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ताओ उपनिषद भाग ६
जाना। जीवन के अतिरिक्त और कोई परमात्मा नहीं है। और जीवन की निंदा जिसने की, उसके मंदिर के द्वार सदा के लिए बंद हो गए। फिर वह भटके काशी, काबा, कैलाश, उसके मंदिर के द्वार बंद हो गए। फिर वह करे सत्संग, सुने रामायण, गीता, वेद, करे पाठ, कुछ भी न होगा। जीवन पास था; वह शब्दों में खो गया। जीवन यहां था; वह वहां दूर भटकने लगा।
लाओत्से कहता है, 'मेरे उपदेश समझने में आसान हैं।'
और आसान क्या हो सकती है बात? सीधे-सीधे हैं। 'और साधने में भी आसान हैं।' क्योंकि जब बात ही सीधी-सादी है। तुम्हें कोई जीवन सिखाना पड़ेगा?
यह तो ऐसा ही हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन पकड़ लिया गया मछली मारते एक ऐसे तालाब पर जहां मछली मारना वर्जित था। जब पुलिस ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि तुम यह क्या कर रहे हो? तख्ती दिखाई नहीं पड़ती कि यहां मछली मारना वर्जित है? यह सम्राट का अपना तालाब है, इसमें कोई मछली नहीं मार सकता। नसरुद्दीन ने कहा, मछली मार कौन रहा है? लेकिन उसकी बंसी में फंसी एक मछली तड़प रही थी। तो उन्होंने कहा, फिर यह क्या हो रहा है? उसने कहा कि मछली को तैरना सिखा रहा हूं।
तुम्हें जीवन सिखाना ऐसा ही है जैसे मछली को कोई तैरना सिखाए। सिखाना क्या है? जीवन तो है ही। तुम क्या सीखने के लिए भटकते फिर रहे हो? और तुम सीखने के लिए भटकते हो तो कोई न कोई चालबाज मिल जाता है जो सिखाने लगता है। तुम मानते ही नहीं, तुम कहते हो, सीखेंगे ही। मछली तैरने के सीखने की आकांक्षा करती है; कोई न कोई नसरुद्दीन मिल जाएगा जो तैरना सिखा देगा।
जीवित तुम हो। सब तुम्हारे पास है। और लाओत्से का कोई और उपदेश तो नहीं है, जीवन ही उपदेश है। इसलिए वह कहता है कि मेरे उपदेश समझने में आसान और मेरे उपदेश साधने में आसान हैं। साधना क्या है?
लेकिन तब दूसरे दो वचन तुम्हें बड़े हैरानी के लगेंगे, और बड़े सच।। 'लेकिन न कोई उन्हें समझ सकता है, और न कोई उन्हें साध सकता है।'
पहली बात समझ में आती है कि जीवन ही अगर उपदेश है तो सरल है। न कोई योग करना है; न कोई शीर्षासन करने हैं; न कोई नौली-धोती करनी है; न कोई उलटा-सीधा जीवन को करना है। न कुछ त्यागना है, न कुछ छोड़ना है; जीना है। जहां हो, जैसे हो, उसे ही परमात्मा का आशीर्वाद मान कर चुपचाप जी लेना है। उसी आशीर्वाद के भाव से प्रार्थना का जन्म होगा। उसी आशीर्वाद के भाव में गहराई उतरेगी, अथाह का प्रारंभ होगा।
'लेकिन न कोई उन्हें समझ सकता है...।' क्योंकि तुम जिस बुद्धि से समझने की कोशिश करते हो वही तो नासमझी है।
इसलिए लाओत्से कहता है, समझने में आसान, लेकिन कोई उन्हें समझ नहीं सकता। क्योंकि समझने की कोशिश बुद्धि की है। और जीवन बुद्धि से ज्यादा गहरा है। जीवन को जी सकते हो, समझोगे कैसे? प्रेम में उतर सकते हो; प्रेम को समझोगे कैसे? सौंदर्य को पी सकते हो; समझोगे कैसे? क्या है सौंदर्य?
सौंदर्य पर हजारों शास्त्र लिखे गए हैं; अब तक कोई सौंदर्य की व्याख्या नहीं कर पाया कि क्या है सौंदर्य। जिन्होंने भी व्याख्याएं की हैं, वे सब हार गए, थक गए। और यह भी नहीं कह सकते कि सौंदर्य नहीं है, इसलिए व्याख्या किसकी करें! सौंदर्य तो है, सब तरफ है। सौंदर्य से भरा है अस्तित्व। तो यह तो कह ही नहीं सकते कि सौंदर्य नहीं है। लेकिन क्या है सौंदर्य ? कैसे कहो? कैसे परिभाषा बनाओ? शब्द में कैसे समझाओ? सौंदर्य का शास्त्र नहीं बन पाता। सौंदर्य है भरपूर, और शास्त्र नहीं बन पाता।
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