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मूर्छा रोग है और जागरण स्वास्थ्य
होने को नहीं है, कहीं जाने को नहीं है, कुछ पाने को नहीं है, जब तुम ऐसे बैठ रहते हो, अचानक तुम पाते हो, वर्षा होने लगी, मेघ घिर गए; शांति सब तरफ बरस रही है। तुम सराबोर हुए जा रहे हो। तुम मदमस्त हुए जा रहे हो।
लेकिन जीवन में जो भी घटता है सर्वश्रेष्ठ, वह तुम्हारे कारण नहीं घटता। तुम्हारे कारण तो निकृष्ट ही घटता है। इसीलिए तो ज्ञानियों ने कहा है कि परम ज्ञान या परम अनुभूति प्रसाद है परमात्मा का, हमारा प्रयास नहीं। . तो तुम सर्वश्रेष्ठ होने के लिए मत अज्ञान की घोषणा कर देना। हां, अज्ञान की घोषणा तुम्हारे जीवन में आ जाए तो तुम सर्वश्रेष्ठ हो जाओगे। वह परिणाम है।
'जो उसे भी जानने का ढोंग करता है जो वह नहीं जानता, वह मन से रुग्ण है।'
लाओत्से कहता है, वह बीमार है; उसे मनोचिकित्सा की जरूरत है। तुम अगर इसको सोचोगे तो तुम पाओगे, तब तो करीब-करीब हर आदमी मन से बीमार है। क्योंकि ऐसा आदमी मुश्किल ही है पाना जो सीधा-सीधा कह सके मैं नहीं जानता।
तुमसे अगर कोई पूछता है, परमात्मा है? तो तुमने कभी यह जवाब दिया कि मैं नहीं जानता। नहीं, या तो तुमने कहा, नहीं है। अगर तुम नास्तिक हो, कम्युनिस्ट हो, तो तुमने कहा, नहीं है। वह भी ज्ञान का दावा है कि मुझे पता है, नहीं है। या तुमने कहा, है। वह भी ज्ञान का दावा है। लेकिन कभी तुम्हारे मन से सीधी-साफ बात उठी कि मुझे पता नहीं है; जो कि असलियत है। तुमसे कोई कुछ भी पूछे, उत्तर देने की बड़ी जल्दी और तैयारी है। ऐसा क्षण नहीं आता जब तुम निरुत्तर खड़े रह जाओ और वास्तविक रूप से कह दो कि नहीं, मुझे पता नहीं है।
मुल्ला नसरुद्दीन से एक आदमी ने आकर कहा कि मैं गुरु की तलाश में हूं। और कई गुरुओं के पास गया, 'लेकिन कुछ पाया नहीं। कुछ है नहीं उनमें। जल्दी ही उनका ज्ञान चुक जाता है। कोई रहस्य नहीं है ऐसा जो चुके ही न। तो किसी ने तुम्हारी मुझे खबर दी कि तुम्हारे पास बड़ा रहस्यपूर्ण गुप्त ज्ञान है। मैं उसी को जानने आया हूं। नसरुद्दीन ने कहा कि ठीक, तुम मेरी सेवा में रहो, तैयारी करो। जब तुम तैयार हो जाओगे तब मैं गुप्त ज्ञान तुम्हें दे दूंगा। उस आदमी ने कहा कि ठीक है; सेवा शुरू करने के पहले मैं यह भी पूछ लेना चाहता हूं कि तैयारी की कसौटी, मापदंड क्या होगा कि मैं तैयार हो गया! नसरुद्दीन ने कहा, मापदंड यह होगा जिस दिन तुम यह कहने की हिम्मत जुटा सकोगे कि जो गुप्त ज्ञान मैं तुम्हें दे रहा हूं तुम उसे गुप्त रखने में समर्थ हो गए हो और किसी को बताओगे नहीं। उस आदमी ने कहा कि बात बिलकुल ठीक है।
तीन वर्ष सेवा की। बार-बार उसने पूछा। नसरुद्दीन ने कहा, रुको, तैयार हो जाओ। आखिर तीन वर्ष पर उसने कहा, अब मैं बिलकुल तैयार हो गया हूँ। और आप जो भी ज्ञान मुझे देंगे मैं उसे गुप्त रखंगा।
नसरुद्दीन ने कहा, तब बात खतम हो गई। क्योंकि मेरे गुरु ने भी मुझसे यही कहा था कि जो भी ज्ञान मैं तुम्हें दे रहा हूं, गुप्त रखना। मैं भी गुप्त रखे हूं। और तुम गुप्त रख सकते हो तो मैं भी गुप्त रख सकता हूं। तुमने मुझे समझा क्या है? और अब जब बात उठ ही गई है तो मैं तुम्हें बता दूं कि मेरे गुरु के गुरु ने भी यही कहा था। और मेरे गुरु ने भी मुझे कभी बताया नहीं। ऐसा सदा से चला आया है। और तुमको भी मैंने बताया नहीं, लेकिन इससे घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं। तुम शिष्य खोज सकते हो, बताने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
गुप्त ज्ञान चल रहे हैं। न तुम्हें पता है, न तुम्हारे गुरु को पता है, न तुम्हारे शिष्य को पता है। पता होना बड़ा कठिन है; इतना आसान नहीं है। लेकिन दावेदारी बहुत आसान है। तुम भी बताना चाहोगे। कोई पूछ भर ले। तुम प्यासे तड़प रहे हो, चारों तरफ घूम रहे हो कि कोई मिल भर जाए जो पूछ ले तुमसे कुछ, और तुम बता दो।
एक बड़े मनोवैज्ञानिक के संबंध में मैंने सुना है कि वह एक बड़े अमीर आदमी की चिकित्सा कर रहा था, मनोविश्लेषण कर रहा था। एक दिन अमीर आदमी को आने में देर हो गई; कोई पांच-दस मिनट देर से पहुंचा।
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