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ताओ उपनिषद भाग ६
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जमी हो, और बहते हुए नदियों और पहाड़ों में कितने ही रूप और रंग जिसने लिए हों, लेकिन मनुष्य की जिस पर कोई छाप नहीं, ऐसा अनगढ़ पत्थर । उसे तुम कैसे पहचान सकोगे ?
'वे मुझे भी नहीं जानते हैं। चूंकि बहुत कम लोग मुझे जानते हैं ... ।'
यह वचन बड़ा अनूठा है।
'... इसलिए मैं विशिष्ट हूं ।'
साधारणतः हम उस आदमी को विशिष्ट कहते हैं जिसे बहुत लोग जानते हैं। जिसे सारी दुनिया जानती है वह विशिष्ट | लाओत्से बड़े मजे की बात कह रहा है।
वह कह रहा है, 'चूंकि बहुत कम लोग मुझे जानते हैं, इसलिए मैं विशिष्ट हूं ।'
कनफ्यूशियस को बहुत लोग जानते थे लाओत्से के समय में; लाओत्से को कोई नहीं जानता था । कनफ्यूशियस आदर्श पुरुष था – पुरुषोत्तम, नीति-निष्ठ, आचारवान । उसकी साधुता में जरा भी कमी न थी । तुम कनफ्यूशियस में इंच भर भूल न खोज सकते थे। वह पूर्ण महात्मा था । उसे लोग जानते थे । साधु उसे श्रेष्ठ साधु मानते थे, आदर्श, जैसा उन्हें होना है । असाधु भी उससे ईर्ष्या करते थे, जैसे घाटियां ईर्ष्या करती हों पहाड़ों से, अंधेरी रात ईर्ष्या करती हो दिन से । असाधु भी सपने में सोचते थे कि कभी कनफ्यूशियस जैसे हो जाएं। और साधु भी सोचते थे कि कभी यह आदर्श पूरा होगा चलते-चलते । शिखर था कनफ्यूशियस चीन में। लाओत्से को कोई भी नहीं जानता था। क्योंकि लाओत्से को पहचानना मुश्किल । कनफ्यूशियस था किसी के आंगन में लगे हुए साफ-सुथरे बगीचे की भांति, जहां हर चीज कटी है, साफ-सुथरी है, जहां माली के हाथ के स्पष्ट चिह्न हैं, जहां तुम भूल नहीं खोज सकते, जहां उद्यान के सब नियमों का पालन किया गया है। और लाओत्से था किसी पहाड़ी जंगल की भांति, जहां कोई नियम नहीं है, जहां कोई व्यवस्था नहीं मालूम होती । या कोई ऐसी व्यवस्था है जो अदृश्य है और दिखाई नहीं पड़ती।
है तो जंगल की भी व्यवस्था, क्योंकि जंगल भी जीता है। और क्या तुम्हारे बगीचे जीएंगे जंगल के सामने - कमजोर, दीन-हीन ! लेकिन जंगल में सब समाविष्ट है। सूखे पत्ते भी गिरे हैं, वे भी समाविष्ट हैं। सूखी डालें भी पड़ी हैं, वे भी समाविष्ट हैं, इरछे-तिरछे वृक्ष हैं, वे भी समाविष्ट हैं। जंगल के भीतर प्राण तो महान है, लेकिन रूप पर कोई काट-छांट नहीं की गई है। जंगल वैसा ही है जैसा परमात्मा ने चाहा है। जंगल में भय लगेगा; बगीचे में तुम विश्राम कर सकते हो निश्चित होकर ।
और जंगल में सौंदर्य देखना हो तो तुम्हारे भीतर भी जंगली आत्मा चाहिए। नहीं तो तुम्हें सौंदर्य दिखाई न पड़ेगा। बगीचे का सौंदर्य तो कोई भी देख लेगा; उसके लिए किसी विराट जंगल जैसी आत्मा की जरूरत नहीं है। वह तो
दुकान और बाजार में बैठा आदमी भी बगीचे के सौंदर्य को पहचान लेता है। क्योंकि वह आदमी का ही बनाया हुआ है और आदमी की समझ में आता है। जंगल परमात्मा का बनाया हुआ है और परमात्मा जैसे तुम न हो जाओ तो समझ में नहीं आता। अराजकता दिखाई पड़ती है ऊपर से और भीतर बड़ा संगीत छिपा है । ऊपर सब अस्तव्यस्त मालूम होता है और सारी अस्तव्यस्तता में एक व्यवस्था छिपी है।
तो लाओत्से को तो लोग नहीं समझ पाए। कोई जानता भी न था । अभी भी शक है कि लाओत्से कभी हुआ कि नहीं। अभी भी इतिहासज्ञ मानने को राजी नहीं हैं कि यह आदमी कभी हुआ । यह तो मालूम होता है कि एक मिथ, एक पुराण है। कहीं ऐसे आदमी होते हैं? कहीं कोई जीवित आदमी इस तरह की बातें कहता है ? उनको भरोसा नहीं आता। कब पैदा हुआ? किस घर में पैदा हुआ ? कोई हिसाब-किताब भी नहीं है उसका। आदमी ही हिसाब-किताब कान था। कनफ्यूशियस के संबंध में सब साफ-सुथरा है।