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सस का वचन है कि जो यहां प्रथम हैं वे मेरे प्रभु के राज्य में अंतिम होंगे, और जो यहां अंतिम हैं वे मेरे प्रभु के राज्य में प्रथम होंगे। अंतिम प्रथम हो जाता है। प्रथम अंतिम हो जाते हैं। लेकिन साधारणतः मनुष्य की दौड़ प्रथम होने की है। और प्रथम होने की दौड़ में जो पड़ा वह अंततः पाएगा कि अंतिम हो गया, और बुरी तरह अंतिम हो गया। और जो अंतिम होने के लिए राजी है वह अंततः पाता है कि समग्र अस्तित्व ने ही उसे प्रथम बना दिया। यह पहेली सी मालूम पड़ेगी, पर यह जीवन की कुंजियों में से एक है। और इसे बहुत सूक्ष्मता से, इसकी एक-एक पर्त को समझ लेना जरूरी है। सभी के भीतर कामना है प्रथम होने की कामना बुरी भी नहीं है। कामना के
पीछे जरूर कोई राज है। असल में, प्रत्येक व्यक्ति प्रथम होने को ही बना है; इससे कम किसी की भी नियति नहीं है। परमात्मा से कम पर राजी होने का उपाय भी नहीं है। उससे कम पर तुम राजी हो गए तो तुम दुखी और विपन्न ही रहोगे, पीड़ा ही रहेगी। एक संताप तुम्हें घेरे ही रहेगा; एक बेचैनी, एक कमी, कुछ खोया-खोया, कुछ जो पाया जा सकता है और नहीं पाया जा सका। जैसे कोई वृक्ष फूलने से वंचित रह गया हो; पत्ते लगे हों, हरियाली आई हो; फिर कलियां न लगी, फिर फूल न खिले, फिर फल न लगे। जैसे कोई वृक्ष · निष्फल रह गया हो, बांझ रह गया हो, ऐसा तुम अनुभव करोगे।
प्रथम होने की आकांक्षा के भीतर यही गहन बात छिपी है कि तुम्हारी नियति प्रथम होना है। तुम पैदा ही प्रथम होने को हुए हो। तुम्हारा स्वभाव ही प्रथम होना है। तुम किसी से पीछे रहने को नहीं हो। और प्रथम तो परमात्मा ही है। शेष सब तो उसके पीछे ही होगा। इसलिए जब तक तुम परमात्मा न हो जाओ, उस परम पद को न पा लो, तब तक तुम दौड़ोगे, भागोगे, चाहोगे, भटकोगे, हारोगे, विषाद से भरोगे, चूकोगे बहुत बार।
कामना तो ठीक है, लेकिन कामना काफी नहीं है, समझ भी चाहिए। यह तो ठीक है कि तुम प्रथम होना चाहते हो, लेकिन गलत ढंग से अगर तुम प्रथम होना चाहे तो कभी भी न हो पाओगे। प्रथम होने का ठीक ढंग भी है, गलत ढंग भी है। समझ की कमी है; भाव तो बिलकुल ठीक ही उठा है। सिंहासन पर होने को ही तुम पैदा हुए हो। वह तुम्हारा स्वभाव-सिद्ध अधिकार है। लेकिन कौन सा सिंहासन?
आदमी के बनाए सिंहासनों पर होने से तुम तृप्त न हो पाओगे, जब तक परमात्मा ही तुम्हें सिंहासन पर न बिठा दे। तब तक सभी सिंहासन कामचलाऊ होंगे; आज होंगे, कल छीन लिए जाएंगे। आदमी का दिया कितनी देर टिक सकता है? और आदमी इधर देता है, उधर छीनने को तैयार हो जाता है। और आदमी का सिंहासन आदमी का ही बनाया सिंहासन है। आदमी की सामर्थ्य क्या है? तुम पद पर होना चाहते हो, वह तो ठीक है। तुम परम पद पर होना चाहते हो, वह भी ठीक है। लेकिन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री होने से हल न होगा। वहां भी तुम पाओगे : पा लिए
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