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ताओ उपनिषद भाग ६
तुम्हारी जेब में एक रुपया पड़ा है तो एक रुपया नहीं पड़ा है, हजारों चीजें पड़ी हैं। तुम चाहो तो एक आदमी को कहो, पांव दाबो! तो वह पैर दाबेगा। यह उसमें पड़ा है रुपये में। तुम एक स्त्री को कहो कि चलो प्रेम करो! वह प्रेम करेगी। यह पड़ा है उस एक रुपये में। भूखे हो, भोजन पड़ा है; प्यासे हो, पानी पड़ा है। एक रुपये में कितनी चीजें पड़ी हैं! इनको तुम बिना रुपये के कैसे खीसे में रखते? इसलिए रुपया प्रतीक हो गया शक्ति का। उसमें बड़ी चीजें छिपी हैं। तुम जो चाहो, जब चाहो, उसी वक्त होगा। इसलिए सब छोड़ो फिक्र, सिर्फ रुपया कमाओ।
शक्ति का खोजी कहता है कि रुपया कमाओ। फिर सबं पीछे अपने आप चला आएगा।
जीसस का वचन है : फर्स्ट यी सीक दि किंगडम ऑफ गॉड, देन आल एल्स विल कम आटोमेटिकली बाइ इटसेल्फ। पहले खोज लो परमात्मा का राज्य और पीछे सब अपने आप चला आएगा।
शक्ति का पुजारी कहता है: फर्स्ट यी सीक दि किंगडम ऑफ दि रूपी, देन एवरी थिंग विल फालो आटोमेटिकली। पहले रुपये का राज्य खोज लो, और तब सब अपने आप चला आएगा। और कुछ खोजने की जरूरत नहीं। पद चाहिए, पद मिलेगा; प्रतिष्ठा चाहिए, प्रतिष्ठा मिलेगी। रुपये का खोजी कहता है, धर्म चाहिए? वह भी मिलेगा। मंदिर बना देना, धर्मशाला बना देना, दान कर देना। रुपया होगा तो सब मिलेगा।
शक्ति का खोजी रुपया खोजता है, या राजनीति खोजता है। क्योंकि जितने बड़े पद पर होगा उतने हजारों लोग उसके हाथ में होंगे; उनका जीवन और मरण उसके हाथ में होगा। आखिर राष्ट्रपति होने का क्या सुख होता होगा? क्योंकि राष्ट्रपति होने के लिए लोग कैसे दुखस्वप्न से गुजरते हैं! कैसा कष्ट पाते हैं ! हजार तरह की गालियां, घेराव, हजार तरह के उपद्रव, लेकिन राष्ट्रपति होकर रहते हैं। और जब राष्ट्रपति हो जाते हैं तो उनको मिलता क्या है? मिलती है ताकत। अगर चालीस करोड़ का मुल्क है तो चालीस करोड़ लोगों की जिंदगी और मौत उनके हाथ में है। युद्ध में उतार दें मुल्क को तो लाखों लोग मर जाएंगे। युद्ध को बचा दें तो लाखों लोग बच जाएंगे। बड़ी ताकत है।
शक्ति का खोजी सभी तरह से शक्ति खोजता है।
अगर वह विवाह भी करता है तो एक पत्नी पर ताकत के लिए। अगर पत्नी विवाह करती है तो एक पति को गुलाम बनाने के लिए। अगर ऐसा आदमी बच्चे भी पैदा करता है तो सिर्फ ताकत के लिए। क्योंकि बच्चों से ज्यादा निरीह तुम कहां पा सकोगे किसी को! तुम्हारे ही बच्चे, जितनी मालकियत तुम उन पर कर सकते हो, किसी और पर दुनिया में न कर सकोगे। अगर तुम बहुत बड़े समाज के मालिक नहीं हो सकते तो कम से कम एक छोटे परिवार के मालिक तो हो सकते हो। तानाशाह तुम्हारे लिए स्टैलिन जैसा बनना मुश्किल होगा तो अपने-अपने घर में तो हर आदमी तानाशाह हो सकता है। वहां तो तुम्हारी आज्ञा चलेगी।
लेकिन जितनी तुम्हारे पास ताकत आती है, ध्यान रखना, उतने ही तुम मरते चले जाते हो, उतने ही तुम सख्त हो जाते हो। तुम्हारी नम्यता खो जाती है; तुम झुक नहीं सकते। धनपति कैसे झुकेगा? अकड़ा रहता है। त्यागी कैसे झुकेगा? अकड़ा रहता है।
ऐसा हुआ। एक जैन मुनि हैं आचार्य तुलसी। बहुत वर्ष पहले उन्होंने एक सम्मेलन किया। मुझे भी बुला भेजा। उन दिनों मोरारजी देसाई सत्ता में थे। वे भी आए। स्वभावतः, आचार्य तुलसी ऊंचे स्थान पर बैठे, सबको नीचे बिठाया। मोरारजी को बात खल गई। मोरारजी भी कोई छोटे महात्मा तो हैं नहीं। दोनों पद के आकांक्षी। अन्यथा निमंत्रित किया था लोगों को तो आचार्य तुलसी को साथ ही बैठना था। अतिथि थे ये लोग, और बुलाए गए थे। लेकिन वे अपने ऊंचे पद पर बैठे; सबको नीचे बिठाया। और किसी को तो नहीं अखरा, लेकिन मोरारजी को कष्ट हो गया। तो मोरारजी ने पहला ही सवाल पूछा कि यह जो गोष्ठी बुलाई गई है इसको हम इस सवाल से ही शुरू करें; मैं आपसे पूछता हूं कि आप ऊपर क्यों बैठे हैं और हम लोग नीचे क्यों बैठे हैं?
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