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धर्म का सूर्य अब पश्चिम में उगेगा
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जो मांगोगे, उससे पता चलेगा कि तुम कहां हो। तुम्हारी मांग तुम्हें बता देगी। क्या तुम परमात्मा को देख कर मांगने की चेष्टा करोगे या सच में ही देख कर इतने परितृप्त हो जाओगे कि कहोगे कि कुछ भी मांगना नहीं ? मांगने की चेष्टा में ही छिपा है कि परमात्मा की चाह न थी; चाह कुछ और थी, परमात्मा का तो उपयोग था। मांग तो कुछ और ही रहे थे; परमात्मा से मिलेगा, इसलिए परमात्मा की भी खोज थी। लेकिन परमात्मा लक्ष्य न था; लक्ष्य तो वही है जो तुम मांगना चाहते हो। मिला परमात्मा और तुमने मांग ली इंपाला कार; इंपाला कार लक्ष्य था। तो परमात्मा न हुआ, इंपाला कार कोई दुकानदार हुआ। और तुम्हारी नजर इंपाला कार पर थी और परमात्मा से भी तुमने वही मांगा। तुम जब मंदिर जाते हो, क्या मांगते हो, सोचना थोड़ा। तुम्हारी मांग ही तुम्हारे और परमात्मा के बीच में बाधा है।
वे दो सीढ़ियां नहीं हैं तुम्हारे जीवन में, इसलिए हजार तरह की मांगें खड़ी हो गई हैं। अगर तुम परमात्मा से ही तृप्त हो सको तो समझना कि दो सीढ़ियों को तुम पार कर गए।
इसलिए अपने मन में बहुत प्रसन्न मत होना। क्योंकि मैं यह देखता हूं कि पूरब के लोग बड़ी रुग्ण सांत्वना से भर गए हैं। वे अपने को संतोष दिलाते रहते हैं कि पश्चिम में तो बड़ा विषाद है, लोग दुखी हैं। देखो पश्चिम में कितने लोग आत्महत्या करते हैं, यहां कोई करता है? आत्मा भी तो होना चाहिए आत्महत्या करने के पहले; हत्या किसकी करोगे ! पश्चिम में कितने लोग पागल हो जाते हैं; यहां कोई होता है? पागल होने के लिए बुद्धि भी तो चाहिए। जिनकी बुद्धि नहीं है, उनको कभी पागल होते देखा है ? जो हो वही तो खो सकते हो। पश्चिम सोचता है, प्रगाढ़ता से सोचता है, इसलिए पागल हो जाता । तुमने कभी सोचा है? तुम्हारा सोच-विचार क्या है ? अखबार पढ़ने से ज्यादा तुम्हारा कोई सोच-विचार है ? अखबार पढ़ कर तुम सोच रहे हो पागल हो जाओगे ? तुमने किसी विचार को इतनी गहनता से समझने की कोशिश की है कि तुम्हारा सारा जीवन आंदोलित हो जाए, कि तुम कंप जाओ, कि तुम्हारी जमीन से जड़ें हिल जाएं, कि तुम्हारी बुनियाद गिर जाए ? तुमने कभी कुछ नहीं सोचा है । तुमने क्या सोचा है? पागल कैसे हो जाओगे ? और जिंदगी में तुमने पाया कुछ नहीं है अभी; आत्महत्या के करीब तुम आओगे कैसे? आत्महत्या के करीब तो वही आता है जिसने जीवन को सारा देख लिया और पाया कि व्यर्थ है; अब कुछ करने को नहीं दिखाई पड़ता, आत्महत्या कर लूं ! मिटा दूं इस जीवन को !
इस घड़ी में ही दो रास्ते खुलते हैं - या तो आत्महत्या या आत्मक्रांति । अगर कोई द्वार न दिखे तो आदमी आत्महत्या कर लेता है। अगर कोई द्वार दिख जाए तो रूपांतरित हो जाता है। आत्महत्या की घड़ी को ही पूरब ने आत्मक्रांति में बदल लिया है। पश्चिम तैयार है अब पूरब की क्रांति के लिए। और पूरब तो अभी पश्चिम की क्रांति के लिए तैयार हो रहा है। पूरब के गुरु अब मार्क्स, एंजिल्स, स्टैलिन, लेनिन, माओत्से-तुंग । तुम बातें कितनी ही करो वेद की और उपनिषदों की, तुम्हारे गुरु माओ, महावीर नहीं। उनकी तो तुम सिर्फ पूजा करते हो ! पश्चिम देख रहा है उपनिषद की तरफ, वेद की तरफ, गीता की तरफ। वह घड़ी आ गई है जहां शरीर और मन की यात्रा पूरी हो गई है। अभी हताशा है; जल्दी ही आनंद की वर्षा भी हो जाएगी। अभी उदासी है; अगर मार्ग मिल गया तो जितनी गहन उदासी है उतना ही हर्षोन्माद भी हो जाएगा। वह अनुपात हमेशा बराबर होता है।
तुम कितने उदास हो परमात्मा के बिना, इस पर ही निर्भर करेगा कि परमात्मा को पाकर तुम कितने आनंदित होओगे ! अगर परमात्मा को बिना पाए तुम सिर्फ दो इंच उदास हो तो परमात्मा को पाकर दो इंच आनंद की वर्षा होगी, बस। अगर परमात्मा को बिना पाए तुम सौ इंच उदास हो तो परमात्मा को पाकर सौ इंच वर्षा हो जाएगी। अगर परमात्मा को बिना पाए तुम पांच सौ इंच उदास हो तो परमात्मा को पाकर तुम चेरापूंजी में हो जाओगे, पांच सौ इंच मेघ बरस जाएंगे। कितनी तुम्हारी उदासी है परमात्मा को बिना पाए उतना ही तुम्हारा आनंद होगा परमात्मा को पाकर । आनंद की मात्रा वही होगी जो उदासी की सघनता है। प्यास ही तो तय करेगी कि तृप्ति कितनी होगी! प्यासे ही नहीं