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ताओ उपनिषद भाग ६
फिर मजा ही क्या। जलाए जाओगे बार-बार, अनंत बार, और जलोगे नहीं, बचोगे। मर ही गया मरीज तो एक ही दफे में कष्ट खतम हो गया। कीड़े-मकोड़े तुम्हारे शरीर में से छेद करके घूमेंगे चारों तरफ और तुम मरोगे नहीं। भूखे रहोगे, प्यासे रहोगे; मरोगे नहीं।
कष्ट देने की इतनी इच्छा, सताने की इतनी वृत्ति जिन हृदयों से उठी होगी, उनके भीतर असाधु छिपा है, साधु ऊपर है। नरक की कल्पना ही असाधुओं की है, जिनको मनोवैज्ञानिक सैडिस्ट कहते हैं, जो दूसरों को दुख देने में रस लेते हैं। अब यह इतना दुख! तुमने कभी सोचा, तुमने पाप क्या किया है?
एक आदमी मेरे पास आया। वह कहता है, मैं बहुत पापी हूं। मैंने कहा, तू पहले पाप तो बता। वह कहता है, मैं सिगरेट पीता हूं।
कुछ पाप भी तो ढंग का करो। सिगरेट पी रहे हैं, धुआं बाहर-भीतर निकाल रहे हैं। इसमें पाप क्या है? मूर्खता हो सकती है, पाप तो नहीं है। नासमझी हो सकती है, बुद्धिहीनता हो सकती है कि धुएं को बाहर-भीतर करते रहते हैं
और इसमें रस लेते हैं; मगर निर्दोष है। इसमें पाप क्या है? और सजा तो मिल ही जाएगा। अस्थमा हो जाएगी, टी.बी. हो जाएगी, कैंसर हो जाएगा। अब इसके लिए और अलग से नरक का इंतजाम करने की जरूरत क्या है? कैंसर काफी नहीं है? साधुओं को नहीं लगता काफी; वे कहते हैं, कैंसर से क्या हल होगा! सजा बड़ी चाहिए।
तुमने पाप भी क्या किया है? मैं कभी-कभी, पापों के संबंध में जब लोग मुझसे आकर कहते हैं, तो मैं हैरान होता हूं कि तुमने पाप भी क्या किया है!
नहीं, वे कहते हैं, आपको पता नहीं एक स्त्री के पीछे मैं दीवाना हो गया।
तो क्या पाप है? तुम्हारा एक देवता नहीं है शास्त्रों में जो दीवाना न हुआ हो। तुम इतने क्यों घबड़ा रहे हो? और परमात्मा भी स्त्री में उत्सुक होना चाहिए, नहीं तो बनाता नहीं। पाप कहां है? सारा अस्तित्व स्त्री-पुरुष के मेल से बना है। वृक्ष भी नर और मादा हैं; पशु-पक्षी भी; पौधे भी। ऐसा लगता है कि जीवन की ऊर्जा इस द्वंद्व के बिना थिर नहीं रह सकती। स्त्री और पुरुष का भेद और आकर्षण सृष्टि का सारा राज है। इसमें पाप कहां है!. .
जवान आदमी आ जाते हैं और कहते हैं कि मन में बड़ा पाप है, स्त्रियों की तरफ मन में आकांक्षा पैदा होती है।
वह तुमने तो पैदा नहीं की; की हो तो परमात्मा ने ही पैदा की होगी। और आखिरी निर्णय अगर कभी कोई होना है तो वही जिम्मेवार होगा। तुम इतना क्या परेशान हो रहे हो? और स्त्री में ऐसा क्या पाप है? अगर तुम्हारे पिता के मन में पाप न उठा होता तो तुम न होते। उनके पिता के मन में पाप न उठा होता तो तुम्हारे पिता भी न होते। बड़ी कृपा थी उनकी कि उन्होंने ब्रह्मचर्य नहीं रखा।
जीवन की सामान्य स्वाभाविकता को निंदित कर दिया गया है। इतना निंदित कर दिया गया है कि तुम कैसे मान सकोगे कि तुम मंदिर हो परमात्मा के। तुम तो वेश्यालय मालूम पड़ते हो, मंदिर नहीं; बूचरखाना मालूम पड़ते हो, मंदिर नहीं। और हो तुम मंदिर। इतनी निंदा के बाद तुम कैसे खोज पाओगे उस सूत्र को जो परमात्मा का है, तुम्हारे भीतर छिपा है।
इसलिए लाओत्से कहता है, 'उनके निवास-गृहों की निंदा मत करो।' ___ अंधेरे में रहते हैं माना, उन पर दया करो, निंदा मत करो। उन्हें बाहर निकालने की कोशिश करो। निंदा करोगे तो वे और भी अंधकार में गिर जाएंगे। उन्हें उठाओ, सहारा दो, बल दो, हिम्मत दो। और उनसे कहो, घबड़ाओ मत, कुछ भी पाप नहीं है। परमात्मा हर पाप से बड़ा है। और तुम्हारे पुण्य की क्षमता तुम्हारे सब पापों के जोड़ से अनंत गुना बड़ी है। और तुमने जो किया है वह ना-कुछ है; तुम जो हो वह विराट है। तुम्हारे कृत्यों से तुम्हारी आत्मा का कोई मूल्यांकन नहीं होता। कृत्य तो क्षुद्र हैं। उठो!
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