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जीवन कोमल हैं और मृत्यु कठोर
तुमने छा दिया है; पता ही नहीं चलता तुम्हारे अज्ञान का कि कहां है। उस पांडित्य के कारण ही तुम सख्त हो गए हो, तुम्हारी लोच खो गई है।
मेरे पास पंडित आ जाते हैं। तो जितना जड़-बुद्धि मैं उनको पाता हूं उतना किसी को भी नहीं पाता। खोपड़ी उनकी बिलकुल भरी, हृदय बिलकुल खाली। वे खुद बोलते ही नहीं, उपनिषद उनमें से बोलता है। वे खुद बोलते ही नहीं, गीता उनमें से दोहरती है। टेप रेकार्डर हो सकते हैं, आदमी नहीं हैं। ग्रामोफोन के रेकार्ड हो सकते हैं, मनुष्य नहीं हैं। और ग्रामोफोन के रेकार्ड भी घिसे-पिटे; वह भी कोई ताजा रेकार्ड नहीं कि अभी ले आए बाजार से; घिसा-पिटा! अक्सर तो ऐसी हालत है उनकी जैसा ग्रामोफोन के रेकार्ड में कहीं लकीर टूटी होती है और सुई फंस जाती है और वही लकीर दोहरती जाती है: हरे कृष्ण हरे राम, हरे कृष्ण हरे राम, हरे कृष्ण हरे राम। इसको वे मंत्र कहते हैं। यह केवल टूटा हुआ ग्रामोफोन रेकार्ड है जिसमें सुई फंस गई। वे उसी को दोहराए चले जाते हैं। आगे जाने का उपाय नहीं, पीछे लौटने का उपाय नहीं; बस एक ही लकीर दोहरती रहती है।
एक गहन जड़ता पंडितों में दिखाई पड़ती है। छोटे बच्चे कहीं ज्यादा ज्ञानपूर्ण होते हैं। अज्ञान उनका है, लेकिन अभी ढंका नहीं। अभी खुले आकाश जैसा है; अभी सब रास्ते खुले हैं; अभी वे कहीं भी जा सकते हैं, अभी उनकी मुक्ति साफ है। तुम छोटे बच्चे की भांति सदा बने रहना-सीखने को तत्पर, सदा उत्सुक-आतुर। पंडित का अर्थ है, जो सिखाने को उत्सुक है, सीखने को नहीं। पंडित का अर्थ है, जो शिष्य की तलाश में है, गुरु की तलाश में नहीं।
सीखने को उत्सुक व्यक्ति हमेशा, हर जगह खोज रहा है; खोजी है। जहां से मिल जाए, धन्यवाद देगा और ले लेगा। और अतीत को कभी भी बोझिल नहीं होने देता, भविष्य को खुला रखता है। अतीत को कभी भविष्य और अपने बीच में दीवाल नहीं बनने देता कि मैंने जान लिया, अब जानने को क्या है, अब जाना कहां है।
कितना ही जाना हो, वह ना-कुछ है उसके मुकाबले जो अभी जानने को शेष है। और सब कुछ जान लिया हो तो भी इस जगत में कुछ है जो अज्ञेय है, जो जानने से जाना ही नहीं जाता। वही परमात्मा है। वह तो होने से जाना जाता है, जानने से नहीं जाना जाता।
'इसलिए सेना जब हठी होगी, वह युद्ध में हार जाएगी।' क्योंकि हठ सख्ती है।
'जब वृक्ष कठिन होगा, वह काट दिया जाएगा। बड़े और बलवान की जगह नीचे है, सौम्य और कमजोर की जगह शिखर पर है।'
. इसलिए मैं कहता हूं कि लाओत्से ओस की तरह ताजा है। उसने जिंदगी से सीधा पीया है, जिंदगी के घाट से सीधा पीया है, किसी शास्त्र से नहीं। वह कहता है कि बड़ा और बलवान तुम्हें दिखाई पड़ता है शिखर पर है; तुम गलती में हो। सिर्फ कोमल, नम्य, कमजोर शिखर पर है; क्योंकि कोमल और नम्य सुंदर है, सत्य है, जीवंत है। जड़ें जमीन में हैं; वे मजबूत हैं। फूल शिखर पर है; वह कमजोर है। बड़े पत्थर, मजबूत पत्थर नींव में पड़े हैं मंदिर की; स्वर्ण-शिखर कमजोर, नम्य, ऊपर है। और जीवन में भी यही सत्य है। अगर इससे विपरीत तुम्हें दिखाई पड़ता हो तो उसका केवल एक ही कारण होगा कि तुम शीर्षासन कर रहे हो।
अब अगर तुम शीर्षासन करके खड़े हो जाओ।
मैंने सुना है, एक गधा एक बार पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिलने गया। वे उस वक्त शीर्षासन कर रहे थे। सुबह का वक्त था, वे अपने लान में शीर्षासन कर रहे थे। सिपाही भी द्वार पर खड़ा झपकी ले रहा था। और कोई आदमी गुजरता तो वह रोकता भी; गधा जा रहा था, उसने कहा जाने दो, गधा क्या बिगाड़ लेगा! कोई षड्यंत्रकारी भी नहीं हो सकता; कोई बम भी नहीं रख सकता। गधा ही है। थोड़ा-बहुत घास-पात चर लेगा, चला जाएगा।
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