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ताओ उपनिषद भाग ६
जीवन ऊर्जा का प्रवाह है। ऊर्जा भी तलहटी खोजती है-नदियों की भांति। शिष्यत्व का अर्थ है इस रहस्य को समझ लेना। और जब तुम झुकोगे वस्तुतः, जैसा मुझे अनुभव होता है, तुम्हें भी अनुभव होगा। तुम भी तत्क्षण . पाओगे: कोई चीज बही जाती है तुम में; भरे देती है तुम्हें; लबालब हुए जाते हो तुम। तुम्हारे पात्र के ऊपर से बहने लगेगी, इसे तुम पाओगे। और एक दफा इसका स्वाद तुम्हें आ गया तब तुम जिंदगी में सब तरफ झुकना सीख लोगे।
एक और बड़े रहस्य की बात है। अगर तुम किसी संत के चरणों में झुको तो लाभ होता है। और लाभ यह होता है कि उसकी ऊर्जा तुम्हारी तरफ बहती है। अगर तुम किसी असंत के चरणों में झुको तो भी लाभ होता है। उसकी जो दुर्गंध से भरी ऊर्जा है तुम्हारी तरफ नहीं बह सकती। क्योंकि दुर्गंध हमेशा ऊपर उठना चाहती है, नीचे नहीं जाना चाहती। असंत का व्यक्तित्व तो अहंकार का व्यक्तित्व है। असंत से कुछ सीखना हो तो अकड़ कर जाना। तो तुम्हारी दोस्ती बनेगी। तब तुम एक ही जैसे रहोगे। तब तालमेल बैठेगा। अगर बुरे के पास जाना हो तो अहंकारी होकर जाना। तभी बुरे से संबंध बनेगा। क्योंकि बुरे का अर्थ है दो अहंकार। अगर बुरे के चरणों में तुम झुके तो बुरा तुम्हें बिगाड़ न पाएगा। यह बड़े रहस्य की बात है।
इसलिए हमने पूरब में एक हिसाब बना रखा था; चरणों में झुकना सहज कर दिया था। किसी के भी चरणों में , झुक जाना है। कोई अड़चन की बात नहीं है। अगर भला होगा आदमी तो लाभ होगा; अगर बुरा होगा तो तुम उसकी बुराई से सुरक्षित रहोगे। बुरा आदमी अहंकार से ही संबंध बना सकता है, निरहंकार से नहीं। वे आयाम मिलते नहीं। अगर तुम विनम्र होकर शैतान के चरणों में भी झुक जाओ तो शैतान तुम्हारा कुछ बिगाड़ न सकेगा।
फकीर हुई है एक औरत, राबिया। कुरान में वचन है कि शैतान को घृणा करो। उसने काट दिया था। एक दूसरा फकीर, हसन, घर में मेहमान था। उसने कुरान देखी और उसने कहा कि यह तो कुफ्र है। यह किस काफिर ने वचन काटा? कुरान में कोई सुधार नहीं किया जा सकता।
राबिया ने कहा, यह मुझे ही करना पड़ा। पहले तो सब ठीक था। लेकिन जब परमात्मा के चरणों में झुकने का राज जाना, जब परमात्मा के प्रेम का राज जाना, तो एक बात और भी समझ में आ गई: परमात्मा प्रेम करने से मिलता है और शैतान घृणा करने से। अगर शैतान को घृणा की तो वह मिलता रहेगा; अगर शैतान के साथ अहंकार का कोई भी संबंध बना कर रखा तो वह जगह-जगह मिलता रहेगा। तो राबिया ने कहा, अब तो शैतान भी सामने खड़ा हो तो मैं ऐसे ही उसके चरणों में झुकती हूं जैसे परमात्मा के चरणों में। अब मुझे कुछ फर्क न रहा। और जब से ऐसा हुआ तब से मैं शैतान से सुरक्षित हूं और परमात्मा मेरी तरफ बहा चला जा रहा है।
तो मैं तुमसे यह नहीं कहता कि तुम गुरु के ही चरणों में झुकना। वह एक हिस्सा है, पहलू। तुम बुरे से बुरे आदमी के चरणों में भी झुकना, वह दूसरा पहलू है। और तुम ऐसी अदभुत अनुभूतियों से गुजरोगे जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। बुरे आदमी के चरणों में झुक कर देखना, और तुम अचानक पाओगे उसकी बुराई तुम्हारे लिए निरस्त्र हो गई। बुरे आदमी के चरणों में तुम झुके नहीं कि बुरा आदमी भी तुम्हारे लिए भला हो गया; वह दुनिया भर के लिए बुरा हो। इसलिए तुम शर्त मत रखना कि किसके चरणों में झकना है। झकना ऐसी कीमिया है, इतनी बड़ी कीमिया है, कि तुम जहां भी झुकोगे लाभ ही होगा।
और एक बार पूरब ने झुकने का राज समझ लिया तो फिर पूरब कहीं भी झुकने लगा-नदी, पहाड़, पत्थर, वृक्ष-कहीं भी झुकने लगा। क्योंकि तब उसने पाया कि झुकने में तो पाना ही पाना है; जितना झुका उतना पाया। यह थोड़ा कठिन है। क्योंकि वैज्ञानिक कोई उपाय नहीं है इसे सिद्ध करने का। अगर तुम जाकर एक वृक्ष के पास भी विनम्रता से, अहोभाव से झुक जाते हो, तो वृक्ष की ऊर्जा तुम्हारी तरफ प्रवाहित होने लगती है। और वृक्ष के पास बड़ी शुद्ध ऊर्जा है। अभी वृक्ष मनुष्य नहीं हुआ है; अभी वृक्ष विकृत नहीं हुआ है। एक भी वृक्ष ऐसा नहीं है जो