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श्रीपाल - चरित्र
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मैं आज मारे हर्ष के फूला नहीं समाता । अब मैं शीघ्र ही किसी योग्य वर से तेरा विवाह कर तेरे सुख-सौभाग्य की वृद्धि करूँगा ।
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राजा ने यह बात व्यर्थ ही न कहीं थी । उसे पहले से ही यह बात मालूम हो चुकी थी, कि सुरसुन्दरी मन-ही-मन अरिदमन पर अनुरक्त हो रही थी । अरिदमन कुरु जंगल देशका तत्कालीन राजा था। शंखपुरी उसकी राजधानी थी। इन दिनों वह प्रजापाल का अतिथि था और आज भी वह राज सभा में उपस्थित था । राजा ने यह सब जानकर ही उपरोक्त बात कही थी । उसने उसी समय उन दोनों के विवाह की बात पक्की कर दी। सुरसुन्दरी अपने अभीष्ट को पाकर अनिर्वचनीय सुख में विभोर हो गई ।
जिस समय सुरसुन्दरी राज सभा में इस प्रकार सम्मानित हो रही थी, उस समय मैनासुन्दरी आश्चर्यचकित हो देख रही थी । उसकी यह अवस्था देख राजा ने कहा- क्यों मैना ! सुरसुन्दरी ने जो बात कही और सभा - जनों द्वारा जो बात अनुमोदित हुई, क्या वह तुझे पसन्द न आयी ? तुझे न रुचि ? यदि यही बात है और तू अपने को सबसे ज्यादा चतुर समझती है, तो अपने मन की बात क्यों नहीं कहती ?
विदुषी मैनासुन्दरी ने कहा - पिताजी! मैं क्या कहूँ? जहाँ लोगों के मन विषय कषाय के कारण मोहजाल में उलझ रहे हों, जहाँ राजा अविवेकी हो - कहता कुछ और करता कुछ हो, और जहाँ जी हजूरों का दरबार लगा हो, वहाँ
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