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ताओ उपनिषद भाग ६
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कबीर बार-बार कहे हैं: हीरा हिरायल कीचड़ में तो हम इस कीचड़ में हीरा न डालेंगे। कीचड़ तो रहेगी और हीरा और खो जाएगा।
सदगुरु साफ करता है। एक बार तुम्हारे मन की स्लेट बिलकुल पोंछ कर साफ कर दी जाए। न तुम हिंदू रह जाओ, न मुसलमान, न जैन, न ईसाई, न पारसी; तुम्हारी मन की स्लेट साफ हो जाए। तो ज्ञान कहीं बाहर से थोड़े ही लाना है। तुम्हारे घास-पात में ही दबे पड़े हैं वे बीज जिनसे गुलाब के फूल उठ आएंगे। लेकिन घास-पात दबाए हुए बुरी तरह। और गुलाबों को सम्हालना पड़ता है। घास-पात को सम्हालना नहीं पड़ता; वह अपने आप ही बढ़ता है। उसके लिए पानी देने की भी जरूरत नहीं है। वह अपना इंतजाम खुद ही कर लेता है। और तुम एक बार काट दो घास-पात को, वह हजार बार बढ़ेगा। उसकी जड़ें उखाड़ देनी पड़ेंगी।
जड़ें उखाड़ने के लिए लाओत्से कह रहा है कि पूर्व-पुरुषों ने लोगों को ज्ञानी बनाने का इरादा ही नहीं किया। क्योंकि पहले घास-पात बोओ, फिर उसे उखाड़ो, इससे बेहतर है कि स्लेट को साफ ही रहने दो। बल्कि वे उन्हें अज्ञानी रखना चाहते थे ।
अज्ञानी का अर्थ है सरल; अज्ञानी का अर्थ है निर्दोष; अज्ञानी का अर्थ है छोटे बच्चों की भांति । अज्ञानी का अर्थ है कुंआरे; अज्ञानी का अर्थ है जिसके मन में कुछ व्यर्थ नहीं प्रविष्ट किया; जो कुछ जानता नहीं। जो कुछ भी नहीं जानता उसके जीने का मजा ही और है। उसे हर चीज अनपेक्षित है। छोटे बच्चों को गौर से देखें। एक तितली उड़ जाती है और बच्चा ऐसा नाच उठता है कि तुम्हें अगर कुबेर का खजाना भी मिल जाए तो भी तुम इस भांति न नाच सकोगे । क्या मामला है? बच्चे की चेतना में क्या घटता है? दौड़ पड़ा तितली के पीछे। एक घास में उगा हुआ फूल तोड़ आता है और ऐसा प्रसन्न लौटता है नाचता हुआ घर कि कोई बड़ी संपदा लेकर आ रहा है। घास पर जमी ओस को अपने मुंह पर लगा लेता है, और उसकी प्रसन्नता देखो। क्या है बच्चे की चेतना में? जिसको लाओत्से अज्ञान कह रहा है वही । बच्चा जानता नहीं। जो जानता नहीं, उसे हर चीज नयी है। जो जानता नहीं उसके पास अतीत से तौलने का तो कोई उपाय नहीं। वह यह तो नहीं कह सकता कि यह ओस है, यह गुलाब है, यह तितली है। बच्चे को कुछ पता ही नहीं; अतीत का कोई अनुभव नहीं है। अनुभव न होने के कारण हर घड़ी बच्चा जीवन को नया अनुभव करता है
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तुम्हारा पुराना अनुभव बीच में आ जाता है; ज्ञान बीच में खड़ा हो जाता है। तुम सोच ही नहीं सकते, कितना फासला है। तुम एक छोटे बच्चे को दौड़ते तितली के पीछे शायद कहोगे कि मत दौड़, कुछ भी नहीं है, बस एक तितली है। लेकिन तुम्हें पता नहीं कि तुम क्या कह रहे हो। और बच्चे तुम्हें बिलकुल नहीं समझ पाते । उनके लिए एक इतना अज्ञात अनंत का द्वार है। यह उनके भरोसे के बाहर है कि इतना सौंदर्य भी है जगत में ! बच्चा दौड़ रहा है। तुम्हें लगता है तितली के पीछे दौड़ रहा है। बच्चा तो अनंत और अज्ञात के पीछे दौड़ रहा है। छोटे बच्चे तितलियों को पकड़ लेंगे तो तोड़ कर उनके भीतर देखना चाहते हैं। शायद तुम सोचते हो बच्चे हिंसक हैं, तो तुम गलती में हो। बच्चे तो सिर्फ अज्ञात के भीतर झांकना चाहते हैं कि क्या छिपा है ? कोई हिंसा से उनका लेना-देना नहीं है। वे तो भीतर देखना चाहते हैं: क्या है ? रहस्य क्या है? क्यों यह तितली इतनी सुंदर है ? और कैसे उड़ती थी? इसके प्राणों का स्रोत कहां है?
अज्ञानी बच्चे जैसा होगा। अज्ञान का अर्थ है तुम्हें वे बातें न सिखाई जाएं जिनके सीख लेने से तुम्हारे हाथों पर और जीवन पर दस्ताने पैदा हो जाते हैं। जब फिर से कभी कोई व्यक्ति संतत्व को उपलब्ध होता है तो फिर बच्चों जैसा हो जाता है ।
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रामकृष्ण के संबंध में कथा है कि वे छोटी-छोटी चीज में बड़े उत्सुक हो जाते थे। और लोग दुखी होते थे इससे, शिष्यों को बेचैनी होती थी। क्योंकि शिष्य चाहते लोग समझें कि वे सब चीजों के पार हो गए हैं। और वे