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असंघर्षः सारा अस्तित्व महोदन है
मैं कहता हूं, एक भी चीज अगर तुम सत्य कर सको तो झूठ का पूरा भवन गिर जाएगा। इसलिए यह सवाल नहीं है कि तुम बहुत सत्य करो, तब कहीं यह भवन गिरेगा; एक सत्य गिरा देगा पूरे भवन को। असत्य कितने ही हों, कमजोर और नपुंसक हैं; उनमें कोई बल नहीं है। तुम एक तरफ से भी अगर सत्य होने शुरू हो जाओ, तुम अचानक पाओगे कि तुम्हारे पूरे जीवन में असत्य की जड़ें उखड़नी शुरू हो गईं। तुम एक कदम सत्य की तरफ उठा लो, तुम एक झूठ का चेहरा गिरा दो; बाकी चेहरे भी उखड़े-उखड़े हो जाएंगे। जहां से तुम्हें शुरू करना हो वहां से शुरू करो। लेकिन इसे जरा समझ लेना कि तुम जो-जो दिखा रहे हो उससे विपरीत तुम्हारी दशा होगी।
पंडित दिखलाता फिरता है कि कितना ज्ञानी है, और भीतर गहन अज्ञान है। उसी को छिपाने के लिए तो शास्त्रों का सहारा लिया है, शब्द और सिद्धांतों से ओढ़ लिया है अपने को, रामनाम की चदरिया ओढ़ ली है। भीतर गहन अंधकार है। उस अंधकार को छिपाना है; कोई जान न ले, किसी को पता न चल जाए।
लेकिन किसी को पता चले न पता चले, यह सवाल नहीं है। वह अंधकार तुम्हारे भीतर है तो तुम उसी अंधकार में जीओगे, उसी में डूबोगे। उस अंधकार को मिटाना जरूरी है। अगर बीमारी है भीतर तो तुम ऊपर-ऊपर स्वस्थ होने की धारणा को मत बना लेना। नहीं तो वही धारणा तुम्हारी बीमारी को बढ़ाने का कारण बनेगी। और जो अभी छोटा सा फोड़ा था, कल नासूर हो जाएगा। और जो कल नासूर है, वह परसों कैंसर हो जाएगा।
बीमारी भी बढ़ती है, रुकती नहीं। बीमारी का भी अपना जीवन है। तुम जितना उसे छिपाते हो घाव को, छिपा सकते हो, सुंदर फूल बांध सकते हो घाव के ऊपर; इससे कुछ होगा न। इससे भीतर की बदबू दूसरों तक भले न पहुंचे, लेकिन तुम्हारे भीतर बढ़ती जाएगी। घाव ही रह जाएगा आखिर में। और यही होता है कि लोग मरते समय तक पहुंचते-पहुंचते पाते हैं : सारा जीवन एक पीड़ा, एक घाव हो गया, जिसमें कभी कोई आनंद न जाना, और जहां कभी कोई जीवन की पुलक न उठी, जीए जैसे जीए ही नहीं; घसिटते रहे। जीवन नृत्य न था, उत्सव न था। __ लाओत्से कहता है, 'वीर सैनिक हिंसक नहीं होता।'
हिंसक आदमी को होना पड़ता है इसलिए ताकि वह दिखला दे दुनिया को कि मैं बहादुर हूं। इसलिए जो बहादुर है वह हिंसक नहीं हो सकता।
इसलिए तो हमने वर्धमान को महावीर कहा। वीर ही नहीं कहा, महावीर कहा। क्योंकि वर्धमान ने जैसी अहिंसा प्रकट की वह केवल महावीर ही कर सकता है। महावीर उनका नाम नहीं है, नाम तो उनका वर्धमान है। लेकिन महावीर कहने के पीछे कारण है। क्योंकि सिर्फ वीर ही हिंसा से मुक्त हो सकता है। और महावीर ही केवल समस्त हिंसा से मुक्त हो सकता है। वीरता इतनी स्पष्ट है स्वयं के समक्ष कि सिद्ध कहां करनी है! सिद्ध तो तुम वही करते हो जो तुम्हें पता है कि है नहीं। जिस दिन तुम्हें पता है कि है, उस दिन तुम सिद्ध करना छोड़ देते हो।
हिटलर कायर है और वर्धमान वीर है। हिटलर को तुम्हें पढ़ना और समझना चाहिए; लाओत्से को समझने के लिए बड़ा सहयोगी होगा। हिटलर से बड़ा कायर आदमी जमीन पर खोजना मुश्किल है। वह रात अंधेरे में सो नहीं सकता था; प्रकाश जला कर ही सोता था। और भयभीत इतना था कि किसी पर कभी भरोसा नहीं कर सकता था। इसलिए उसने शादी नहीं की। क्योंकि शादी हो जाएगी तो कम से कम पत्नी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा, इतना भरोसा कि कमरे में उसके साथ सोए। और रात को उठ कर गर्दन दबा दे! क्या पता दुश्मनों से मिली हो! मरते दम तक उसने शादी न की। मरने के ठीक घड़ी भर पहले शादी की। जब सब पक्का हो गया कि अब आत्महत्या ही करनी है, अब कुछ करने को नहीं बचा। जब जहां हिटलर ठहरा था उस जगह पर भी बम गिरने लगे बर्लिन में, और हार बिलकुल सुनिश्चित हो गई, अब कोई उपाय न रहा, एक घड़ी भर की बात है और जर्मनी का पतन हो जाएगा, तब उसने जो पहला काम किया वह यह कि जिसको वह जिंदगी भर से स्थगित कर रहा था, शादी करने को, उसने