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ताओ उपनिषद भाग६
चलोगे तो तुम अचानक पाओगे कि तुम अगुआ हो गए हो। यह परिणाम है पीछे चलने का। इसके लिए तुम्हारी चाह की कोई भी जरूरत नहीं है। तुम्हारी चाह आई कि लाओत्से का सिद्धांत काम न करेगा। क्योंकि तुम फिर पीछे चल ही नहीं रहे, तुम चल तो रहे हो आगे ही।
लाओत्से का उपयोग साधन की तरह नहीं किया जा सकता। किसी ज्ञानी का उपयोग साधन की तरह नहीं किया जा सकता। ज्ञानी साध्य है, वह साधन नहीं है। और लोग उनका साधन की तरह उपयोग करते हैं। साधन की तरह उपयोग करते हैं, बस इसलिए चूक जाते हैं। और फिर उनको जीवन में अनुभव होता है कि नहीं, ये बातें तो सही सिद्ध नहीं होतीं। ये होंगी भी नहीं। लाओत्से, कृष्ण, क्राइस्ट साध्य हैं; तुम उनका अपने लोभ, अपनी वासना, अपनी तृष्णा के लिए उपयोग नहीं कर सकते हो। तुम अगर उनकी मान कर चलो तो तुम एक दिन अचानक पाओगे कि जो-जो उन्होंने कहा था वह रत्ती-रत्ती, सौ प्रतिशत सही उतरता है। क्योंकि जो उन्होंने कहा है वह उनके जीवन में सही उतरा है, तभी कहा है। ____ 'इस तरह संत ऊपर होते हैं, और लोग उनका बोझ अनुभव नहीं करते।'
अगर तुम किसी के ऊपर रहोगे तो लोग तुम्हारा ब्रोझ अनुभव करेंगे। और बोझ को कौन सहना चाहता है? बोझ को फेंक देना चाहता है कोई भी। बोझ तो आत्मघाती हो जाता है। उसमें तो तुम्हारी आत्मा तड़फने लगती है, तुम्हारे पंख कट जाते हैं। पति पत्नी के ऊपर है तो बोझ है। पत्नी पति के ऊपर है तो बोझ है। पिता बेटे के ऊपर है तो बोझ है। और बेटा कोशिश करेगा, कब इस बोझ को उतार कर रख दे। और सारी जिंदगी में हर आदमी की कोशिश है कि कैसे ऊपर हो जाए। और इसलिए तुम सभी पर बोझ बन जाते हो, पत्थर की तरह लटक जाते हो गर्दनों में। और हरेक चाहता है कि तुमसे छुटकारा कैसे हो।
लाओत्से कह रहा है, संत भी ऊपर होते हैं, लेकिन उनके होने की कला बड़ी अनूठी है। वे नीचे हो जाते हैं, और इसलिए लोग उन्हें सिर-आंखों पर ले लेते हैं। वे खुद ऊपर नहीं बैठते, लोग उन्हें ऊपर बिठा देते हैं। और जब कोई अपनी ही मौज से किसी को अपने सिर पर लेता है तब बोझ मालूम नहीं पड़ता। जब कोई जबरदस्ती तुम्हारे सिर पर होता है तब बोझ मालूम पड़ता है। इसलिए प्रेम निर्बोझ कर देता है।
और संत बड़ा प्रेम जगाते हैं। क्योंकि जो आदमी सबसे पीछे बैठा है वह तुम्हारे अहंकार को तो चोट देता ही नहीं; उससे तुम्हारा कोई संघर्ष ही नहीं है। अचानक उसकी विनम्रता तुम्हें छूने लगती है। उसके पास एक विनम्रता का वातावरण होता है; एक अलग ही ऊर्जा का प्रवाह होता है। अहंकारी आदमी को कहने की जरूरत भी नहीं पड़ती कि अहंकारी है, तुम फौरन समझ जाते हो कि अहंकारी है। उसकी चाल में, उसके उठने-बैठने में, हर तरफ अकड़ है। हर तरफ वह दिखला रहा है कि मैं कुछ हूं, समझे? जानते हो मैं कौन हूं? विनम्र आदमी ऐसे है जैसे छिपा है, जैसे नहीं चाहता कि तुम्हारी आंख में पड़े, जैसे नहीं चाहता कि तुम्हारे रास्ते को काटे, जैसे नहीं चाहता कि आवाज हो जाए, पगध्वनि भी तुम्हें सुनाई पड़े और बाधा पड़े।
___झेन फकीर कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति को ज्ञान हो जाता है और वे ठीक कहते हैं तो शिष्य को बताना नहीं पड़ता गुरु को आकर कि ज्ञान हो गया; शिष्य के आते ही गुरु कह देता है कि तो हो गया, बात पूरी हो गई। ऐसा भी हुआ है कि रिझाई जब ज्ञानी हुआ और अपने गुरु के झोपड़े की तरफ गया, तो वह बाहर सीढ़ियां चढ़ रहा था और गुरु ने भीतर कोठे से चिल्ला कर कहा, तो रिझाई पा गया! अभी गुरु ने देखा नहीं, सिर्फ पगध्वनि सुनी थी। रिझाई चकित हुआ। और शिष्य चकित हुए। उन्होंने गुरु से पूछा कि बात क्या है? तो उन्होंने कहा कि जब अहंकारी चलता है तो उसकी पगध्वनि अलग होती है, उसके पैर में भी चोट होती है। वह पैर की आवाज से भी कहता है, मैं आता हूं, राह करो! और जब विनम्र आदमी आता है तो उसके पैरों में वह चोट नहीं होती, उसके पैरों में
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