________________
श्रेष्ठता वह जो अकेली रह सके
71
गया। लेकिन जो पीछे होने को राजी हो गया, जीवन की इस व्यर्थ दौड़ को देख कर, समझ कर, ध्यान से जो पीछे खड़ा हो गया, और जिसने कहा हम दौड़ते नहीं आगे होने को, लाओत्से कहता है, एक अनूठा चमत्कार घटित . होता है कि जो आगे होने की दौड़ में होते हैं वे हीन हो जाते हैं और जो पीछे खड़े हो जाते हैं उनकी श्रेष्ठता की कोई सीमा नहीं है।
सच तो यह है कि पीछे तुम खड़े ही जैसे होते हो वैसे ही श्रेष्ठ हो जाते हो, हीनता मिट जाती है। क्योंकि तुलना ही न रही तो हीन कैसे हो सकते हो ? किसी से तौलोगे तो पीछे हो सकते हो । तौलते ही नहीं किसी से, पीछे, सबसे पीछे ही खड़े हो गए, अपने तईं खड़े हो गए, अपने हाथ से ही संघर्ष छोड़ दिया और पीछे आ गए, अब तो तुम्हें हीनता का कैसे बोध होगा? हीनता का घाव भर जाएगा; और श्रेष्ठता के फूल उस घाव की जगह प्रकट होने शुरू हो जाते हैं। श्रेष्ठ केवल वे ही हो पाते हैं जो श्रेष्ठ होने की दौड़ में नहीं पड़ते। और हीन से हीनतर होता जाता है मनुष्य, जितनी ही दौड़ में पड़ता है।
अब लाओत्से के वचन हम समझने की कोशिश करें।
'यह कैसे हुआ कि महान नदी और समुद्र खड्डों के, घाटियों के स्वामी बन गए? झुकने और नीचे रहने में कुशल होने के कारण।'
उनकी कला एक ही है कि वे झुकना जानते हैं। झुकना बड़ी से बड़ी कला है। वस्तुतः जहां जितनी झुकने की क्षमता होगी उतना जीवन होगा। जीवन का लक्षण ही झुकना है।
छोटा बच्चा, देखो, कितना लोचपूर्ण है। जैसा चाहो वैसा झुक जाए, हाथ-पैर के पीछे जैसे हड्डियां नहीं हैं । लेकिन बूढ़ा आदमी हड्डी ही हड्डी हो जाता है। लोच खो जाती है; झुकना बंद हो जाता है; सख्त हो जाता है। क्ष
अवस्था आ गई। बूढ़ा आदमी झुक नहीं सकता शरीर से। यही तो मौत का लक्षण है कि अब मौत करीब आ रही है। क्योंकि जीवन तो वहीं बहता है जहां झुकना है। और न केवल शरीर के संबंध में यह सच है, मन के संबंध में यही सच है। छोटा बच्चा मन से झुकने को हमेशा राजी है। इसीलिए तो छोटे बच्चे सीखने में समर्थ हैं । बूढ़ा आदम सीखने में असमर्थ हो जाता है। मन भी नहीं झुकता ।
बगीचे में जाकर माली से पूछो ! तो वह कहता है कि वृक्ष को अगर झुकाना हो, कोई ढंग देना हो, तो वह तभी दिया जा सकता है जब पौधा छोटा हो और लोचपूर्ण हो । जब पौधा सख्त हो जाएगा, फिर झुकाओगे तो शाखाएं टूट जाएंगी। कभी तेज तूफान आता है तो बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, छोटे-छोटे घास के पौधे बच जाते हैं। होना तो उलटा चाहिए था कि निर्बल घास के छोटे-छोटे पौधे, जिनमें कोई प्राण नहीं, जिनमें कोई बल नहीं दिखाई पड़ता, तूफान इनको मिटा जाता, ये नष्ट हो जाते। बड़े वृक्ष जो आकाश को छूते हैं, जिनकी शाखाओं ने बड़ा जाल फैलाया है, जिनके अहंकार की कोई सीमा नहीं, जो उठे हैं उत्तुंग, चांद-सूरज को छूने की जिनकी दौड़ है, वे गिर जाते हैं। तूफान उन्हें मिटा जाता है। कोई तरकीब घास का पौधा जानता है जो बड़े वृक्ष को भूल गई। बड़ा वृक्ष सख्त हो गया है; टूट सकता है, झुक नहीं सकता।
अकड़ वाले आदमी के लिए हम यही तो कहते हैं कि वह आदमी ऐसी अकड़ वाला है कि टूट सकता है, झुक नहीं सकता। और समस्त अहंकारियों की शिक्षा यही है कि टूट जाना, मगर झुकना मत।
लाओत्से की शिक्षा बिलकुल भिन्न है। लाओत्से कहता है, ऐसा टूटने की जल्दी क्या! ऐसा टूटने का आग्रह क्या ! आत्मघात के लिए इतनी उत्सुकता क्यों है ? झुक जाना, क्योंकि झुकने में ही तुम तूफान को जीत सकोगे। तुम टूटो कि न टूटो; तूफान तुम्हारी फिक्र करता है? तूफान को पता भी न चलेगा कि तुम टूट गए। तूफान अपनी राह से चला जाएगा। तुम नाहक मिट जाओगे ।