________________
ताओ उपनिषद भाग६
लेकिन अगर जीवन ही परमात्मा है तो फिर मंदिरों की और मस्जिदों की जरूरत क्या रहेगी? जीवन तो बिना मंदिर-मस्जिद के मौजूद है। अगर जीवन ही परमात्मा है तो कुरान, बाइबिल और वेद की क्या जरूरत है? जीवन का तो अपना ही वेद है; जीवन तो खुद ही वेद है। तो पुरोहित जी न सकेगा; धर्मगुरु बच न सकेगा। उसका धंधा ही मिट जाएगा। वह तुम्हें जीवन के विपरीत खड़ा करता है। क्योंकि जीवन के विपरीत खड़े होने में ही उसका धर्म और उसका धंधा खड़ा होता है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे फैलते चले जाते हैं। सारी पृथ्वी भर गई उनसे, और आदमी के जीवन में कहीं कोई आनंद की पुलक नहीं है; आदमी के जीवन में कहीं कोई रस की धार नहीं बहती।
इसे ठीक से समझ लो। क्योंकि यह मैं किसी और के संबंध में नहीं कह रहा हूं, यह तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है। जीवन को करो प्रेम; जीवन को मानो अहोभाग्य; जीवन है परम आशीर्वाद। और अगर जीवन में कहीं बुराई दिखती हो तो जानना कि तुम्हारी ही कोई भूल है। जीवन को काटने में मत लग जाना। जहां तुम्हें बुराई दिखती है वहां भी कुछ भला छिपा होगा। जरा और गहरे खोजना, जल्दी निर्णय मत लेना। क्योंकि तुमने जल्दी निर्णय लिया तो पुरोहित और पंडित तुम्हें शोषण करने को तैयार खड़े हैं। तुमने जरा भी कहा कि यह गलत है कि उन्होंने कहा कि हम तो पहले से ही कहते हैं कि जीवन गलत है, और नर्क है, और पाप है। सुनो हमारी! खोजो परमात्मा को! हम तुम्हें परलोक का मार्ग दिखाते हैं।
___ बस यही लोक है। इसी लोक में गहरे जाने के उपाय हैं। परलोक कहीं भी नहीं है। यही क्षण है। यद्यपि इस क्षण के बड़े गहरे आयाम हैं। तुम चाहो तो नदी को ऊपर से देख कर लौट आ सकते हो। तुम चाहो तो नदी की सतह पर तैर सकते हो। तुम चाहो तो नदी में गहरी डुबकी लगा सकते हो। नदी में गहरे होने के बहुत उपाय हैं। अथाह है जल जीवन का। अगर कहीं भूल दिखाई पड़े तो जल्दी मत करना। क्योंकि उसी भूल के नीचे गहराई में कुछ छिपा होगा। अगर कहीं कठोरता भी मालूम पड़े तो भी जल्दी निंदा मत करना। वहीं कठोरता के भीतर कहीं कोमलता छिपी होगी। और अगर कहीं तुम्हें ऐसा लगे कि अन्याय हो रहा है तो भी निर्णायक मत बनना। क्योंकि जब तक तुम पूर्ण को न जान लो तब तक तुम निर्णय कैसे करोगे? तुम्हें अन्याय दिख सकता है कहीं। क्योंकि तुम खंड को ही जानते हो। तुम्हें पूरे का कुछ भी पता नहीं है।
छोटा सा बच्चा पैदा होता है। पहला ही काम तो करता है कि चीख कर रोता है, चिल्लाता है। धर्मगुरुओं ने इसका भी शोषण कर लिया। उन्होंने कहा, रोते हुए ही तुम पैदा होते हो। जन्म ही रुदन है, दुख है। जन्म की शुरुआत दुख से होती है।
वे बिलकुल ही गलत बात कह रहे हैं। बच्चा दुख के कारण नहीं रोता। और बच्चे के रोने और चिल्लाने के पीछे जीवन की अभीप्सा छिपी है, दुख नहीं।
बच्चा चिल्लाता है; उसके माध्यम से उसका फेफड़ा, गला साफ होता है, और श्वास की धारा शुरू होती है। चिकित्सक जानते हैं कि अगर बच्चा तीन मिनट तक न रोए-चिल्लाए तो बचाना मुश्किल है; मर जाएगा। क्योंकि अब तक तो मां की श्वास से जीता था; अब अपनी श्वास लेनी है। तो वह जो चीखना है, रोना है, चिल्लाना है, वह सिर्फ गले का साफ करना है। उसमें न तो कोई पीड़ा है; अगर हम बच्चे को जान सकें तो उसके भीतर छिपा अहोभाव है। उसने पहली स्वतंत्रता की श्वास ली। वह पहली दफा अपने तईं चिल्लाया है, आवाज दी है, पुकार दी है। वहां दुख जरा भी नहीं है। वहां पीड़ा जरा भी नहीं है। हां, तुम व्याख्या कर ले सकते हो। और धर्मगुरु उसको पकड़ लेता है कि देखो रोने से...।।
___तुम्हें पता होना चाहिए कि रोने का अनिवार्य संबंध दुख से नहीं है। कभी आदमी सुख में भी रोता है। कभी तो महासुख में ऐसे आंसू बहते हैं जैसे दुख में कभी भी नहीं बहे। रोने का कोई संबंध दुख से नहीं है अनिवार्य। दुख में
148