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( २६ ) संयमसे शिथिल हो, संयमको पास रख छोडे; उसे पासत्था कहा जाता है. कोइ मुनि गच्छके कठिन आचारादि पालने में असमर्थ होने से गच्छ त्याग कर पासत्था धर्मको स्वीकार कर विचरने लगा. बाद में परिणाम अच्छा हुवा कि- पौद्गलिक क्षणमात्रके सुखोंके लीये मेंने गच्छ त्याग कर इस भववृद्धिका कारन पासत्थपनेको स्वीकार कर अकृत्य कार्य कीया है. वास्ते अब पीछे उसी गच्छमें जाना चाहिये अगर वह साधु पुनः गच्छमै 'आना चाहे, तो पेस्तर उसको आलोचना-प्रतिक्रमण करना चाहिये. पुनः छेद प्रायश्चित्त तथा पुनः दीक्षा देके गच्छ में लेना कल्पै.
( २७ ) एवं गच्छ छोडके स्वच्छंद विहारी होनेवा लोका अलायक.
( २८ ) एवं कुशील -- जिन्होंका आचार खराब हैं. प्रतिदिन विगइ सेवन करनेवालोंका अलायक.
( २९ ) एवं उसन्ना- क्रियामें शिथिल, पुंजन प्रतिलेखन में प्रमादी, लोचादि करनेमें असमर्थ, ऐसा उसन्नोंका अलायक.
( ३० ) एवं संसक्त आचारवंत साधु मिलने से आप आ चारवन्त बन जावे, पासत्थादि मिलने से पासत्थादि बन जावे, अर्थात् दुराचारीयोंसे संसर्ग रखनेवालोंका अलायक. २६, २७, २८, २९, ३०. इस पांचों अलायकका. भावार्थ - उक्त कारणों से गच्छका त्याग कर भिन्न भिन्न प्रवृति करनेवाले फिरसे उसी गच्छ में आना चाहे तो प्रथम आलोचना कराके यथायोग्य प्रायश्चित्त तप या छेद तथा उत्थापन देके फिर गच्छ में लेना चाहिये कि उस मुनिको तथा अन्य मुनियोंको इस बातका क्षोभ रहे. गच्छ मर्यादा तथा सदाचारकी प्रवृत्ति मजबूत बनी रहै.