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संत संसार भर को देता है, और बेशर्त
किया। वे यह कह रहे हैं कि चलो, इतने प्रतिस्पर्धी कम हुए। अगर तुम्हारा खुद का बेटा संन्यास ले ले तो तुम दुखी होते हो, किसी दूसरे का बेटा ले ले तो तुम उसको धन्यवाद देने जाते हो कि सौभाग्यशाली हो, धन्यभाग तुम्हारे कि ऐसा बेटा घर में पैदा हुआ। और तुम्हारा बेटा संन्यास ले ले? तुम्हारा बेटा संन्यास ले ले तो तुम्हारी महत्वाकांक्षा की रीढ़ टूट जाती है। इसके ही सहारे तो तुम आशा कर रहे थे। तुम्हारे तो पैर टूट चुके हैं दौड़-दौड़ कर। अब यह तुम्हारी बैसाखी था। जो महत्वाकांक्षा तुम पूरी नहीं कर पाए हो और सड़ गए, अब तुम चाहते थे इसके कंधे पर सवार होकर पूरी कर लो। और यह संन्यास ले रहा है!
जब बुद्ध ने संन्यास लिया होगा तो बुद्ध के पिता को, तुम सोच सकते हो, कैसी पीड़ा हुई होगी। इकलौता बेटा था। साम्राज्य के बढ़ने की इसी से आशा थी; सम्हालने की भी इसी से आशा थी। बुढ़ापे में घर छोड़ कर भाग गया; सब महत्वाकांक्षाएं चकनाचूर हो गई होंगी।
नहीं, दूसरे का बेटा जब संन्यास लेता है तब तुम प्रसन्न होते हो। तुम शायद सोचते होओगे कि संन्यास का तुम्हारे मन में बड़ा आदर है; तो तुम बड़ी गलती में हो। क्योंकि संन्यास का ही आदर होता तो तुमने खुद ही संन्यास ले लिया होता। अगर संन्यास की ही समझ होती तो तुमने अपने बेटों को भी अनुप्रेरित किया होता कि जाओ, क्यों देर कर रहे हो, क्यों गंवा रहे हो! नहीं, संन्यास का तुम्हारे मन में न तो समादर है, न संन्यास के प्रति कोई प्रेम, कोई आस्था, कोई श्रद्धा का भाव है। लेकिन तुम धन्यवाद देने जाते हो कि जितने प्रतियोगी कम हुए उतना ही अच्छा। तो तुम भी संन्यासी हो गए, अच्छा हुआ।
बुद्ध के नाम के कारण बुद्ध शब्द प्रचलित हुआ है। शायद बुद्ध के पिता ने सबसे पहले कहा होगाः यह बुद्ध क्या हुआ, बुद्ध! सब छोड़-छाड़ कर भाग गया। दूसरे समझदारों ने भी कहा होगा। और जब किसी का बेटा ध्यान करने बैठने लगता है तो वह कहता है, क्या बुद्ध की तरह बैठे हो! उठो, काम में लगो; ऐसे बैठने से दुनिया न चलेगी। बुद्ध जैसे परम पुरुष के नाम के पीछे बुद्ध जैसी गाली जुड़ गई। कुछ कारण होगा।
और ऐसा बुद्ध के साथ ही नहीं हुआ है, ऐसा बहुत ज्ञानी पुरुषों के साथ हुआ है। गोरख के पीछे गोरखधंधा शब्द चल पड़ा है। क्योंकि गोरख ने बड़ी विधियां खोजी, ध्यान की बड़ी गहन विधियां खोजी। और बड़ा ही सूक्ष्म उन विधियों का जाल था। तो लोग एक-दूसरे को कहने लगे, उठो! क्या गोरखधंधे में पड़े हो? गोरखधंधे का मतलब कि यह गोरख की झंझट में उलझ गए? बचो इससे! इसमें उलझे कि गए।
महावीर के पीछे एक शब्द चलता है जो है नंगा-लुच्चा। तुमने कभी सोचा भी न होगा, क्योंकि तुम किसी को गाली देते हो तब कहते हो कि नंगा-लुच्चा। लेकिन वह आया महावीर से है। महावीर नग्न रहते थे, और बालों की लोंच करते थे। क्योंकि बालों को कटाते नहीं थे। वे कहते थे कि इतना भी साधन का उपयोग करना, उस तरह का उपयोग करना व्यर्थ है। बिना साधन के जो चीज हो सकती है उसमें साधन की निर्भरता क्यों? तो वे अपने बाल को लोंच लेते थे। नंगा-लुच्चा महावीर के आधार पर बना शब्द है : जो नंगे रहते हैं और अपने बाल लोंचते हैं।
महापुरुषों के साथ तुम्हारे भीतर की आकांक्षा किस भांति प्रकट हुई है, यह तुम समझ सकते हो। तुमने गालियां दी हैं! बातें तुम पूजा की करते हो। लेकिन यह इस तरह पैदा हुआ होगा कि जब किसी का बेटा, किसी का पति घर छोड़ कर महावीर के पीछे चलने लगा होगा, तो लोगों ने कहा होगा, क्या नंगे-लुच्चों की बातों में पड़े हो? जब कोई गोरखधंधे में उलझने लगा होगा, तब लोगों ने कहा होगा कि बचो, अपने को बचाओ; यह गोरखधंधा है; इसमें कुछ सार नहीं। गोरख भूल गए; गोरखधंधा याद है। महावीर कितने लोगों को पता हैं? जो लोग नंगा-लुच्चा शब्द प्रयोग करते हैं, उनमें से लाखों को. महावीर का कोई पता नहीं है। और बुद्ध का प्रयोग तो सभी लोग करते हैं; लेकिन बुद्ध से किसका क्या जोड़ है?
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