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50... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन उपद्रवों का हरण करती है, दुर्भिक्ष-अकाल आदि का शमन करती हैं तथा सुखसौहार्द एवं शांति का वातावरण निर्मित करती है। जो भक्तिपूर्ण हृदय से जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करते हैं, अन्यों से करवाते हैं और प्रतिदिन प्रतिष्ठा की प्रशंसा गुणगान करते हैं वे सभी सुखी होते हैं।
इससे भी दीक्षा कल्याणक की यात्रा भव्यातिभव्य होनी चाहिए। इस रथयात्रा में शोभा वृद्धि हेतु जितने भी साधन लाना चाहें सब ला सकते हैं। इससे सम्बन्धित सभी बोलियाँ देव द्रव्य की होती हैं। उसे जिनप्रतिमा एवं जिनमंदिर इन दो क्षेत्रों में व्यय कर सकते हैं।
इस प्रकार मूलनायक भगवान के पाँचों कल्याणक की यात्रा का आयोजन करना चाहिए। भगवान के प्रवेश की बोलियाँ
अंजनशलाका का विधान हो जाने के बाद जिनबिम्ब का मंदिर के मूल गंभारे में प्रवेश करवाते हैं। प्रवेश का मुहूर्त जटिल है। कभी-कभी मुहूर्त अच्छा होने पर भी विलम्ब करना पड़ता है।
प्रवेश करवाना यह भी एक महामांगलिक कृत्य है। इस प्रसंग से सन्दर्भित सब बोलियाँ देवद्रव्य की मानी गई हैं। उनका उपयोग आगे बताए अनुसार कर सकते हैं।
प्रायः जहाँ आबादी कम हो और बोली बोलने वाले अधिक नहीं हों वहाँ पर जिन्होंने प्रतिष्ठा करवाने का चढ़ावा लिया है उनको ही यह आदेश दिया जा सकता है। परन्तु प्रतिष्ठा की बोली वालों को ही प्रवेश का अधिकार है, ऐसा नहीं समझना चाहिए। उनका चढ़ावा संघ अलग ही बुलवाता है। अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा महोत्सव की बोलियों की सूची इतनी विस्तृत होती है कि संघ के आगेवान कितना भी चाहें पर निर्णीत कार्यक्रम के अनुसार आदेश देने में अशक्त रहते हैं। अत: इन दिनों में संघ के भाविकों को जागृत रहना चाहिए, क्योंकि आदेश देने हेतु निर्धारित समय में परिवर्तन हो गया हो तो यह लाभ गंवाना न पड़े और निरर्थक वाद-विवाद न करना पड़े। वस्तुत: बोली बुलवाना भी एक कला है जो सबको हासिल नहीं होती है। इसलिए ऐसे समय पर बोली बुलवाने वाले कुशल भाविकों को बुलाना चाहिए। बोली बोलने वाले में हृदय