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प्रतिसेवाधिकार।
आते हैं तव तृतीयाक्ष सानुवीचीको छोडकर असानुवीचीमें संक्रमण करता है। फिर इस अनके यहीं स्थित रहते हुए प्रथमाक्ष भौर द्वितीयात दोनों संचरण करते हुए अंतको पहुंच जाते हैं तव तीनोंही अक्ष अंतको पहुंचकर और लौटकर जब आदिस्थानको आते हैं तव चतुर्थ अक्ष प्रयत्नमतिसेवोको छोडकर अयत्नमतिसेवीमें संक्रमण करता है। भावार्थ-भेदोंके 'परिवर्तनको अतसंचार कहते हैं, ये आगाढकारणादि भेद पलटते रहते हैं उन्होंका परिवर्तनका क्रम इस गाथा द्वारा बताया गया है। जिनकी कि उच्चारणा ऊपर बताई जा चुको है। फिर भी स्पष्टार्थ लिखते हैं१ आगाढ-कारणकृत, सकृत् सानुवीची, यत्नसेवी २अनागाढकारणकृत " " ३आगाढकारणकृत असकृत् " ४ अनागाढकारणकृत . " " ५आगाढकारणकृत सकृत् असानुवीची
११२१ '६ अनागाढकारणकृत " "
२१२१ '७ आगाढकारणकृत असकृत् ।
१२२१ ८अनागाढकारणकृत असकृत"
२२२१ “६ आगाढकारण कृत सकृत सानुवीची अयत्नसेवी १११२ '१० अनागाढकारणकृत सकृत " " . २११२ '११ आगाढकारणकृत असकृत "
१२१२ १२ अनागाढकारणकृत " "
२२१२
२१११ १२११ २२११