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ताओ उपनिषद भाग ६
अगर तुम सौभाग्यशाली हो तो पशुओं के संबंध में क्या कहोगे? वे तो बहुत सौभाग्यशाली हैं, तुमसे भी ज्यादा। और अगर पशुओं के भी गुरु होंगे, शंकराचार्य होंगे, तो वे उनको समझा रहे होंगे कि तुम आदमियों से बेहतर अवस्था में हो कि देखो, कितने परेशान, चिंता से मरे जाते हैं, शांति नहीं; तुम कम से कम शांत तो हो।
फिर पौधों की क्या कहो? पौधों के शंकराचार्य उनको समझा रहे होंगे कि तुम तो पशुओं से भी बेहतर हो। इनको तो फिर भी थोड़ा रोटी-रोजी के लिए यहां-वहां जाना पड़ता है, थोड़ा श्रम करना पड़ता है; कभी मिलती भी है, कभी नहीं भी मिलती; तुम तो अपनी जड़ जमाए खड़े हो। वर्षा में वर्षा हो जाती है; जमीन से भोजन मिल जाता है; तुम्हारा तो कहना ही क्या!
फिर पत्थर हैं, चट्टानें हैं, पहाड़ हैं। उनके शंकराचार्य उनको समझा रहे होंगे कि तुम्हारा सौभाग्य तो अनंत है। कभी-कभी वर्षा नहीं भी होती तो पौधे तक बेचैन हो जाते हैं। कभी-कभी जमीन अपना सत्व खो देती है तो पौधों को भोजन नहीं मिलता। लेकिन चट्टान! तू तो अहोभागी है! तुझे फिक्र ही नहीं; वर्षा हो तो ठीक, वर्षा न हो तो ठीक; जमीन में सत्व बचे तो ठीक, जमीन का सत्व खो जाए तो ठीक। तू तो परम समाधि में लीन है।
स्मरण रखना, मूर्छा समाधि नहीं है। और जो होश से भरता है वही विषाद से भरता है। मूछित आदमी में कोई विषाद होता है? इसलिए तुम पाओगे, मनुष्य-जाति में जो सबसे छिछले लोग हैं, उनको तुम ज्यादा प्रसन्न पाओगे-सड़कों पर घूमते, होटलों में बैठे, क्लबघरों में, रोटरी, लायंस-जो सबसे छिछले लोग हैं, तुम उन्हें वहां बड़ा प्रसन्न पाओगे। जो आदमी जितना ज्यादा विचार में पड़ेगा, जितनी जिसकी चेतना में सघनता आएगी, उतनी ही उसकी मुस्कुराहट खो जाएगी। क्योंकि तब उसे दिखाई पड़ेगा ः जो मैं जी रहा हूं, यह भी कोई जीवन है? रोटरी क्लब का सदस्य हो जाना कोई भाग्य है? नियति है? अच्छे होटल में भोजन कर लेने से क्या मिलेगा? थोड़ी देर का राग-रंग है, सपना है; खो जाएगा।
जिस आदमी में विचार का जन्म होगा वह उदास हो जाएगा, वह बड़े विषाद से भर जाएगा। ये सब खिलौने मालूम पड़ेंगे, जिन्हें तुमने जीवन समझा। और मौत द्वार पर खड़ी है। जो किसी भी क्षण पकड़ लेगी और खिलौने पड़े रह जाएंगे। न तुम्हारे धन की, न तुम्हारी संपत्ति की, न तुम्हारे पद की, न तुम्हारी प्रतिष्ठा की मृत्यु कोई चिंता करेगी; क्षण भर का भी मौका न देगी। तुम कितना ही कहो कि मैं पार्लियामेंट का मेंबर हूं, जरा रुक जाओ; वह न रुकेगी। सब पड़ा रह जाएगा-तुम्हारी पार्लियामेंट, तुम्हारे खिलौने, तुम्हारे पद, प्रतिष्ठाएं, सब कूड़ा-कर्कट में पड़ी रह जाएंगी। जैसे ही मौत द्वार पर दस्तक देगी, तत्क्षण तैयार हो जाना पड़ेगा जाने को। बबूला फूट गया।
जिस आदमी में विचार होगा, जिसमें थोड़ा विमर्श होगा, वह चिंतित तो हो ही जाएगा। यहां तो सिर्फ मूढ़ ही निश्चित मालूम पड़ते हैं। या तो बुद्ध निश्चित होते हैं या मूढ़ निश्चित होते हैं। और तुम निश्चित होओ तो यह मत सोच लेना कि बुद्ध हो गए। क्योंकि बुद्ध तो कभी करोड़ों-करोड़ों वर्षों में कोई एकाध होता है; करोड़ों में से संभावना एक की बुद्ध होने की है, शेष की तो मूढ़ होने की है।
पूरब बहुत मूढ़ है। पूरब शरीर के तल से भी नीचे जी रहा है-बड़े परिमाण में। थोड़े से पूरब के लोग मन के तल पर जी रहे हैं। और बहुत थोड़े से लोग आत्मा में प्रवेश करने की चेष्टा कर रहे हैं।
लेकिन पश्चिम में बड़ा प्रवाह आया है। शरीर की जरूरतें पूरी हो गई हैं, भूख मिट गई है, भोजन पर्याप्त हो गया है। इसलिए शरीर से जो जीवन उलझा था वह मुक्त हो गया है। शरीर में जो ऊर्जा लग जाती थी-भोजन कमाने में, रोटी बनाने में, कपड़ा पाने में वह समाप्त हो गई है। तो जो ऊर्जा मुक्त हो गई है शरीर के जीवन से, वह मन में काम आ रही है। इसलिए लोग ज्यादा संगीत में डूबे हैं, ज्यादा साहित्य में डूबे हैं। कोई मूर्ति बना रहा है, कोई पेंटिंग कर रहा है। पश्चिम में ऐसा आदमी पाना मुश्किल है जिसकी कोई हॉबी न हो।
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