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प्रेम को सम्हाल लो, सब सम्मल जाएगा
होती। तो मेरे हिसाब में तो एक ही भूल-चूक है, वह है न चलना। कोई भूल-चूक नहीं होती; तुम गोबर-गणेश की तरह बैठे रह जाते हो। हलन-चलन ही नहीं करते तो और आनंद से वंचित रह जाओगे। तुम कभी अमृत को उपलब्ध न हो सकोगे।
उठो! भय है, स्वीकार करो। भय के बावजूद खड़े होने की चेष्टा करो। भय है; द्वार खोलो। खतरा है, माना; मित्र भी आ सकता है, शत्रु भी आ सकता है। लेकिन शत्रु के भय से मित्र को गंवा देना बहुत बड़ी भूल है। आंधी-तूफानों के डर से घर के भीतर बंद होकर जी लेना, तो जैसे जीए ही न; कब्र में ही रहे और मर गए। कब्र बड़ी सुरक्षित है; और जीवन में असुरक्षा है। दुस्साहस चाहिए। धीरे-धीरे कदम सम्हलने लगते हैं। और जब कदम सम्हल जाते हैं तो सब भय मिट जाता है।
प्रेम एकमात्र कवच है। और कोई कवच नहीं है, और कोई सुरक्षा नहीं है। और तुम जितने भी इंतजाम करोगे सुरक्षा के, सब गलत सिद्ध होंगे। तुम्हारे हाथों से बनाई गई सुरक्षा मृत्यु के पार न ले जा सकेगी। मृत्यु सब सुरक्षा को तोड़ देगी।
___मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन के घर डाका पड़ा। सब लोगों ने सोचा लुट गया। और बचाने की कोशिश में मुल्ला नसरुद्दीन बुरी तरह पीटा भी गया; ऐसा पीटा गया कि मरणासन्न अस्पताल में पड़ा है। जरा सा होश आया तो उसने अपनी पत्नी के नाम पत्र लिखा, जो दूसरे गांव गई थी। और लिखा, घबड़ाना मत। संयोग और सौभाग्य की बात समझो कि एक ही दिन पहले सब बैंक में सेफ डिपाजिट में जमा करवा दिया था। कुछ गया नहीं है। कुछ ले जाने को था भी नहीं। सिवाय मेरे जीवन के, कुछ भी नहीं गंवाया है। क्योंकि वह मरणासन्न है, और मर रहा है। सिवाय जीवन के और कुछ नहीं गंवाया है!
मरते वक्त तुम भी ऐसा ही पाओगे कि सिवाय जीवन के और कुछ नहीं गंवाया है। सब बचा है, सब तिजोरी में रखा है, बैंक में जमा है; सिर्फ तुम अपने को गंवा बैठे हो! लेकिन उस जमा का करोगे क्या? जीवन को ही खोकर अगर सब बचा लिया तो क्या बचाया? अगर सब खोकर भी जीवन बच सके तो बचा लेना। उसे ही मैं दुस्साहस कह रहा हूं।
लाओत्से के शब्दों को समझें। 'यदि कोई प्रेम और अभय को छोड़ दे...।'
और वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस तरफ प्रेम, उस तरफ अभय; आया प्रेम, पीछे चला आता है अभय।
'यदि कोई प्रेम और अभय को छोड़ दे, कोई मिताचार और आरक्षित शक्ति को छोड़ दे, कोई पीछे चलना छोड़ कर आगे दौड़ जाए, तो उसका विनाश सुनिश्चित है।'
लाओत्से यह कह रहा है कि जिसने प्रेम को छोड़ा, वह विनष्ट हो गया। और तुमने प्रेम को छोड़ कर सब बचा लिया है। तुमने अपनी होशियारी में प्रेम को छोड़ कर सब बचा लिया है। तुम अपनी होशियारी में सब गंवा बैठे हो। जिसने प्रेम को छोड़ा, उसका विनाश सुनिश्चित है। क्योंकि उसे जीवन का भोजन ही मिलना बंद हो गया।
पश्चिम में वैज्ञानिकों ने इधर बहुत सी खोजें की हैं, उनमें एक खोज प्रेम से संबंधित भी है। उन्होंने यह पाया है अनेक प्रयोगों के बाद...।
इजिप्त में एक प्रयोग चलता था, अनाथालय में। तो अनाथालय के दो हिस्से कर दिए थे उन्होंने; दो सौ बच्चे एक तरफ, दो सौ दूसरी तरफ। इन दो सौ बच्चों को पहले खंड में सब भोजन, कपड़े, सारी सुविधाएं दी जाती थीं, सिर्फ प्रेम को छोड़ कर। नर्स आएगी, दूध दे देगी, लेकिन किसी तरह का व्यक्तिगत संपर्क नहीं करेगी, मुस्कुराएगी
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