Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 297
________________ जीवन कोमल हैं और मृत्यु कठोर 287 तुम ढो रहे हो । जो तुमने महावीर के शरीर के साथ किया था वही तुम्हें महावीर के शब्दों के साथ भी करना था, क्योंकि शब्द भी लाश हैं। सत्य तो निःशब्द है । वह जब महावीर उन शब्दों को बोलते थे तब उसमें जीवन था । क्योंकि भीतर निःशब्द से वे शब्द आते थे। भीतर के मौन से उनका जन्म होता था । भीतर के बोध से सिक्त थे वे, थे। अभी-अभी बगीचे से तोड़ा गया फूल था । अभी-अभी, क्षण भी न हुआ था, तोड़ा था और तुम्हें दिया था महावीर ने। लेकिन तुम्हारे हाथों में फूल कितनी देर जिंदा रहेगा ? तोड़ते ही फूल की मृत्यु शुरू हो गई। थोड़ी-बहुत देर हरियाली रहेगी; वह भी थोड़ी देर में खो जाएगी। और जब महावीर खो जाएंगे, बगीचा खो जाएगा, जहां से फूल आते थे वह स्रोत खो जाएगा। तुम मुर्दा उन फूलों को लिए चलते रहोगे। बाइबिलों में तुमने देखा होगा लोग फूलों को रख देते हैं। फिर फूल सूख जाते हैं; धब्बे छूट जाते हैं बाइबिल के पन्नों पर थोड़े से फूल के रंग के। एक मुर्दा फूल रखा रह जाता है, एक याददाश्त फूल की कि कभी जीवित था। बाइबिल में रखा यह फूल ही मुर्दा नहीं है, बाइबिल में रखे शब्द भी इतने ही मुर्दा हैं। सिर्फ याददाश्त हैं कि कभी जीवन उनमें था, सिर्फ स्मृतियां हैं, पदचिह्न हैं। नदी तो खो गई है सागर में, सिर्फ सूखे तट, रेत का फैलाव छूट गया है। उससे खबर मिलती है कि कभी यहां नदी थी। पर नदी अब वहां है नहीं । संप्रदाय मृत घटना है। इसलिए सांप्रदायिक आदमी को तुम बहुत सख्त पाओगे । और धार्मिक आदमी को तुम सदा कोमल पाओगे। इससे तुम पहचान कर लेना । धार्मिक आदमी सुनम्य होगा। तुम उसे विनम्र पाओगे। वह झुकने को राजी होगा; वह दूसरे को समझने को राजी होगा। वह नये सत्यों को जगह देने को राजी होगा। अगर तुम नया आकाश दिखाओगे तो वह आंख नहीं बंद कर लेगा; वह अपने पुराने आकाश से नये आकाश को जोड़ कर और बड़े आकाश का मालिक हो जाएगा। तुम उसे अगर नया सत्य दोगे तो वह यह नहीं कहेगा यह मैं नहीं मान सकता, क्योंकि यह मेरे शास्त्र में नहीं है! शास्त्र कितने छोटे हैं; सत्य कितना बड़ा है। सत्य किसी शास्त्र में कभी पूरा नहीं हो सकता। धार्मिक व्यक्ति हमेशा सुनम्य होगा; वह छोटे बच्चे की भांति होगा । लाओत्से कहता है, कोमल और कमजोर। और यहीं सारा राज है। कोमलता तो तुम भी चाहोगे, लेकिन कमजोरी तुम न चाहोगे। और कोमलता सदा कमजोरी के साथ होती है। कमजोरी तुम नहीं चाहते, इसलिए तुम सख्त होना चाहते हो। क्योंकि सख्ती हमेशा ताकत के साथ होती है। गणित सीधा है कि आदमी क्यों सख्त होना पसंद करता है। क्योंकि सख्त होने में ताकत मालूम पड़ती है, और कोमल होने में कमजोरी मालूम पड़ती है । लेकिन लाओत्से यह कहता है कि जीवन ही कमजोर है; सिर्फ मौत ताकतवर है। तुम मरे हुए आदमी को मार सकते हो ? कोई उपाय ही न रहा। तुम मरे हुए आदमी के साथ क्या कर सकते हो ? मरे हुए आदमी को बदल सकते हो ? अगर वह हिंदू था तो तुम उसको मुसलमान बना सकते हो ? कैसे बनाओगे? मरे हुए आदमी के साथ तुम कुछ भी नहीं कर सकते। वह इतना सख्त गया, उसकी दृढ़ता का कोई अंत नहीं है। उसकी ताकत की कोई सीमा नहीं है। तुम लाख सिर पटको, तुम अंधे आदमी के हृदय तक आवाज न पहुंचा सकोगे, मरे हुए आदमी तक आवाज न पहुंचा सकोगे। जीवित आदमी निश्चित ही कमजोर है। जीवन का लक्षण कमजोर है। कमजोरी बड़ी गहन बात है। कमजोर का इतना ही अर्थ हो सकता है कि जो टूट सकता है, जो मिट सकता है, जो खो सकता है। फूल उगता है; पास ही एक चट्टान पड़ी होती है। कल भी पड़ी थी, परसों भी पड़ी थी। कल भी पड़ी रहेगी, परसों भी पड़ी रहेगी। फूल सुबह उगा है, सांझ खो जाएगा। इसलिए क्या तुम कहोगे कि चट्टान फूल से श्रेष्ठ है, क्योंकि ज्यादा मजबूत है ? फूल को चाहो तो हाथ में मसल दो, और मिट्टी हो जाएगा। चट्टान को तोड़ना इतना आसान नहीं। शायद चट्टान को तोड़ने में तुम खुद ही टूट जाओ। और फूल को तुम्हें मसलने की भी जरूरत नहीं है।

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