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ताओ उपनिषद भाग ६
इसलिए सार्च घूम-घूम कर उदासी पर लौट आता है। बुद्ध जब उदास हुए तो गोल उदास चक्कर में नहीं घूमने लगे; जब उदास हुए पूरे तो आत्मा की खोज पर निकले। क्योंकि हवा पूरब की बड़े अनादि काल से आत्मा का गुणगान कर रही है। और हर आदमी प्रतीक्षा कर रहा है कि कब वह मौका आएगा जब मेरी छोटी जरूरतें पूरी हो जाएंगी, तब मैं उस बड़ी जरूरत की तरफ यात्रा पर निकल जाऊंगा। जाने-अनजाने, गहरे अचेतन में वह आत्मा की खोज छिपी है; तुम्हें पता हो, न पता हो। तुम शरीर में भोग रहे हो, भोगते रहो; लेकिन तुम्हारे भीतर अचेतन कोने में एक आवाज खड़ी है कि कब उठोगे इससे? कब जागोगे इससे? यहां बेहोश से बेहोश आदमी के भीतर भी एक स्वर गूंज रहा है, वह स्वर पूरब की संस्कृति का स्वर है। वही तो पूरब का भाग्य है।
पूरब दरिद्र है, दीन है, वह दुर्भाग्य है। जब भी पूरब में कभी पश्चिम जैसी सुविधा होगी-जब थी, जैसे बुद्ध के समय में थी, तो हजारों-लाखों लोग आत्मा की खोज पर गए, और सैकड़ों लोगों ने आत्मा के दर्शन किए। जैसे वह हमारा नियत कार्यक्रम है, जब सब काम चुक जाएगा तब हम तीर्थ-यात्रा पर निकल जाएंगे, तब वह अनंत की यात्रा शुरू होगी।
तो बुद्ध को उपाय था, संस्कृति में एक द्वार था। पश्चिम की संस्कृति मन पर पूरी हो जाती है। इसलिए पश्चिम की संस्कृति में मन की वासना पूरे होने पर दीवाल आ जाती है, द्वार नहीं आता। इसलिए वहां इतनी उदासी है। लेकिन यह ज्यादा देर नहीं रहेगी, क्योंकि कोई भी संस्कृति ज्यादा देर कैसे उदासी को बरदाश्त कर सकती है? और आत्महत्या कहीं लक्ष्य बन सकता है? आदमी खोज ही लेगा, दीवाल को तोड़ ही देगा, दरवाजा बना ही लेगा। इसलिए तो हजारों लोग पश्चिम से मेरे पास चले आ रहे हैं; खोज रहे हैं।
कल ही एक युवक मेरे पास आया। बड़ा लेखक है, दस-बारह बड़ी प्रसिद्ध किताबों का लेखक है। पश्चिम में बड़ा नाम है, इज्जत है, प्रतिष्ठा है, पैसा है, सब है। उसके आने के पहले मैंने उसकी किताबें पढ़ी हुई थीं। मुझे कभी खयाल भी न था कि यह व्यक्ति कभी आ जाएगा। वह मौजूद हो गया। खोज पर है। सूफियों के पास गया है। तिब्बेतन लामाओं के पास गया है। गुरजिएफ की व्यवस्था में शिक्षा पाई है। खोज रहा है-दूर-दूर तक खोज रहा है।
दीवाल टूटेगी। कितनी देर दीवाल टिक सकती है? पश्चिम जल्दी ही बड़ी धार्मिक क्रांति के निकट पहुंच रहा है। उसके पहले आसार तो आ गए। सूरज की पहली किरण तो फूट गई है। सुबह होने के करीब है। इसलिए पश्चिम अब पूरब की तरफ उन्मुख है।
अब यह बहुत बड़ी मजेदार घटना घट रही है। पूरब का समझदार आदमी पश्चिम की तरफ देख रहा है। पूरब में जो समझदार हैं-वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर-वे पश्चिम की तरफ भाग रहे हैं। क्योंकि वहां है राज शरीर के विज्ञान का, मन के विज्ञान का। सब पश्चिम की तरफ भाग रहे हैं। तुम्हारे गांव में भी डाक्टर हो, उसके पास अगर डिग्री लंदन की है तो बात और। और यहीं पूना की डिग्री है तो ठीक है। सर्जन हो और एफ.आर.सी.एस. है तो बात
और! क्योंकि ज्ञान वहां है शरीर और मन का। हम तो उधार हैं उस मामले में। हमारे पास वह कुछ भी नहीं है। हम वहां जा रहे हैं। शरीर और मन की शिक्षा के लिए पूरब पश्चिम के चरणों में बैठ रहा है; और आत्मा की शिक्षा के लिए पश्चिम पूरब के चरणों में झुक रहा है। एक बड़ी अनूठी घटना घट रही है।
पूरब से घूम कर जब कोई आदमी पूरब की यात्रा से पश्चिम लौटता है तो जो खबरें ले जाता है वे अध्यात्म की हैं-ध्यान की हैं, योग की हैं, संन्यास की हैं। पश्चिम से जब कोई आदमी पूरब लौट कर आता है तो वह जो खबरें लाता है, वे विज्ञान की हैं; धर्म की नहीं हैं, अध्यात्म की नहीं हैं।
पूरब को सीखना पड़ेगा पश्चिम से शरीर और मन का शास्त्र। और जितने जल्दी सीख ले उतना बेहतर। काफी हमने उपेक्षा कर ली उसकी; समय है कि हम समझ लें। और ध्यान रहे कि अगर पूरब ने मन और शरीर का
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