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द्वितीय प्रवेश :
पोप वदी ३ (मारवाडी माह वदी ३) आज दूसरे प्रवेशमें २५ । भाई-बहनोंने प्रवेश किया । नित्य पांच पकवान द्वारा आराधकों की । भक्ति करने में आती थी।
महावदी ८ को १२५ भाई-बहनोंने अतीत भव पुद्गल वोसिराने । की क्रिया बड़े प्रेमसे की थी। पूज्य आचार्य देवधीने पद्मावती की। आराधना भाववाही ढंगसे सुनाई थी। सुनते सुनते सबकी आँखों में से आंसू टपक पड़े थे और सबके दिल गद्गद् हो गये थे।
कितने ही भाई-बहनोंने व्रतोच्चारण की क्रिया की थी। .... अन्तमें नवलमलजी की तरफ से प्रभावना हुई थी।
नित्य सुवह उपमिति ग्रन्थ के आधार से पूज्य आचार्य देवश्री प्रभावशाली देशना देते थे।
उपवास के दिन दोपहरको पूज्य महाराज श्री जिनचन्द्र विजयजी महाराज 'आत्मा और कर्म की भिन्नता" इस विषय पर प्रभावशाली प्रवचन देते थे।
दोनों टाइमकी क्रिया १०० खमासणा आदिकी क्रिया दोनों गुरुदेव कराते थे।
__ महा सुदी ९ से शेठ प्रागभल्ली की तरफ से अपनी मातृश्री. टीपूत्रेन के तए निमित्त उद्यापन महोत्सव बड़ी धूमधाम से ५ पांच दिन तक मनाया गया था।
अन्ति मदिन गाँवका स्वामी वात्सल्य प्रागभलजी. की. तरफ से हुना था । बाहरसे संगीत मंडली आई थी।'
___ज्यों ज्यों आराधना के दिन बीतते गये त्यों त्यों आराधकों के दिलमें माला परिधान की उत्कंठा बढ़ती जा रही थी। . .
उपधान. कारकों की तरफ से शान्ति स्नात्र. युक्त अष्टान्हिका.