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अभय और प्रेम जीवन के आधार ठों
ऊपर से बदलाहट नहीं की जा सकती। क्रांति, बदलाहट जड़ से लानी होती है। ऊपर से बदलने जाओगे, कुछ भी न बदलेगा। मूल भय पर खड़ा है। वहीं भूल है। मूल प्रेम पर खड़ा होना चाहिए। एक-एक परिवार से प्रेम की व्यवस्था बननी शुरू होनी चाहिए। डराओ मत बच्चों को। वक्त लगेगा, समय लगेगा, दो-चार पीढ़ियां अगर प्रेम में जीने की कोशिश करें तो ऐसी घड़ी आएगी जहां उपद्रव शांत हो जाएंगे। कोई इतना अशांत न होगा कि उपद्रव करने की कोशिश करे।
और तात्कालिक व्यवस्था कुछ भी करने का बड़ा प्रयोजन नहीं है। तात्कालिक व्यवस्था से कुछ भी नहीं होता, सनातन व्यवस्था चाहिए। बीमारी गहरी है, ऊपर से चोट करने से मिटती नहीं। तुम थोड़ी-बहुत देर के लिए दबा दो, फिर बीमारी खड़ी हो जाएगी। मौलिक रूपांतरण चाहिए।
उसी मौलिक रूपांतरण के लिए लाओत्से के वचन हैं।
वह कहता है, 'बधिक की जगह लेना ऐसा है जैसे कोई महा काष्ठकार की कुल्हाड़ी लेकर चलाए। जो महा काष्ठकार की कुल्हाड़ी हाथ में लेता है, वह शायद ही अपने हाथों को जख्मी होने से बचा पाए।'
ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन एक स्कूल में मास्टर था। एक औरत एक दिन आई अपने बेटे को लेकर और उसने कहा कि कुछ इसे डराओ-धमकाओ, क्योंकि यह बिलकुल बगावती हुआ जाता है। न किसी की सुनता, न कोई
आज्ञा मानता। सब अनुशासन इसने तोड़ डाला है। हम बड़े बेचैन हैं। इसे थोड़ा डराओ-धमकाओ। इसे रास्ते पर लाओ। ऐसा सुनते ही नसरुद्दीन ऐसा उछला-कूदा, ऐसा चीखा-चिल्लाया कि बच्चा तो डरा ही डरा, औरत बेहोश हो गई। उसने इतना न सोचा था कि यह...। वह तो समझी कि यह आदमी पागल हो गया या क्या हुआ। बच्चा भाग खड़ा हुआ। औरत बेहोश हो गई। और नसरुद्दीन खुद इतना घबड़ा गया कि खुद भी बच्चे के पीछे भाग खड़ा हुआ।
घड़ी भर बाद झांक कर उसने देखा कि औरत होश में आई या नहीं। जब औरत होश में आ गई तब वह भीतर आकर, वापस अपने आसन पर बैठा। उस औरत ने कहा कि यह जरा ज्यादा हो गया, मेरा मतलब ऐसा नहीं था। मैंने यह नहीं कहा था कि मुझे डरा दो।
नसरुद्दीन ने कहा कि देख, भय का शास्त्र किसी की चिंता नहीं करता। जब बच्चे को मैंने डराया तो भय थोड़े ही देखता है कि कौन बच्चा है और कौन तु है। जब भय पैदा किया तो वह सभी के लिए पैदा हो गया। बच्चा तो डरा ही डरा, अब सपने में भी मेरी सूरत देख कर कंप जाएगा। लेकिन भय किसी का पक्षपात नहीं करता। तू भी डरी। और तेरी छोड़, मेरी हालत पूछ! मैं तक घबड़ा गया। अब इस बच्चे को मैं भी देख लूंगा तो मेरे हाथ-पैर कंपेंगे। मैं खुद ही आधा मील का चक्कर लगा कर आ रहा हूं; बामुश्किल रोक पाया अपने को भागने से। ऐसी घबड़ाहट पकड़ गई।
इसे ध्यान में रखो। नसरुद्दीन ठीक कह रहा है। भय से जब तुम किसी को भयभीत करते हो तो तुम दूसरे को ही भयभीत नहीं करते, अपने को भी भयभीत कर लेते हो। जब तुम बुराई से किसी को डराते हो तब तुम खुद भी डर जाते हो। यह दुधारी तलवार है। और इसे सम्हाल कर हाथ में उठाना, क्योंकि तुम्हारे हाथ भी लहूलुहान हो जाएंगे।
लाओत्से कह रहा है कि कोई कलाकार काष्ठकार होता है, निष्णात होता है अपनी कुल्हाड़ी को पकड़ने में। तुम उसकी कुल्हाड़ी पकड़ कर मत चलाना। नहीं तो तुम अपने हाथों को जख्मी होने से न बचा पाओगे।
जीवन का शास्त्र बड़ा बारीक, नाजुक है। और जीवन के शास्त्र को सम्हल कर एक-एक कदम होशपूर्वक कोई चले तो ही अपने को बचा पाएगा जख्मी होने से। अन्यथा तुम दूसरे को सुधारने में अपने को बिगाड़ लोगे, दूसरे को बनाने में खुद मिट जाओगे।
ऐसा मैंने सुना है कि इजिप्त में एक बादशाह पागल हो गया। और पागल हो गया शतरंज खेलते-खेलते।
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