए! तो जैसे कोई हमारी जाति बुद्ध और महावीर की है, जैसे हम उनके वंशज हैं।
बुद्ध का वंशज केवल वही हो सकता है जो बुद्धत्व को उपलब्ध हो। बुद्ध का वंशज भूगोल से तय नहीं होता, चेतना से तय होता है। तुम व्यर्थ अपनी प्रशंसा करके और व्यर्थ अपने अहंकार को आभूषणों से सजा कर तृप्त होकर मत बैठ जाना, क्योंकि वह तुम्हारी मौत हो सकती है। वे आभूषण जंजीरें सिद्ध होंगे, और वह झूठी सांत्वना कब्र बन जाएगी।
जागो! मुझे पता है कि तुम्हारी दो सीढ़ियां टूटी हुई हैं। इसलिए तुम्हें बहुत बुद्धिमत्ता की जरूरत है, बहुत होश की जरूरत है। और इसलिए मैं ऐसी विधियां तुम्हारे लिए दे रहा हूं जो छलांग लगाने की हैं और सीढ़ियां चढ़ने की नहीं हैं। क्योंकि सीढ़ियां टूटी हुई हैं, उनको बनाने अगर बैठा जाए तो वे कब बनेंगी, कुछ पता नहीं है। लेकिन जब सीढ़ी टूटी होती है तो आदमी दो सीढ़ियां इकट्ठी भी छलांग लगा कर चढ़ जाता है। तुम छलांग लगाओगे तो ही पहुंच पाओगे। पश्चिम को छलांग लगाने की जरूरत नहीं है, वह दूसरी सीढ़ी पर खड़ा है; तीसरी सीढ़ी मिल भर जाए, वह पैर रख देगा। लेकिन पूरब को तो छलांग लगानी पड़ेगी; दो सीढ़ियां चूक गई हैं। और चूकने का कारण है। उसको भी तुम समझ लो। उसका गणित है। अकारण कुछ भी नहीं होता।
जब भी कोई मुल्क समृद्ध होता है तब उस मुल्क को पता चलता है, समृद्धि बेकार है। जैसे ही मुल्क को पता चलता है समृद्धि बेकार है, वह आत्मा की खोज में लग जाता है, परमात्मा की खोज में लग जाता है, वह मोक्ष की यात्रा पर निकल जाता है। और जीवन की दो सीढ़ियों की तरफ नकार का भाव पैदा हो जाता है-बेकार है। उन दो सीढ़ियों की साज-सम्हाल बंद हो जाती है। उनकी कोई फिक्र नहीं लेता। उनकी निंदा शुरू हो जाती है। समाज धीरे-धीरे-धीरे-धीरे पदार्थ, शरीर के विरोध में हो जाता है। और जिसके तुम विरोध में हो वह सीढ़ी टूट जाती है। और जब सीढ़ी टूट जाती है तब ऐसी अड़चन आ जाती है जिसमें हम हैं।।
जब कोई समाज गरीब होता है तब धन में मूल्य मालूम होता है, तब वह धन के पीछे पड़ जाता है। जब वह धन के पीछे पड़ जाता है तब धर्म की उपेक्षा हो जाती है। जब धन इकट्ठा कर लेता है तब उसे पता चलता है कि यह तो बेकार है। तब धन की आकांक्षा शुरू होती है।
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