________________
ताओ उपनिषद भाग ६
है। लेकिन भयभीत आदमी ने उसको भी उधार करवा लिया है। क्योंकि भयभीत आदमी आज को तो मान ही नहीं सकता। भयभीत आदमी सदा यह चेष्टा कर रहा है कि आज तो गया ही उसके लिए, कल को सम्हाल ले। भयभीत आदमी को आज तो जाया हुआ मालूम पड़ता है, जा चुका; अब उस पर हाथ कहां है? कल सम्हल जाए किसी तरह।
लोग मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं, यह जीवन तो गया।
तुम आए कैसे अगर यह जीवन जा चुका? तुम यहां मेरे पास बैठे हो भले-चंगे, श्वास ले रहे हो, मुझे देख रहे हो, बोल रहे हो। तुम कहते हो, यह जीवन जा चुका। तुम किसको धोखा दे रहे हो? तुम कुछ भी करना नहीं चाहते, इसलिए अब तुम कह रहे हो जीवन जा चुका।
अब तो कुछ ऐसा बताएं, वे मुझसे कहते हैं, कि अगली सुधर जाए, आने वाला जीवन सुधर जाए। '
भयभीत आदमी हमेशा कल की तरफ देखता है; अभय से भरा आदमी आज को जीता है। भयभीत आदमी के कारण कर्म का पूरा सिद्धांत विकृत हो गया। कर्म का सिद्धांत सीधा-साफ है कि तुम करो, तत्क्षण फल है। मैं कहता हूं, तत्क्षण! एक क्षण का भी फासला नहीं है कर्म में और फल में। हो नहीं सकता। तुम अगर दान दोगे तो अभी आनंद पा लोगे। बात चुक गई। तुम अगर चोरी करोगे तो अभी पीड़ा पा लोगे। बात चुक गई। तुम क्रोध करोगे, अभी जलोगे-झुलसोगे। तुम ईर्ष्या से भरोगे, अभी जहर तुम्हारे भीतर फैल जाएगा। तुम्हारा जीवन एक फफोले, फोड़े की तरह हो जाएगा। तुम मवाद से भर जाओगे अभी।
अस्तित्व नगद है, इसे बहुत खयाल में रख लेना। लेकिन तुम कहते हो कि आज क्रोध करेंगे, कल दंड मिलेगा। इससे सुविधा मिल जाती है कि कोई हर्जा नहीं, आज तो अब जो हो रहा है कर लो, कल का कल देखेंगे।
और फिर पुरोहितों ने तुम्हें रास्ते भी बता दिए हैं कि अगर क्रोध हो जाए, कोई हर्जा नहीं। गंगा-स्नान कर लेना, पाप धुल जाते हैं। मंदिर में जाकर नारियल चढ़ा आना, पाप से छुटकारा हो जाएगा। इधर चोरी करना, उधर थोड़ा दान दे देना। इधर धोखा देना, उधर जाकर एक मंदिर या धर्मशाला बनवा देना।
दूसरी बात तुम खयाल ले लो : बुरे कर्म को किसी अच्छे कर्म से काटा नहीं जा सकता, न किसी अच्छे कर्म को किसी बुरे कर्म से काटा जा सकता है। अच्छे और बुरे कर्म का मिलन ही नहीं होता। वे तो रेल की पटरियों की भांति समानांतर चलते हैं; कहीं उनका कोई मिलन नहीं होता। लेकिन भयभीत आदमी ने सोच रखा है कि कर लेंगे कुछ उपाय, कुछ धोखा दे देंगे। और मिलन हो भी जाए तो कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि बुरे को करने में ही बुरे का फल मिल गया। अब करोगे क्या? भले को करने में भले का फल मिल गया। कर्म संचित नहीं होते; प्रतिपल निपट जाते हैं।
इसीलिए तो इस बात की संभावना है कि अगर तुम परिपूर्ण मन से पुकारो तो इसी क्षण मुक्त हो जाओगे। नहीं तो तत्क्षण मुक्ति का कोई अर्थ ही न रह जाएगा। कितने जन्मों से तुम जी रहे हो? कितने कर्म तुमने इकट्ठे कर लिए हैं? अगर सब का हिसाब होना है तो कोई उपाय नहीं है।
मैंने सुना है, एक ईसाई फकीर बोल रहा था। ईसाइयों की मान्यता है कि एक जजमेंट, आखिरी निर्णय का दिन होगा, कयामत का, जब सब मुर्दे उठाए जाएंगे और परमात्मा निर्णय करेगा। जब वह फकीर बोल रहा था, मुल्ला नसरुद्दीन कंप रहा था, घबड़ा रहा था। सुन रहा था उसको; वह बड़ा ही वीभत्स वर्णन कर रहा था कि कैसे-कैसे कष्ट लोगों को मिलेंगे जिन्होंने पाप किए हैं। तो हाथ-पैर भय से भी कंप रहे थे। और जीभ में लार भी आ रही थी, क्योंकि वह वर्णन कर रहा था स्वर्ग के भी-कैसे-कैसे भोग वहां मिलेंगे, कैसे-कैसे सुखों की वहां वर्षा होगी जिन्होंने पुण्य किए हैं।
फिर आखिर में मुल्ला नसरुद्दीन खड़ा हुआ और उसने कहा, एक सवाल है; क्या एक ही दिन में सब निर्णय हो जाएगा? सब मुर्दो का जितने अब तक हुए? और उनके सब कर्मों का? उस आदमी ने कहा, हां। उसने कहा, एक
|188