Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आचार्य श्री कालूगणी व्यक्तित्व एव कृतित्व . १३
वैद रतनगढ तथा दानचन्दजी चोपडा सुजानगढ आदि कुछ परिवारो ने भी यतियो के पुस्तक-भडारो से अनेक ग्रथ खरीदे । इस प्रकार तेरापथ सघ के साधुओ तथा श्रावको के पास हस्तलिखित ग्रथो का एक अच्छा सग्रह हो गया। ___कालूगणी को सारकौमुदी की एक प्रति प्राप्त हुई। उसे प्राप्त कर आचार्यवर को सतोप हुआ। उन्होने कहा इसकी अष्टाध्यायी मिल जाए तो अच्छा रहे। जिसकी ऊर्जा आज्ञाचक्र की ओर प्रवाहित होती है, उसकी हर कल्पना वास्तविकता बन जाती है और हर सपना साकार हो जाता है। आचार्यवर का स्वप्न साकार लेने लगा। मुनि चम्पालालजी (मीठिया) भाद। (जिला गगानगर, राजस्थान) मे गए। वहा रावतमलजी पारख रहते थे। उनके पास यतियो के पुस्तक-भडारो से खरीदी हुई कुछ पुस्तके थी। मुनि चम्पालालजी ने पुस्तके देखी। उनमे उन्हे विशालकीर्तिगणी द्वारा निर्मित विशाल शब्दानुशा सन (अष्टाध्यायी) की एक प्रति मिली। वे उसे प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा आचार्यवर को जिसकी खोज है, वह शायद यही ग्रथ है । वे उस ग्रथ को ले आए। आचार्यवर को भेट किया। आचार्यवर ने उसे देख आश्चर्यमिश्रित हर्ष प्रकट किया। उस उपलब्धि के लिए उन्हे साधुवाद दिया।
सघ जब विकासोन्मुख होता है, तब आचार्य और उनके अनुयायी सभी एक दिशा मे गतिशील हो जाते हैं । आचार्य कल्पना करते है और शिष्य-समुदाय उस काल्पनिक चित्र मे प्राण भरने का प्रयत्न करता है। कालू गणी ऐसे ही सौभाग्यशाली आचार्य थे। उन्हे शिष्यो का ऐसा विनम्र समुदाय मिला, जो उनके इगित पर प्राण निछावर करने को तैयार रहता था। तेरापथ की परम्परा मे यह सामान्य वात रही है। पर, कालू गणी मे कुछ विशिष्ट चुम्बकीय प्रभाव था । वह शिष्यो के हृदय को सहज आकर्षित किये रहता था। पडित रघुनन्दनजी
विकास का चरण जैसे-जैसे आगे बढता है, वैसे-वैसे सामग्री की अपेक्षाए भी वढती जाती है । ग्रथो की अपेक्षा पूरी हुई तो उन्हे पढानेवालो की अपेक्षा का अनुभव हुमा। जव विकास होता है तो अपेक्षा अपने आप पूरी होती है । आचार्यवर स. १६७४ मे सरदारशहर का चतुर्मास सपन्न कर चूरू पधारे । वही रावतमलजी यति थे। वे धर्मसंघ के प्रति बहुत अनुराग रखते थे। आचार्यवर के प्रति उनके मन मे गहरा अनुराग था। उन्होने कहा--महाराज | यहा एक विद्वान् आया हुआ है । अभी युवक ही है। पर उसमे अद्भुत विशेषताए हैं। वह सस्कृत का पारगामी विद्वान् है। आयुर्वेदाचार्य है । एक दिन मे मैकडो श्लोक बना लेता है । आशुकवि है । किसी भी विषय ५२ धाराप्रवाह श्लोक बोल सकता है। ऐसा विद्वान् मैने पहले कभी नहीं देखा । वह सुनामई गाव (जिला--- अलीगढ,