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ताओ उपनिषद भाग६
एक आदमी का इलाज हो रहा था। उसको भ्रांति थी कि वह नेपोलियन है। इलाज जब पूरा हो गया तो चिकित्सक ने कहा, अब तुम ठीक हो गए हो। अब तुम घर जा सकते हो। वह आदमी बड़ी प्रसन्नता से खड़ा हो गया, और उसने कहा कि जरा जोसेफाइन को फोन करके तो बता दो-जोसेफाइन, नेपोलियन की पत्नी–कि अब मैं ठीक हो गया हूं और घर आ रहा हूं।
पागल को उसके घेरे के बाहर लाना मुश्किल हो जाता है। और पागल भी बड़ा तर्कयुक्त ढंग से अपनी व्यवस्था करता है।
मुल्ला नसरुद्दीन रोज अपने घर के बाहर उठ कर मंत्र फूंक कर कुछ फेंकता। पड़ोस के लोगों ने पूछा कि यह तुम क्या करते हो तंत्र-मंत्र? उसने कहा कि इन मंत्रों के बल से गांव में शेर, जंगली जानवर, सिंह नहीं आ पाते। तो लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा कि नसरुद्दीन, तुम पागल हो। यहां कोई शेर, जंगली जानवर हैं ही कहां? नसरुद्दीन ने कहा कि इससे साफ सिद्ध होता है कि मंत्र कारगर है; सब भाग गए। यही तो मैं कह रहा हूं। इसीलिए तो सिंह और जंगली जानवर यहां नहीं हैं, क्योंकि रोज मैं मंत्र फेंक रहा हूं।
पागल को उसके तर्क के बाहर लाना मुश्किल है। पागल बड़े तर्कनिष्ठ होते हैं। तुम किसी पागल से बात करो। तुम जो सब से बड़ी अड़चन पाओगे वह यह कि उसे उसके तर्क के बाहर लाना मुश्किल है। और वह अपने तर्क को सब तरफ से सिद्ध करता रहता है।
ऐसा हुआ; मुसलमान खलीफा हुआ उमर। उसने एक आदमी को जेलखाने में डलवा दिया, क्योंकि उसने घोषणा की कि मैं ईश्वर का पैगंबर हूं। इसलाम यह मानता नहीं कि मोहम्मद के बाद कोई पैगंबर हो सकता है। उमर बहुत नाराज हुआ। उसने उस आदमी को बंधवा लिया, जेल में डलवा दिया। और कहा, दो दिन बाद मैं आऊंगा।
और दो दिन उसकी बड़ी मरम्मत की गई, पीटा गया, मारा गया, सब तरह सताया गया, भूखा रखा गया, रात सोने नहीं दिया गया, कि अपने रास्ते पर आ जाए।
दो दिन बाद उमर जेलखाने गया। वह आदमी खंभे से बंधा था, लहूलुहान था। उमर ने पूछा, अब क्या खयाल हैं? उसने कहा, खयाल! जब परमात्मा ने मुझे भेजा पैगंबर की तरह तो उसने कहा था, पैगंबर हमेशा पीटे जाते हैं, मारे जाते हैं। इससे तो यही सिद्ध होता है कि मैं पैगंबर हूं, क्योंकि पैगंबरों को सदा इतिहास में सताया गया है।
तभी दूसरे खंभे से बंधे एक आदमी ने चिल्ला कर कहा कि यह आदमी बिलकुल गलत कह रहा है! उमर ने उससे पूछा कि आप कौन हैं? उसने कहा कि मैं स्वयं परमात्मा हूं! और मैंने इसे कभी भेजा नहीं। यह सरासर झूठ है। मोहम्मद के बाद मैंने किसी को भेजा ही नहीं।
किसी भी पागल को उसके तर्क के बाहर लाना एकदम असंभव है। क्योंकि तुम जो भी उपाय करोगे, पागल उस उपाय को ही अपना तर्क बना लेगा।
तुम्हें भी तुम्हारे पागलपन से बाहर लाना बहुत कठिन है। लेकिन अभी तुम बिलकुल पागल नहीं हो गए हो, इसीलिए आशा है। थोड़ा सा किनारा बाकी है जहां तुम संदिग्ध हो। जब तुम बिलकुल असंदिग्ध हो जाओगे अपने झूठ में तब तुम्हें खींच कर बाहर लाना मुश्किल हो जाएगा। अभी तुम्हें थोड़ा संदेह है खुद भी कि तुम हंसते हो वह वास्तविक है या नहीं! तुम रोते हो, वह वास्तविक है या नहीं! यह संदेह ही तुम्हारा सबसे बड़ा सहारा है। इसी संदेह के सहारे तुम बाहर आ सकोगे। इस संदेह को प्रगाढ़ करो। और अपनी एक-एक जीवन-विधि को, शैली को जांचो-परखो, कसो-कि तुमने प्रेम सच में किया है या तुम शब्दों की ही बात करते रहे हो? क्योंकि अगर तुम एक भी चीज सच में कर सको तो तुम्हारे झूठ का पूरा भवन गिर जाएगा। सत्य की बड़ी शक्ति है।
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